अब प्रिंट करें अपना मकान
४ अगस्त २०१४ज्यूरिख की टेकनिकल यूनिवर्सिटी के मिषाएल हांसमायर और बेन्यामिन डिलेनबुर्गर ने थ्रीड़ी प्रिंटिंग से एक पूरा कमरा बनाया है. वह इसे डिजिटल ग्रोटेस्क कहते हैं. मिषाएल हांसमायर कहते हैं, "पुराने जमाने में इस तरह का विस्तृत आर्किटेक्चर होता था. बारोक काल के चर्च और रोकोको का आर्किटेक्चर. इसे बनाने में बहुत समय लगता था. इस तरह की कलाकृति बनाने के लिए कलाकारों को कई कई साल लग जाते थे."
इसके विपरीत गोथिक स्टाइल का कमरा बनाने में आर्किटेक्ट्स को कुछ ही महीने लगे. अल्गोरिदम के जरिए उन्होंने हर कोना और मोड़ तैयार किया, ताकि कमरे के हिस्से बन सकें. इनमें से कुछ ऐसे थे जो सामान्य हाथ के काम से तैयार नहीं किया जा सकता बल्कि सिर्फ थ्रीडी प्रिंटर के जरिए हो सकता है.
बेन्यामिन डिलेनबुर्गर बताते हैं, "दिक्कत अक्सर नापने में होती है, यानि बारिकी में. अब इस तकनीक से कोई सीमाएं बची ही नहीं हैं, ज्योमेट्री में पहली बार ऐसा हो रहा है."
थ्रीडी प्रिंटर के जरिए सिर्फ दो दिन में ही महीन रेत की परतें डिजाइन के मुताबिक जमती जाती हैं. खास गोंद इन हिस्सों को चिपका देता है. जब ये कड़ी हो जाती है तो फिर अतिरिक्त रेत डिजाइन से हटाई जाती है और इसका फिर से इस्तेमाल किया जा सकता है. इसके बाद टीम हर हिस्से को जोड़ कर एक बड़ा सा कमरा बनाती है. हर हिस्से को बिना किसी अतिरिक्त खर्च के बनाया जा सकता है, यानि निजी जरूरत और पसंद के हिसाब से इसे ढाला जा सकता है.
नीदरलैंड्स के एम्स्टरडम में आर्किटेक्ट एक और कदम आगे बढ़े हैं. उन्होंने थ्रीडी प्रिंटर से पूरी इमारत ही छाप दी है. प्लास्टिक से बना है यहां का कनाल हाउस. इसके हिस्से एक खास मशीन से बनाए गए हैं जो सीधे कंस्ट्रक्शन साइट पर प्रिंट करती है. इसके बाद किसी खिलौने की तरह एक एक करके इसके हिस्से जोड़े जाते हैं. डीयूएस आर्किटेक्स के हांस फेरम्यूलन कहते हैं, "थ्रीडी प्रिंटिंग में तेजी और मटीरियल अहम हैं. आज का कंस्ट्रक्शन तेजी से बढ़ते मेगा शहरों से तालमेल नहीं रख पा रहा. इसलिए मुझे लगता है कि थ्री डी प्रिंटिंग पर आधारित आर्किटेक्चर अगले पांच, दस या पंद्रह साल में और अहम होता जाएगा."
यूरोप के कई आर्किटेक्ट प्रिंटर से निकलने वाले घर का कंसेप्ट विकसित कर रहे हैं. एम्सटरडम का यूनिवर्स आर्किटेक्चर नकली बलुआ पत्थर से लैंडस्केप हाउस बनाने का विचार कर रहा है. वहीं फॉस्टर एंड पार्टनर्स नाम की कंपनी यूरोपीय स्पेस एजेंसी के साथ मून बेसिस पर विचार कर रही है, जो चांद की रेत से ही वहीं प्रिंट हो जाया करेगा.
रिपोर्टः आंत्ये बिंडर/एएम
संपादनः मानसी गोपालकृष्णन