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अपनी गलतियों से सीख लेतीं क्लिंटन

१३ अप्रैल २०१५

हिलेरी क्लिंटन ने अमेरिकी राष्ट्रपति के रूप में अपनी उम्मीदवारी की घोषणा तो कर दी है लेकिन जीत का रास्ता अभी बहुत लंबा और कठिन है, यह कहना है डॉयचे वेले के गेरो श्लीस का.

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तस्वीर: picture alliance/AP Images/Rourke

हिलेरी क्लिंटन आखिर क्यों राष्ट्रपति बनना चाहती हैं? इतने महीनों से उनकी उम्मीदवारी को ले कर अटकलें लग रही हैं कि उन सब के बीच यह सवाल कहीं पीछे छूट गया है. अब जब उन्होंने सार्वजनिक रूप से घोषणा कर ही दी है, तो अचानक ही एक खालीपन उभर आया है. सवाल यह है कि कभी देश की प्रथम महिला, कभी सीनेटर तो कभी विदेश मंत्री रह चुकी 67 साल की क्लिंटन आखिर क्यों एक बार फिर देश की सबसे महत्वपूर्ण कुर्सी के लिए चुनाव में खड़ी होना चाहती हैं और वह किन मुद्दों के लिए खड़ी हैं. उनके वीडियो संदेश से भी ये बातें साफ नहीं हो पाई हैं. लेकिन जल्द ही उन्हें सफाई देनी होगी. भले ही अभी ऐसा लगे जैसे सब कुछ उन्हीं के इर्द गिर्द घूम रहा है और ऐसे उनका राष्ट्रपति बनना तय ही हो.

पुराना चोंचला

हिलेरी क्लिंटन मध्य वर्ग के लिए काम करना चाहती हैं. यही काम ओबामा भी करना चाहते थे. सबको एक समान मौके दिए जाने का जो वायदा क्लिंटन कर रही हैं, दरअसल वह अमेरिकी चुनावों का एक पुराना चोंचला है. यहां तक कि हर रिपब्लिकन भी समान अधिकारों के नारे से सहमत दिखेगा. क्लिंटन जो योगदान देना चाहती हैं, उसके अलावा लोग उनसे पुलिस की बर्बरता और देश में नस्लवादी हिंसा पर जवाब चाहते हैं. अमेरिका में समलैंगिकों के विवाह के मामले पर क्लिंटन ने सार्वजनिक रूप से कभी अपना मत नहीं रखा है. और जहां तक कि मुश्किल राजनीतिक मुद्दों की बात है, जैसे कि बाजार की अर्थव्यवस्था को नियंत्रित करना, तो उस पर भी उन्होंने चुप्पी साधी हुई है.

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डॉयचे वेले के गेरो श्लीसतस्वीर: DW/P.Henriksen

अपनी उम्मीदवारी घोषित करने से पहले क्लिंटन ने खुद को किसी एक मुद्दे से नहीं बांधा और उनकी पार्टी में उन्हें इस बात का फायदा भी मिला है. वे खुद को एक ऐसे स्थान पर लाने में कामयाब रही हैं, जहां कम से कम अपनी ही पार्टी में उनका कोई प्रतिद्वंद्वी नहीं बन पाया है. शायद राष्ट्रपति पद की दौड़ में वे खुद ही अपनी सबसे बड़ी प्रतिद्वंद्वी हैं. लेकिन क्लिंटन को एक अच्छा चुनाव प्रचारक नहीं माना जाता. दबाव में आ कर वे गलतियां कर बैठती हैं. इसका सबसे अच्छा प्रमाण है हाल ही में उनकी ईमेल को ले कर उठा बवाल. विदेश मंत्री के पद पर उन्होंने अपने निजी पते से ही आधिकारिक ईमेल भी भेजे और इस बात को वे सबके सामने ठीक से संभाल नहीं पाईं. इसी तरह अपनी जीवनी का प्रचार करते समय उन्होंने कुछ असंवेदनशील टिप्पणियां की जो सुर्खियों में आईं.

गलतियों से सीख

पहली बार राष्ट्रपति पद के लिए खड़े होने पर उन्हें बराक ओबामा नाम के एक नौसीखिये से हार माननी पड़ी था, इस बात ने कभी उनका पीछा नहीं छोड़ा और मौजूदा चुनावी रणनीति में यह साफ झलक भी रहा है. ताजा कैम्पेन के तहत उनकी छवि बदली जा रही है. अब वे जज्बात ना दिखाने वाली एक शक्तिशाली टेक्नोक्रेट नहीं, बल्कि एक प्यारी दादी के रूप में नजर आती हैं जो कभी अपनी उम्र से जुड़े सवालों के जवाब देने की कोशिश करती हैं, तो कभी वोटरों के घरों में जा कर उनसे मुलाकात करती हैं. 2008 की गलतियों को वे पूरी तरह भुला देना चाहती हैं.

लेकिन सबसे बड़ी चुनौती अब भी बाकी है. क्लिंटन और उनकी टीम को इस बारे में सोच विचार करना होगा कि उनकी घोषणा के बाद भी देशवासियों में उन्हें ले कर कोई खास उत्साह नहीं है. विकल्पों के अभाव में उन्हें बाकियों से बेहतर तो समझा जा रहा है लेकिन बेहतरीन राजनेता नहीं. राजनीति में उनका अनुभव सिर्फ उनकी ताकत नहीं, उनकी सबसे बड़ी कमजोरी भी है. 25 साल तक राजनीति में रहने के बाद अब लोग उनसे कुछ नए की उम्मीद नहीं करते हैं.

कड़ी मेहनत करनी होगी

यही सबसे जरूरी बात है. हिलेरी क्लिंटन को एक बार फिर खुद को तलाशना होगा. उन्हें अपनी टीम के साथ बैठ कर जनता के लिए संदेश तैयार करने होंगे और लोगों को समझाना होगा कि आखिर क्यों वे एक बार फिर चुनाव में खड़ी हो रही हैं. उन्होंने खुद को एक अच्छी विदेश मंत्री तो साबित किया था लेकिन देश के आंतरिक मुद्दों, जैसे अर्थव्यवस्था, चिकित्सा और सुरक्षा को ले कर वे अपनी योग्यता दिखाने में कामयाब नहीं रही थीं. यह बात उनके खिलाफ जाती है.

और जहां तक रिपब्लिकन उम्मीदवारों की बात है, तो वे क्लिंटन को कड़ी टक्कर देंगे. क्लिंटन अब तक अमेरिका की ज्यादातर जनता के दिलों पर नहीं छाई हैं. व्हाइट हाउस का टिकट पक्का करने के लिए उन्हें अभी कड़ी मेहनत करनी होगी और यह देखना वाकई दिलचस्प रहेगा.