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अब कहां हैं लाल मस्जिद के इमाम रहे अब्दुल अजीज?

२८ सितम्बर २०१७

अपमानित होने और नजरबंद रहने के बावजूद पाकिस्तान की कुख्यात लाल मस्जिद के मौलाना अपने चिर परिचित नारों के साथ चरमपंथियों की नयी पीढ़ी को प्रेरणा देने में जुटे हैं.

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Maulana Abdul Aziz verhaftet
तस्वीर: picture-alliance/dpa/M. Chaudhry

इस्लामाबाद की कुख्यात लाल मस्जिद पर 10 साल पहले सेना ने धावा बोला था, अंतरराष्ट्रीय सुर्खियों में उछला यह मामला पाकिस्तान को शर्मिंदा और हैरान करने वाला था. हालांकि अब यह जान कर शायद लोगों को ज्यादा हैरानी होगी कि मस्जिद के मौलाना अब्दुल अजीज अब भी उतने ही असरदार हैं, मदरसों के एक नेटवर्क का इंतजाम देख रहे हैं और इसके जरिये पाकिस्तान में "खिलाफत" कायम करने की मंशा है. यह और बात है कि लाल मस्जिद में अब उनका स्वागत नहीं होता.

लाल मस्जिद के इमाम रहते अजीज ने अपने भड़काऊ भाषणों और पश्चिमी दुनिया के खिलाफ जेहाद की अपीलों और इस्लाम की कट्टरपंथी व्याख्या कर ख्याति हासिल की थी. अजीज अपना संदेश हजारों छात्रों तक पहुंचाते रहे. ये छात्र ग्रामीण इलाकों के बेहद गरीब बच्चे थे जिन्हें मुफ्त शिक्षा देने के नाम पर मस्जिद से जुड़े मदरसों में लाया जाता है. आलोचकों का कहना है कि यहां उनका ब्रेनवाश किया जाता था. 2007 में यह अभियान अपने चरम पर पहुंच गया. अजीज के हथियारबंद समर्थक उनका संदेश राजधानी की सड़कों और गलियों तक पहुंचाने में जुट गये. सीडी और डीवीडी के दुकानों की तोड़फोड़ की जाने लगी, चायनीज मसाज करने वालों का अपहरण किया जाने लगा, नतीजा यह हुआ कि तनाव बढ़ने लगा और झड़पें होने लगी जिनमें लोगों की हत्या तक हुई.

इसके बाद जब 10 जुलाई 2007 को तत्कालीन राष्ट्रपति परवेज मुशर्रफ ने मस्जिद पर कार्रवाई का आदेश दिया तो सेना को भारी हथियारों से लैस जेहादियों से मुकाबला करना पड़ा. इस विवादित अभियान का टीवी पर लगातार लाइव प्रसारण हुआ. हफ्ते भर चला सेना का अभियान 100 से ज्यादा लोगों की मौत और मस्जिद के मौलाना के साथ कई लोगों की गिरफ्तारी के बाद खत्म हुआ. धार्मिक स्थल पर सेना के हमले की पूरे देश में प्रतिक्रिया भी हुई और कट्टरपंथियों ने इस मौके को खूब भुनाया. इसके नजीजे में पाकिस्तानी तालिबान का उदय हुआ. तहरीक ए तालिबान पाकिस्तान ने सरकार के खिलाफ कई सारे हमले किये. बाद के सालों में हिंसा काफी तेज हो गयी और हजारों पाकिस्तानी लोग मारे गये या फिर अपना घर छोड़ कर भागने पर विवश हुए. अजीज बुर्का पहन कर भागने की कोशिश के दौरान गिरफ्तार कर लिये गये और उन पर मुकदमा चला. उन्हें सीधे टीवी स्टेशन ले जाया गया और बुर्के में ही लोगों के सामने पेश किया गया. इस घटना के बाद लोग उन्हें "मुल्ला बुर्का" भी कहने लगे.

