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अफगानिस्तान में छद्म युद्ध के आसार

१९ सितम्बर २०१३

अफगानिस्तान से नाटो सैनिकों की वापसी का दक्षिण एशिया पर गहरा असर होगा. यदि अफगानिस्तान में मेलमिलाप की प्रक्रिया कामयाब नहीं होती है तो भारत और पाकिस्तान के बीच तनाव बढ़ने की आशंका है.

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तस्वीर: Reuters

अफगानिस्तान पर अमेरिका और मित्र देशों के हमले के 12 साल बाद नाटो के सैनिक 2014 के अंत तक वहां से वापस हो जाएंगे. लेकिन अफगानिस्तान के भविष्य के लेकर बहुत से सवालों के जवाब नहीं मिल पा रहे हैं. विशेषज्ञों के अनुसार चार बातें युद्ध में जर्जर देश के भविष्य में महत्वपूर्ण भूमिका निभाएगी. पश्चिमी सहयोग के कितने सैनिक अफगानिस्तान में रहते हैं, तालिबान के साथ बातचीत कितनी कामयाब होती है, आने वाले राष्ट्रपति चुनावों का नतीजा क्या होता है और मेल मिलाप की प्रक्रिया के लिए पड़ोसी देशों का रवैया क्या होता है.

अमेरिकी कांग्रेस की रिसर्च सर्विस के अनुसार 2014 के बाद अफगानिस्तान में रहने वाले अंतरराष्ट्रीय सैनिकों में ट्रेनरों की संख्या 8,000-12,000 तक हो सकती है. उनके अलावा आतंकवाद विरोधी सैनिक भी रहेंगे, जिनकी संख्या के बारे में जानकारी नहीं है लेकिन इनमें ज्यादातर अमेरिकी होंगे.

तालिबान का डर

अमेरिकी शांति संस्थान के दक्षिण एशिया विशेषज्ञ मोईद यूसुफ का मानना है कि पश्चिमी देश अफगानिस्तान में इस उद्देश्य से निवेश करते रहेंगे कि काबुल की सरकार गिरे नहीं और कम से कम काबुल और दूसरे प्रमुख शहरों पर उसका नियंत्रण रहे, "यह साफ है कि सुरक्षा की जिम्मेदारी अफगान हाथों में जाने के बाद उपस्थिति के निशान बहुत कम होंगे." लेकिन तालिबान से निबटने के मुद्दे पर मतभेदों के कारण अभी अमेरिकी अफगानिस्तान समझौते पर बातचीत पूरी नहीं हुई है.

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तस्वीर: Getty Images/Afp/Shah Marai

इस बीच अफगानिस्तान में हालात बिगड़ रहे हैं. अमेरिकी कांग्रेस की रिपोर्ट में कहा गया है, "इस बात का डर है कि यदि अंतरराष्ट्रीय टुकड़ियों में भारी कमी की जाती है तो तालिबान और दूसरे विद्रोहियों को अफगान सेना के खिलाफ सफलता हासिल होगी." अफगानिस्तान के कुछ गुट गृह युद्ध की चेतावनी दे रहे हैं और फिर से लड़ाकों की भर्ती कर रहे हैं जबकि कारोबारी देश से बाहर जाने की सोच रहे हैं. गृह मंत्री उमर दाउदजई के अनुसार सुरक्षा की जिम्मेदारी अफगानिस्तान को सौंपे जाने के बाद से मरने वाले पुलिस कर्मियों की संख्या दोगुनी हो गई है. इस साल की पहली छमाही में असैनिक मौतों में 23 फीसदी वृद्धि हुई.

राष्ट्रपति चुनाव

जर्मनी के आतंकवाद शोध संस्थान के प्रमुख रॉल्फ टॉपहोफेन का कहना है कि अफगानिस्तान में बहुत से उग्रवादी और ड्रग माफिया के लोग हैं जो सेना पर हमला कर अपना प्रभाव बढ़ाना चाहते हैं. "नाटो की मदद के बिना अफगान सेना इस तरह के हमलों का सामना करने में अक्षम हो जाएगी." इसलिए बहुत से विशेषज्ञ अफगानिस्तान में स्थायी स्थिरता और शांति के लिए तालिबान को मौजूदा राजनीतिक ढांचे में शामिल करने पर समझौता चाहते हैं.

पाकिस्तानी मूल के यूसुफ कहते हैं कि कोई यह बात नहीं कर रहा है कि तालिबान को राजनीतिक रूप से शामिल करना चाहिए या नहीं. "असली सवाल यह है कि वे किस तरह और किन शर्तों पर राजनीतिक प्रक्रिया में शामिल होंगे और उग्रपंथियों के साथ बातचीत के लिए कौन सी रियायतें मेज पर रखी जाएंगी." विशेषज्ञों की राय में तालिबान के साथ मेल मिलाप की सफलता के लिए अगले साल होने वाले राष्ट्रपति चुनाव बहुत अहम हैं. अगर चुनाव 5 अप्रैल को सही समय पर होते हैं तो अमेरिका के नेतृत्व वाले हमले के बाद यह सत्ता का पहला शांतिपूर्ण हस्तांतरण होगा.

दोहरा विवाद

लेकिन राष्ट्रपति हामिद करजई का फिलहाल कोई उत्तराधिकारी नहीं दिखता. दो कार्यकाल के बाद वे और चुनाव नहीं लड़ सकते. नई दिल्ली स्थित रक्षा अध्ययन और विश्लेषण संस्थान की रिसर्चर स्मृति पटनायक का कहना है कि अफगान कबीलाई चुनाव के बाद भी राजनीतिक तौर पर बंटे रहेंगे, जिसकी वजह से राजनीतिक स्थिरता मुश्किल हो जाएगी. "यदि तालिबान का पलड़ा भारी रहता है तो अफगान सेना कबीलों के आधार पर बंट जाएगी." विशेषज्ञों का कहना है कि ऐसे विकास का दक्षिण एशिया पर बहुत गहरा असर होगा.

राजनीतिक विश्लेषक यूसुफ का कहना है कि यदि अफगानिस्तान में आतंकवादी गतिविधियां 2014 के बाद भी जारी रहती हैं तो वे पड़ेस में भी फैल जाएंगी और अफगानिस्तान भारत-पाक छाया युद्ध का केंद्र बन जाएगा. इस्लामाबाद के सुरक्षा विशेषज्ञ इम्तियाज गुल इससे सहमत हैं. उनका कहना है कि अफगानिस्तान में पैर जमाने के लिए एक दशक से दोनों देशों के बीच चल रहा संघर्ष और गहरा जाएगा. वे कहते हैं, "द्विपक्षीय रिश्ते पहले से ही अविश्वास से ग्रस्त हैं और यदि दोनों देश अफगानिस्तान पर सहमत नहीं होते तो रिश्तों में और तनाव पैदा होगा, जिसका नुकसान आखिरकार अफगानिस्तान की शांति प्रक्रिया को होगा."

रिपोर्ट: गाब्रिएल डोमिंगेज/एमजे

संपादन: ए जमाल

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