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समाज

अपनों के बीच पराए बनते बुजुर्ग

प्रभाकर मणि तिवारी
१३ जुलाई २०१८

भारत में बुजुर्गों की तादाद बढ़ने के साथ ही उनके साथ दुर्व्यवहार के मामले में भी बढ़ रहे हैं. देश के आधे से ज्यादा बुजुर्गों को दुर्व्यवहार का सामना करना पड़ता है.

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Indien: Die Altersarmut steigt
तस्वीर: DW/P. Tiwari

78 साल की मानसी घोष ने अपने जीवन में बहुत उतार-चढ़ाव देखे हैं. लेकिन उनको बुढ़ापे में अपनों ने जो दर्द दिया है उसे वह ताउम्र नहीं भूल सकतीं. उनके पति सरकारी नौकरी में थे. 20 साल पहले रिटायर होने के बाद उनको अच्छी-खासी रकम मिली थी. उससे उन्होंने अपने दोनों बेटों को कारोबार के लिए पैसे दिए.

एक बेटी की शादी की और कोलकाता में एक दोमंजिला मकान बनवाया. लेकिन दस साल पहले पति का निधन होते ही बेटों-बहुओं की नजरें बदलने लगीं. किसी तरह बहला-फुसला कर बेटों ने मानसी से मकान अपने नाम लिखवा लिया और जमा पूंजी भी हथिया ली. उनके खाने-पीने और जरूरी खर्चों में भी कटौती की जाने लगी.

धीरे-धीरे अपनों का अत्याचार जब सहन सीमा से बहार हो गया तो मानसी ने खुद ही अपने पति की गाढ़ी कमाई से बनवाया घर छोड़ दिया. अब इस उम्र में वह साग-सब्जी बेच कर गुजारा करती है. वह कहती हैं, "इस जिंदगी में मेहनत तो है. लेकिन सुबह-शाम चैन से दो रोटी तो खा लेती हूं."

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गहराती समस्या

संयुक्त राष्ट्र जनसंख्या कोष (यूएनपीएफ) ने भी अपनी रिपोर्ट में कहा है कि 2050 तक भारत में बुजुर्गों की तादाद बढ़ कर तीन गुनी हो जाएगा. सरकार को इस बढ़ती तादाद और इससे पैदा होने वाली समस्याओं से निपटने के लिए अभी से उपाय करने चाहिए. भारत में अब भी लोगों में बेटे की ही चाहत रहती है. लेकिन ताजा आंकड़ों के मुताबिक बुजुर्ग मां-बाप से दुर्व्यवहार करने में बेटे ही सबसे आगे हैं.

असम सरकार ने इस समस्या पर अंकुश लगाने के लिए एक राह दिखाई है. उसने नौ महीने पहले एक विधेयक पारित किया था जिसके तहत माता-पिता की देखभाल नहीं करने वाले सरकारी कर्मचारियों का वेतन काटने का प्रावधान था. अब सरकार इस कानून को इसी महीने लागू करने जा रही है.

अपने ही बने दुश्मन

एक निजी कंपनी में 40 साल की नौकरी के बाद रिटायर होने वाले धनंजय मंडल की कहानी भी मानसी से मिलती-जुलती है. पत्नी की मौत के बाद इकलौते बेटे ने कारोबार के लिए कर्ज लेने के बहाने घर अपने नाम करा लिया. कुछ दिनों बाद उसने पिता को एक वृद्धाश्रम पहुंचा दिया.

मनोहर कहते हैं, "पूरी जिंदगी मैंने अपने लिए कुछ नहीं सोचा. अब जब बुढ़ापे में आराम करने की बारी आई तो बेटे ने अपनी पत्नी के कहने में आकर मुझे घर से निकाल दिया. भगवान ऐसा बेटा किसी दुश्मन को भी ना दे."

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मनोहर अब अकेले और बेसहारा हैंतस्वीर: DW/P. Tiwari

मानसी और धनंजय जैसी कहानियां पश्चिम बंगाल की राजधानी कोलकाता ही नहीं, देश के तमाम छोटे-बढ़े शहरों में मिल जाएंगी. कोलकाता के सबसे पॉश कहे जाने वाले साल्टलेक इलाके में तो ऐसे हजारों बुजुर्ग दंपति हैं जिनके बेटे-बहु विदेशों में रहते हैं.

बीमारी की बात सुनने पर वहीं से कुछ डालर भेज कर अपनी जिम्मेदारी की इतिश्री मान लेते हैं. हफ्ते-पंद्रह दिनों में फोन या स्काइप पर बातचीत कर हाल-चाल पूछने वाली इन संतानों में से ज्यादातर विदेशों में इस कदर निन्यानबे के फेर में पड़े हैं कि उनके पास हर साल भारत आने का समय भी नहीं है.