अजीज पर दो दर्जन से ज्यादा मामलों में आरोप लगे जिनमें नफरत फैलाने, हत्या और अपहरण तक के आरोप शामिल हैं. हालांकि 2009 में अजीज को जमानत पर रिहा कर दिया गया. नागरिक अधिकार कार्यकर्ता और पेशे से वकील जिब्रान नासिर बताते हैं, "उन्हें सभी मामलों में बरी कर दिया गया और सरकार ने उनके खिलाफ अपील नहीं करने का फैसला किया. उन्हें दोषी साबित करने की मंशा ही नहीं थी." कुछ दिनों तक अजीज नजरबंद भी रहे लेकिन अब वह फिर से नयी पीढ़ी को अपने नफरत भरे भाषणों से प्रभावित करने में जुटे हैं और उन्हें नतीजों की कोई फिक्र नहीं.

आतंकवाद विरोधी कार्यकर्ता परवेज हूदभाई कहते हैं, "यह बहुत अजीब है कि सेना तहरीक ए तालिबान पाकिस्तान के पीछे पड़ गयी लेकिन अजीज के खिलाफ नहीं. वह जिस मकसद के लिए काम कर रहे थे उसके प्रति सहानुभूति थी और उन पर फिर कार्रवाई होगी, इसका डर उतना नहीं था."

अजीज को कुख्यात आतंकवादी ओसामा बिन लादेन से अच्छे रिश्ते की वजह से भी जाना जाता है और वह इस्लामिक स्टेट के प्रति भी सहानुभूति जताते हैं. उन्होंने शार्ली एब्दो के दफ्तर पर हमले जैसी आतंकवादी हरकतों को जायज ठहराया है. राजनीतिक विश्लेषक जाहिद हुसैन कहते हैं, "अब्दुल अजीज और दूसरे कट्टरपंथी मौलानाओं को जो अभयदान मिला है उससे राजधानी में 2007 वाली स्थिति फिर पैदा होने का डर है." 2007 में उनके मदरसे के छात्र आईएस के समर्थन में नारे लगा रहे थे और अब्दुल अजीज ने इसकी कोई निंदा नहीं की. अजीज ने एक टीवी इंटरव्यू के दौरान कहा था, "दुनिया और पाकिस्तान में एक खिलाफत होनी चाहिए."

पाकिस्तानी सेना के पूर्व जनरल तलत मसूद कहते हैं, "अजीज को बर्दाश्त किया जाता है क्योंकि उन्हें छूने का मतलब बर्रे के छत्ते में हाथ डालना है." मसूद के मुताबिक लोगों की संवेदनशीलता और धार्मिक सवालों को देखते हुए दखल देने से उनके लिए "सहानुभूति बढ़ने का खतरा है." हालांकि प्रशासन उन पर कुछ सख्ती बढ़ाने की कोशिश में है.

अजीज को अब लाल मस्जिद में जाने की इजाजत नहीं है और इसे अब सरकार के अधीन कर लिया गया है. अब्दुल अजीज को पाकिस्तान की आतंकवादियों की सूची में भी डाला गया है. लाल मस्जिद पर हमले की दसवीं सालगिरह पर उनके समर्थकों की रैली पर कोर्ट ने पाबंदी लगा दी. हाल के महीनो में कई बार उन मस्जिदों को जाती सड़कों को तब बंद किया गया जहां अब्दुल अजीज रैली कर रहे थे और शुक्रवार को उन्हें भाषण देने से रोकने के भी इंतजाम किया गये. फोन के जरिये भाषण देने की कोशिश भी नाकाम की गयी.

लाल मस्जिद के नये इमाम मौलाना आमिर सादिक 30 साल के हैं और वह कहते हैं कि अब समय है कि अतीत को भूला दिया जाए और दशक भर पुरानी उस चमरपंथी सोच को भी. आमिर अजीज के भतीजे हैं. उनके मुताबिक, "हमें आतंकवाद और खुद के बीच दूरी बनानी होगी."

एनआर/एके (एएफपी)