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अब तंग नहीं करेंगी बुरी यादें

२८ अगस्त २०१४

पुरानी दर्दनाक यादें कई बार जीवन भर साथ रहती हैं और वक्त बेवक्त परेशान करती रहती हैं. मन में बार बार यह ख्याल आता है कि काश इन्हें मन के कागज से मिटाया जा सकता. ऐसा करना अब मुमकिन होगा.

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तस्वीर: jorgophotography - Fotolia.com

न केवल बुरी यादों को मिटाया जा सकता है, बल्कि उनकी जगह मन के कोरे कागज पर अच्छी यादें भी लिखी जा सकती हैं. न तो यह मजाक है और न ही किसी फिल्म की स्क्रिप्ट. वैज्ञानिकों ने चूहों के साथ ऐसा कर दिखाया है. बस अब इंसानों पर इसे कर दिखाने का इंतजार है. उम्मीद की जा रही है कि इस तकनीक से डिप्रेशन से गुजर रहे लोगों को काफी फायदा मिलेगा. किसी हादसे के कारण सदमा लगने पर होने वाले पोस्ट ट्रॉमैटिक स्ट्रेस डिसॉर्डर (पीटीएसडी) में भी यह फायदेमंद साबित होगा.

दिमाग पर काबू

यह रिसर्च जापान और अमेरिका की रिसर्च इंस्टीट्यूट ने मिल कर किया है. इस पर शोध करने वाले जापानी वैज्ञानिक सुसुमु टोनेगावा का कहना है, "नतीजे बताते हैं कि मौजूदा साइकोथेरेपी सही दिशा में काम कर रही है." शोध के लिए ऑप्टोजेनेटिक्स का इस्तेमाल किया गया. यह दिमाग पर काबू करने वाली ऐसी तकनीक है जिसमें रोशनी का इस्तेमाल कर यह समझा जाता है कि जब हम किसी याद में डूबते हैं तो दिमाग किस तरह की प्रतिक्रिया देता है.

इंसानी दिमाग किसी कंप्यूटर की ही तरह काम करता है. यादों को जमा करने के लिए हार्ड डिस्क का काम करता है हिपोकैम्पस. यह यादें अच्छी हैं या बुरी इसे समझने और डीकोड करने का काम होता है एमिग्डाला का. हिपोकैम्पस और एमिग्डाला के आपसी संपर्क से ही अच्छे बुरे एहसास होते हैं. वैज्ञानिकों ने पाया कि दिमाग के इन दोनों हिस्सों के बीच का संबंध अब तक की जानकारी से काफी ज्यादा लचीला है. इस संपर्क में ही फेर बदल कर यादों के साथ छेड़ छाड़ की जा सकती है.

कितनी हावी हैं यादें

टोनेगावा ने इसके बारे में बताया, "फर्क इस बात से पड़ता है कि अच्छी या बुरी यादें आप पर कितनी हावी हैं. दोनों ही एहसास दिमाग में अपने सर्किट बनाते हैं और आपस में लड़ते हैं." इसे समझने के लिए चूहों को दो समूहों में बांटा गया. एक समूह को बिजली के झटके दिए गए तो दूसरे को मादा चूहों के साथ वक्त बिताने को मिला. इन सभी चूहों को लाइट सेंसिटिव प्रोटीन दिया गया था जो दिमाग में हो रही हलचल को दर्शा रहा था.

रोशनी से मिले डाटा को जमा किया गया. बाद में इस डाटा की मदद से कृत्रिम रूप से चूहों को अपने अपने अनुभव याद कराए गए. जिस समय वे इन यादों से गुजर रहे थे, उन्हें उल्टे अनुभव दिए गए. यानि जो चूहे बिजली के झटकों को याद कर रहे थे उनके पास मादा चूहों को भेज दिया गया और जो अपने साथी को याद कर रहे थे उन्हें झटके दिए गए. टोनेगावा बताते हैं कि जब नया अनुभव बिलकुल उसी अवस्था में हुआ तो चूहों के दिमाग से पहला अनुभव मिट गया.

वैज्ञानिक उम्मीद कर रहे हैं कि युद्ध से लौटे जवानों पर यह तकनीक काम कर सकेगी. युद्ध के दिल दहला देने वाले तजुर्बे आजीवन लोगों को परेशान करते हैं. लेकिन अगर उन्हें मिटा कर उनकी जगह अच्छे अनुभव लिख दिए जाएं, तो शायद सदमे से गुजर रहे जवानों की खुशी कुछ हद तक वापस लाई जा सकती है.

आईबी/एमजे (एएफपी)

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