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अब किसके लिए खत लिखें

२ जनवरी २०१४

शकील अहमद के दिल में कई ऐसे राज छुपे हैं जो उन्होंने लोगों के खत लिखते वक्त जाने. दसियों साल परदेसियों के घर जाने वाले खतों में उन्होंने प्यार की कस्में खाईं और जल्दी मिलने के वादे किए, लेकिन अब कोई खत लिखवाने नहीं आता.

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तस्वीर: Sanjay Kanojia/AFP/Getty Images

आर्थिक राजधानी होने के नाते मुंबई में रोजगार की कमी नहीं थी. आए दिन सैकड़ों लोग गावों से शहर कमाने के लिए आया करते थे और अपनी मेहनत की कमाई घर भेजा करते थे. उस समय बैंक ट्रांसफर करना मिनटों का काम नहीं था. शकील ने बताया, "कई यौनकर्मी लड़कियां भी हमारे पास आती थीं लेकिन कभी नहीं बताती थीं कि वे मुंबई में पैसे कमाने के लिए क्या करती हैं. वे बस कहती थीं कि मुंबई में नौकरी कर रही हैं और तनख्वाह पा रही हैं."

खत लिखने वालों की कामयाबी का राज होता था उनका लोगों की चिट्ठी का राजदार रहना. शकील कहते हैं, "हमें राज छुपाकर रखने होते थे. अगर ग्राहक हम पर भरोसा नहीं करेंगे तो हमारे पास आएंगे भी नहीं." कई बार खत लिखते समय वे उसे और खूबसूरत बनाने के लिए उसमें अपनी रचनात्मकता का इस्तेमाल भी कर लिया करते थे. शहर के पुराने डाकखाने के बाहर अपनी मेज लगाए बैठे शकील कहते हैं, "हजारों लोग आया करते थे. हमारे पास खाना खाने का समय नहीं होता था. पिछले करीब सात सालों में यह चलन धीरे धीरे खत्म हो गया है."

मुंबई के इस दक्षिणी इलाके में करीब 17 चिट्ठी लिखने वाले होते थे. अब इनमें से सिर्फ आठ बचे हैं. इनका काम अब बस लोगों के पार्सल पैक करने या फॉर्म भरने तक ही रह गया है.

शकील की मेज पर पुराने पेनों से भरा एक टिन का डिब्बा और पार्सल में इस्तेमाल होने वाला खादी का कपड़ा रखा है. पास ही मोमबत्ती भी है जिससे वह अपनी मुहर लगाते हैं. 14 साल की उम्र में यह काम शुरू करने वाले शकील आज 40 साल के हैं. इस काम में इस्तेमाल होने वाला सामान तो आज बदल चुका है, साथ ही लोगों के संदेश पहुंचाने के तरीके भी बदल गए हैं.

मोबाइल फोन के आने से संचार में आई क्रांति ने संदेश पहुंचाना पलक झपकाने जैसा काम कर दिया. बैंकों से आज तुरंत रकम स्थानांतरित हो जाती है. जो पढ़े लिखे नहीं हैं उन्हें भी किसी के पास मदद के लिए जाने की जरूरत नहीं. जब फोन पर ही बात हो जाती है तो कुछ लिखने या लिखवाने की जरूरत ही कहां है. शकील कहते हैं, "आजकल तो मोबाइल के बगैर आप कुछ कर ही नहीं सकते हैं."

शकील की ही तरह काम करने वाले एक व्यक्ति ने बताया कि वह करीब 200 से 400 रुपये रोज कमा लेते हैं. उनके पांच बच्चे हैं और उनका पेट भरने के लिए इतने पैसे काफी हैं. जबकि पास ही बैठे उनके एक और साथी को दिन भर में सिर्फ दस रुपये का ही काम मिला. कई विदेशी पर्यटक भी कई बार इनके पास आकर ऐसा सामान पैक कराते हैं जो ये लोग अपने मुल्क भेजते हैं या साथ ले जाते हैं. पास के इलाके के कुछ पुराने अनपढ़ लोग अक्सर मनी ऑर्डर फॉर्म भरवाने आ जाते हैं.

इस साल जुलाई में भारत ने 163 साल पुरानी टेलीग्राम सेवा भी बंद कर दी. 1947 में देश के विभाजन के समय भारत से करीब दो करोड़ संदेश भेजे गए थे. लेकिन समय और तकनीक की बढ़ती रफ्तार के बीच काम खो बैठे कुछ डाकिये चौकीदार बनकर रह गए तो कुछ क्लर्क. शकील कहते हैं, "मेरे पिता ने भी यही काम किया और मैंने भी. लेकिन अब इसमें कोई फायदा नहीं है, मैं भला क्यों चाहूंगा कि मेरा बेटा यह काम करे."

एसएफ/एमजी (एएफपी)

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