अध्ययन

गैर-सरकारी संगठन हेल्पएज इंडिया ने 23 शहरों में किए गए अध्ययन रिपोर्ट के हवाले कहा है कि वर्ष 2011 की जनगणना के मुताबिक देश में कुल आबादी में बुजुर्गों यानी 60 साल से ज्यादा उम्र वाले लोगों की तादाद लगभग आठ फीसदी थी जिसके 2026 में 12.5 फीसदी और 2050 तक 20 फीसदी पहुंच जाने का अनुमान है. उसका कहना है कि बुजुर्गों से दुर्व्यवहार के ज्यादातर मामलों में बेटे ही दोषी होते हैं.

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एक अन्य संगठन एजवेल फाउंडेशन ने भी अपने अध्ययन में कमोबेश यही बात कही है. लगभग 1500 गैर-सरकारी संगठनों को लेकर बने इस फाउंडेशन ने इस साल मई से जून के दौरान ग्रामीण और शहरी क्षेत्रों में रहने वाले 10 हजार से ज्यादा बुजुर्गों से बातचीत के आधार पर अपनी रिपार्ट तैयार की है.

इसमें कहा गया है कि बुजुर्गों की 52.4 फीसदी आबादी किसी न किसी तरह दुर्व्यवहार की शिकार है. फाउंडेशन के संस्थापक हिमांशु रथ कहते हैं, "किसी परिवार में बुजुर्गों से कैसा व्यवहार होगा, यह आम तौर पर उसकी वित्तीय स्थिति पर निर्भर करता है. एकल परिवारों की बढ़ती अवधारणा के बीच घरों में बुजुर्गों के लिए जगह सिमटती जा रही है."

वह बताते हैं कि कुछ बुजुर्गों को हमेशा अपमान का शिकार होना पड़ता है तो कइयों को खाना-कपड़ा जैसी मौलिक सुविधाएं भी मुहैया नहीं हैं. इन संगठनों ने कहा है कि घर के युवा सदस्य मोबाइल, इंटरनेट और सोशल मीडिया के चलते व्यस्तता बढ़ने की वजह से चाहते हुए भी बुजुर्गों पर ज्यादा ध्यान नहीं दे पाते.

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दूसरी ओर, यूनाइटेड नेशंस पोपुलेशन फंड (यूएनपीएफ) ने भी हाल में अपनी एक रिपोर्ट में भारत में बुजुर्गों की बढ़ती तादाद और उनसे होने वाले दुर्व्यवहार पर गहरी चिंता जताई थी. उसका कहना का कि वर्ष 2050 तक बुजुर्गों की आबादी बढ़ कर 30 करोड़ तक पहुंच जाएगी.

ऐसे में उनकी देख-रेख के लिए ठोस कल्याणकारी योजनाएं बनाई जानी चाहिए. संगठन ने कहा है कि बुजुर्गों में खासकर महिलाओं पर खास ध्यान देना जरूरी है. पुरुषों के मुकाबले उम्र लंबी होने और ज्यादातर मामलों में कोई आय नहीं होने या मामूली आय होने की वजह से उनकी स्थिति सबसे खराब है.

उपाय

आखिर बुजुर्गों के साथ बढ़ते दुर्व्यवहार के मामलों पर अंकुश कैसे लगाया जा सकता है. एजवेल फाउंडेशन के हिमाशु रथ कहते हैं, "बुजुर्गों को वित्तीय रूप से मजबूत करना जरूरी है. सरकार को इसके लिए पेंशन और दूसरी कल्याणकारी योजनाएं शुरू करनी होंगी."

भारत में यूएनपीएफ के प्रतिनिधि डिएगो पैलेसिओस कहते हैं, "बुजुर्गों की बेहतर देख-रेख के लिए सरकार, गैर-सरकारी संगठनों, परिवारों और समाज सबको अपनी भूमिका सही ढंग से निभानी होगी." केंद्रीय सामाजिक न्याय और सशक्तिकरण मंत्री थावरचंद गहलोत कहते हैं, "केंद्र सरकार ने बुजुर्गों के लिए कई बीमा, स्वास्थ्य और पेंशन योजनाएं शुरू की हैं."

समाज कल्याण मंत्रालय की सचिव जी. लता कृष्ण राव कहती हैं, "60 से 80 साल तक के बुजुर्गों को उनकी उम्र और सेहत के मुताबिक किसी न किसी रोजगार में लगा कर इस समस्या पर काफी हद तक अंकुश लगाया जा सकता है. केंद्र सरकार ने तमाम वृद्धाश्रमों के पंजीकरण की योजना बनाई है. इसके साथ ही घरों में बुजुर्गों को जरूरी सेवाएं मुहैया कराने वाली कंपनियों की रेटिंग शुरू करने पर भी विचार चल रहा है."

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