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'अफगानिस्तान में शांति चाहता है पाकिस्तान'

३ दिसम्बर २०१३

इस्लामाबाद चाहता है कि 2014 के अंत तक काबुल और तालिबान के बीच शांति समझौता हो जाए. जर्मनी में पाकिस्तान के राजदूत ने यह भी कहा कि भारत अफगानिस्तान का इस्तेमाल उनके देश को अस्थिर करने के लिए न करे.

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तस्वीर: Aamir Qureshi/AFP/Getty Images

जर्मनी में पाकिस्तान के राजदूत अब्दुल बसित को हाल ही में इस्लामाबाद में विदेश सचिव के पद पर नियुक्त किया गया है. बसित मई 2012 से जर्मनी में पाकिस्तान के राजदूत हैं और इससे पहले कई देशों में राजनयिक पद पर रह चुके हैं. डीडब्ल्यू के साथ इंटरव्यू में बसित ने अफगानिस्तान के साथ रिश्तों और तालिबान के साथ भविष्य में होने वाली शांति वार्ता के बारे में बातचीत की.

डीडब्ल्यू : कुछ जानकारों का मानना है कि अमेरिका और अफगानिस्तान का नया सुरक्षा समझौता पाकिस्तान के लिए झटका है. क्या आप इस विचार से सहमत हैं?

अब्दुल बसित : काबुल और वॉशिंगटन के बीच यह एक द्विपक्षीय समझौता है. हम इस पर टिप्पणी नहीं कर सकते. हां, हम यह कह सकते हैं कि अगर इस समझौते से शांति बहाल होती है तो हमें कोई दिक्कत नहीं. समय ही बताएगा कि यह अफगानिस्तान के लिए अच्छा है या बुरा.

डीडब्ल्यू : तालिबान के साथ बातचीत का भविष्य क्या है?

अब्दुल बसित : अफगानिस्तान फिलहाल कठिन दौर से गुजर रहा है. यह सच है कि युद्ध से ध्वस्त देश में शांति और स्थिरता लाने की कोशिशों को झटका लगा है. मैं इसके लिए किसी को जिम्मेदार नहीं ठहराना चाहता. पाकिस्तान चाहता है कि अफगानिस्तान सरकार और तालिबान के बीच दिसंबर 2014 तक शांति समझौता हो जाए. इसके लिए बहुत सारे प्रयास किए जा रहे हैं. हाल ही में अफगानिस्तान के राष्ट्रपति हामिद करजई के पाकिस्तान दौरे का केंद्र बिंदु तालिबान के साथ वार्ता भी था. उनके आग्रह के बाद ही हमने अफगान तालिबान नेता मुल्लाह बरादर और कुछ तालिबान कमांडरों को रिहा किया. पिछले दिनों अफगान उच्च शांति परिषद का प्रतिनिधिमंडल पाकिस्तान में था. प्रधानमंत्री शरीफ जल्द ही काबुल दौरे पर जाएंगे.

डीडब्ल्यू : रिहा किए गए तालिबान कमांडर शांति वार्ता में किस तरह की भूमिका निभा सकते हैं?

अब्दुल बसित : तालिबान के नेता ही सिर्फ इसका जवाब दे सकते हैं. हम उनसे सीधे जुड़े हुए नहीं हैं. यह एक संवेदनशील और जटिल मुद्दा है और मुझे नहीं लगता है कि इन जानकारियों को सार्वजनिक करना चाहिए. मैं इस मुद्दे पर टिप्पणी करने से बचना चाहूंगा. मैं बस इतना कह सकता हूं कि यह एक प्रक्रिया का हिस्सा है.

Mr.Abdul Basit Foreign Secretary-designate DW/ Imtiaz Ahmad 28. Nov. 2013, Frankfurt
जर्मनी में पाकिस्तान के राजदूत अब्दुल बसिततस्वीर: DW/I. Ahmad

डीडब्ल्यू : क्या अफगानिस्तान में भारत के बढ़ते प्रभाव से पाकिस्तान चिंतित है?

अब्दुल बसित : अफगानिस्तान और भारत संप्रभु राष्ट्र हैं. यह इन दोनों देशों पर निर्भर करता है कि वे कैसे रिश्ते चाहते हैं. हम बस इतना चाहते हैं कि अफगानिस्तान का इस्तेमाल पाकिस्तान को अस्थिर करने के लिए न हो. हमें मालूम है कि अफगानिस्तान के कुछ इलाकों का इस्तेमाल हमारे बलूचिस्तान प्रांत और कुछ कबायली इलाकों को अस्थिर करने के लिए हो रहा है.

डीडब्ल्यू : आप इसके लिए किस को जिम्मेदार ठहराते हैं?

अब्दुल बसित : मैं इस बारे में ज्यादा खुलासा नहीं कर सकता. अक्टूबर में प्रधानमंत्री शरीफ और भारतीय प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह न्यू यॉर्क में मिले और इस दौरान पाकिस्तान ने इस मुद्दे पर चर्चा की. शरीफ ने कहा कि भारत बलूचिस्तान में दखल दे रहा है और राष्ट्रपति करजई ने हमसे वादा किया है कि अफगानिस्तान का इस्तेमाल पाकिस्तान के खिलाफ नहीं होगा.

डीडब्ल्यू : अच्छे तालिबान और बुरे तालिबान से पाकिस्तान का क्या मतलब है?

अब्दुल बसित : शांती वार्ता का इस तरह के द्विभाजन से कुछ लेना देना नहीं है. हमें बातचीत पर सहमति बनाने की जरूरत है. पाकिस्तान की राजनीतिक पार्टियां वार्ता के समर्थन में हैं. तालिबान के खिलाफ सख्ती काम नहीं आई. अब हमारी सरकार की जिम्मेदारी है कि वो चीजों को आगे ले जाए.

डीडब्ल्यू : क्या यह तहरीक ए तालिबान के कमांडर हकीमुल्लाह महसूद के ड्रोन हमले में मारे जाने के बाद मुमकिन है.?

अब्दुल बसित : हम वार्ता शुरू करने की कोशिश कर रहे हैं. अगर कुछ होता है तो आप जान जाएंगे.

डीडब्ल्यू : पाकिस्तान पश्चिमोत्तर कबायली इलाकों में अमेरिकी ड्रोन हमले की शिकायत करता है. जाहिर है अमेरिका ने अब तक अपनी कार्रवाई नहीं रोकी है. इन हमलों को रोकने के लिए आपकी क्या रणनीति होगी?

अब्दुल बसित : प्रधानमंत्री नवाज शरीफ ने वॉशिंगटन में राष्ट्रपति बराक ओबामा के साथ बैठक में इस मुद्दे को उठाया था. अंतरराष्ट्रीय मत भी ड्रोन हमलों के खिलाफ है. हमारा मानना है कि इस तरह के हमले उपयोगी नहीं है. यह मुमकिन है कि कुछ तालिबान और अल कायदा के नेता इन हमलों में मारे जाएं, लेकिन इस तरह के हमलों से कहीं ज्यादा बड़ा नुकसान होता है. अहम बात यह है कि अमेरिकी ड्रोन हमले अंतरराष्ट्रीय कानून के खिलाफ हैं. अंतरराष्ट्रीय संबंध कुछ सिद्धांतों का पालन करते हैं और हमले उनका उल्लंघन कर रहे हैं. हम इस समस्या को हल करने के लिए सभी राजनयिक साधन का इस्तेमाल कर रहे हैं.

इंटरव्यू : इम्तियाज अहमद/एए

संपादन : मानसी गोपालकृष्णन

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