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समाज

अब तो रिवाज बन चुका है रिश्वत देना

प्रभाकर मणि तिवारी
२३ नवम्बर २०१८

एक ताजा सर्वेक्षण के अनुसार बीते एक साल में भारत में रिश्वतखोरी के मामले बढे हैं. 56 फीसदी लोगों ने माना कि सुविधाएं हासिल करने के लिए उन्हें रिश्वत देनी पड़ी.

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Indien Geldverleiher in Ahmedabad
तस्वीर: REUTERS/File Photo/A. Dave

भारत में तमाम कानूनों और भ्रष्टाचार पर अंकुश लगाने के सरकारी दावों के बावजूद रिश्वतखोरी एक सामाजिक रिवाज बन चुकी है. आंकड़े दिखाते हैं कि देश में बीते एक साल में रिश्वतखोरी बढ़ी है. एक ताजा सर्वेक्षण में कहा गया है कि बीते एक साल के दौरान नागरिक सुविधाएं हासिल करने के लिए 56 फीसदी भारतीयों को रिश्वत देनी पड़ी.

इससे साफ है कि रिश्वत का लेन-देन अब एक अलिखित परंपरा बन गया है. उत्तर प्रदेश, पंजाब और मध्यप्रदेश के सरकारी बाबू रिश्वत लेने के मामले में सबसे भ्रष्ट हैं. यह हालत तब है, जब देश में लोकसभा और विधानसभा के लिए होने वाले हर चुनाव में तमाम राजनीतिक दल भ्रष्टाचार को ही अपना प्रमुख मुद्दा बनाते रहे हैं.

सर्वेक्षण के नतीजे 

ताजा रिपोर्ट में कहा गया है कि बीते एक साल में 56 फीसदी लोगों ने अपना काम कराने के लिए रिश्वत देने की बात कबूल की है. यह आंकड़ा एक साल पहले के मुकाबले 11 फीसदी ज्यादा है. इससे साफ है कि भ्रष्टाचार-निरोधक कानूनों में संशोधन और सरकारी व गैर-सरकारी प्रतिष्ठानों में विजिलेंस विभाग की सक्रियता के बावजूद रिश्वत के लेन-देन के मामले थमने की बजाय लगातार बढ़ रहे हैं. यह ऑनलाइन सर्वेक्षण स्थानीय संगठन लोकल सर्कल ने ट्रांसपेरेंसी इंटरनेशनल इंडिया के साथ मिल कर किया है.

इस रिपोर्ट में कहा गया है कि संपत्ति के पंजीकरण और जमीन संबंधी विभागों में भ्रष्टाचार सबसे ज्यादा है. इसके अलावा रिश्वत का लेन-देन ज्यादातर नकदी की शक्ल में ही हुआ है. सर्वेक्षण में शामिल 39 फीसदी लोगों का कहना था कि उन्होंने अपना काम कराने के लिए संबंधित अधिकारियों को सीधे नकदी दी.

रिपोर्ट में कहा गया है कि रिश्वत के कुल लेन-देन का 30 पीसदी इन दोनों विभागों में ही होता है. इसके बाद 25 फीसदी हिस्से के साथ पुलिस विभाग दूसरे स्थान पर है. नगर निगम के विभिन्न विभागों, बिजली बोर्ड, परिवहन विभाग और टैक्स तय करने वाले दफ्तर 18 फीसदी हिस्से के साथ रिश्वतखोरी के मामले में तीसरे स्थान पर रहे.

उक्त सर्वेक्षण में देश के 13 राज्यों को शामिल किया गया था. उनमें गुजरात, केरल और आंध्र प्रदेश में भ्रष्टाचार बाकी राज्यों के मुकाबले बहुत कम था. लेकिन उत्तर प्रदेश, पंजाब, मध्यप्रदेश व तमिलानाडु इस मामले में शीर्ष पर थे. उत्तर प्रदेश में तो 59 फीसदी लोगों को अपना काम कराने के लिए सरकारी बाबुओं को रिश्वत देनी पड़ी. इससे पहले मार्च में जारी ट्रांसपेरेंसी इंटरनेशनल की ओर से जारी भ्रष्ट देशों की सूची में भारत को 81वें स्थान पर रखा गया था.

कहां दी जाती है सबसे ज्यादा रिश्वत

कानून में संशोधन

देश में लगातार बढ़ते भ्रष्टाचार पर काबू पाने के लिए संसद ने इसी साल जुलाई में भ्रष्टाचार-निरोधक (संशोधन) अधिनियम 2018 पारित किया था. इसमें रिश्वत का लेन-देन करने वालों को सात साल तक की सजा का प्रावधान है. लेकिन सर्वेक्षण में शामिल 41 फीसदी लोगों का कहना था कि कानून में इस संशोधन से रिश्वतखोरी के प्रचलन पर खास असर नहीं पड़ा है. 82 फीसदी लोगों का कहना था कि संबंधित राज्य सरकारों ने भ्रष्टाचार पर अंकुश लगाने की दिशा में कोई ठोस पहल नहीं की है.

दिलचस्प बात यह है कि 91 फीसदी लोगों को यह पता ही नहीं था कि उनके राज्य में सरकार ने कोई भ्रष्टाचार-निरोधक हेलपलाइन नंबर भी शुरू किया है. इससे साफ है कि संबंधित राज्य सरकारें इस बारे में जागरूकता फैलाने में नाकाम रही हैं.

समाजशास्त्रियों का कहना है कि भारत में भ्रष्टाचार की जड़ें काफी गहरीं हैं. जिन लोगों और संस्थानों पर इस कुरीति पर अंकुश लगाने की जिममदारी है, वही भ्रष्टाचार की बहती गंगा में डुबकी लगा रहे हैं. समाजशास्त्री प्रोफेसर बीरेश्वर लाहिड़ी कहते हैं, "भारत में रिश्वतखोरी का चलन कोई नया नहीं है. दीवाली और नए साल के मौके पर कॉरपोरेट कंपनियों की ओर से उपहार भेजने का प्रचलन भी दरअसल रिश्वत का ही एक रूप है." वह कहते हैं कि तमाम कंपनियां उन लोगों को ही महंगे उपहार भेजती हैं, जो आगे चल कर उनके हितों की रक्षा कर सकते हैं. ऐसे लोगों में नेता, पत्रकार और सरकारी अधिकारी शामिल हैं. प्रोफेसर लाहिड़ी बताते हैं कि इन उपहारों में महंगे घरेलू सामानों के अलावा परिवार समेत मुफ्त विदेश यात्राएं भी शामिल रहती हैं.

एक गैर-सामाजिक संगठन के प्रमुख शंकर नाथ कहते हैं, "काम कराने के लिए रिश्वतखोरी एक अलिखित सामाजिक पंरपरा बन गई है. कुछ काम तो ऐसे हैं, जो बिना रिश्वत दिए हो ही नहीं सकते. नतीजतन लोग इधर-उधर शिकायत करने की बजाय कुछ ले-दे कर काम करा लेने में ही भलाई समझते हैं." विशेषज्ञों का कहना है कि महज कानून बनाने से भ्रष्टाचार पर अंकुश लगाना मुश्किल है. इस कानून को कड़ाई से लागू करने और आम लोगों में जागरूकता पैदा करने की ठोस पहल से ही स्थिति में सुधार संभव है.

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