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अनुभव बुद्धिमान बनाता है

१ मई २०१५

अंतरराष्ट्रीय मदद के बावजूद नेपाल को अब भी बहुत ज्यादा सहारा चाहिए. हाल के भूकंप ने हिमालय की गोद में बसे देश को हिला दिया है, अलेक्जांडर फ्रॉएंड बता रहे हैं कि इस वक्त नेपाल को हमारी आलोचना की जरूरत नहीं है.

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तस्वीर: AFP/Getty Images/S. Hussain

एक बार फिर प्राकृतिक आपदा ने गरीबों को निशाना बनाया है. हम नेपाल में मची व्यापक तबाही की हृदय झकझोरने वाली तस्वीरें देख रहे हैं: शहर विध्वस्त हो चुके हैं और लोग मलबे में दबे हैं. माउंट एवरेस्ट की ओर जाने वाले कई नियमित सैलानी भी 7.8 तीव्रता वाले भूकंप से हुए हिमस्खलन में मारे गए. इस हिमालयी देश में अंतरराष्ट्रीय मदद उमड़ रही है, लेकिन कहीं ज्यादा सहायता व राहतकर्मियों की तत्काल जरूरत है. यह साफ है कि देश अपने दम पर इतनी व्यापक त्रासदी से निपटने की क्षमता नहीं रखता है.

नेपाल के भूकंप ने हमें एक बार फिर इस बात का एहसास कराया है कि प्रकृति की ताकत के आगे इंसान कितना बेबस है. लेकिन इसके बावजूद हम बहुत कुछ कर सकते हैं. हमारे पास ऐसे संगठन और संस्थाएं हैं, जो बाल बाल बचे लोगों की मदद कर सकती हैं. हम कम से कम खुले दिल से नेपाल के लोगों का दुख बांटने में मदद तो कर ही सकते हैं. और हम जर्मन काफी कुछ कर सकते हैं क्योंकि हम इसे वहन कर सकते हैं. इस मौके पर किया गया आर्थिक दान भी मौके पर जाकर मदद करने जैसा ही अहम है क्योंकि इससे वहां दी जा रही पेशेवर मदद को सहारा मिलेगा.

आलोचना अपने पास रखें

नेपाल के पक्ष में वैश्विक बंधुत्व की भावना देखना अच्छा अनुभव है. हम यह भी देख रहे हैं कि बहुत सारी मदद मीडिया में सुर्खियां बटोरने के लिए हो रही है. दानदाताओं के लिए यह अहम है कि उनके देश का झंडा या पहचान चिह्न मदद के कंटेनरों पर दिखाई पड़े. इससे कोई फर्क नहीं पड़ता कि मदद कहां से आ रही है. जरूरी यह है कि मदद आ रही है.

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डॉयचे वेले के एशिया विभाग के प्रमुख अलेक्जांडर फ्रॉएंड

हमें सुस्त राहत अभियान को लेकर नेपाल की आलोचना नहीं करनी चाहिए. नेपाल जैसे देश के बारे में बहुत आलोचना की जा सकती है: अक्षम सरकार, जटिल लालफीताशाही, बेकाबू भ्रष्टाचार और भी बहुत कुछ. लेकिन ऐसे नाजुक मौके पर क्या हमें इन सब मुद्दों को लेकर आलोचना करनी चाहिए, क्या इससे किसी की कोई मदद होगी?

विकसित देशों की सीमा

आपदा अति विकसित देश में भी आ सकती है और उन्हें भी मुश्किल होती है. उदाहरण के लिए, जापान में लोग हमेशा ताकतवर भूकंपों के साथ जीते हैं और उनका इंफ्रास्ट्रक्चर भी इस तरह से डिजाइन होता है कि प्राकृतिक आपदा के असर को कम से कम किया जाए. लेकिन चार साल पहले आए शक्तिशाली भूकंप और उससे उठे सूनामी ने पूर्वी एशिया के इस देश में 15,000 से ज्यादा लोगों की जानें लीं. भूकंप और सूनामी जैसी परिस्थितियों से निपटने में जापानियों की कुशलता के बावजूद ऐसा हुआ.

अमेरिका को ही लीजिए, दुनिया की अकेली महाशक्ति. एक ऐसा देश जो लोगों को चंद्रमा पर भेजने की क्षमता रखता है, वो भी कैटरीना जैसे चक्रवाती तूफान के आगे बेबस हो गया. पूरी दुनिया भय के साथ देखती रही और न्यू ऑरलियांस जैसे शहर को समुद्र डुबोता चला गया.

ऐसे भी देश हैं जो आपदा की पहले से तैयारी कर लेते हैं. लेकिन फिलहाल नेपाल में और 2010 में हैती में तबाही मचाने वाले भूचाल, बिना चेतावनी के ही आते हैं. यह सही है कि इन इलाकों में रहने वाले लोग भूकंप के खतरों से वाकिफ हैं. लेकिन वो भूकंप को लेकर क्या कर सकते हैं? भूकंपरोधी घर बहुत ही महंगे हैं और जिंदगी की रोजमर्रा की भागदौड़ में कौन प्राकृतिक आपदा की चिंता करता है?

दीर्घकालीन नतीजे

इस भूकंप का नेपाल पर जबरदस्त असर हुआ है, इसके नतीजे लंबे समय तक दिखते रहेंगे. बहुत ज्यादा तबाही हो चुकी है, सांस्कृतिक विरासतें भी इसमें शामिल हैं. देश के पर्यटन पर भी इसका असर पड़ेगा, जो नेपाल की अर्थव्यवस्था की रीढ़ है.

भविष्य ही बताएगा कि नेपाल के साथ अंतरराष्ट्रीय बंधुत्व कितना लंबा टिकेगा. मीडिया हमेशा अगली आपदा, अगले युद्ध और अगली त्रासदी की तरफ भागता है. लेकिन हमें, सब कुछ पता है वाला अपना रवैया अपने पास रखना होगा और नेपाल की मदद करनी होगी.

फिलहाल नेपाल को किसी मशविरे की जरूरत नहीं है; जरूरत है तो कंबलों की, दवाओं की, जल शोधक संयंत्रों की और बहुत सारी दूसरी चीजों की. हम नेपालियों की पीड़ा कम कर सकते हैं, देश को फिर खड़ा कर सकते हैं और दुख को बांट सकते हैं. बाकी तय है कि, अनुभव लोगों को बुद्धिमान बनाता है.

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