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बैंकिंग फ्रॉड से ग्राहकों को बचाने की पहल

प्रभाकर१६ अगस्त २०१६

रिजर्व बैंक ने ऑनलाइन बैंकिंग फ्रॉड से ग्राहकों को बचाने की दिशा में पहल करते हुए एक शून्य जवाबदेही की नीति तय की है. ग्राहक अगर तीन दिनों के भीतर बैंक को धोखाधड़ी की सूचना दे देता है, तो उसका कोई नुकसान नहीं होगा.

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Indien - Federal Reserve Bank of India
तस्वीर: Getty Images

देश में लगातार बढ़ते साइबर अपराधों को ध्यान में रखते हुए इसे ग्राहकों के हित में एक ठोस पहल माना जा रहा है. अनधिकृत इलेक्ट्रॉनिक लेन-देन के मामले में लगातार बढ़ती शिकायतों को ध्यान में रखते हुए बैंक ने कहा है कि अगर ग्राहक ऐसे मामलों की जानकारी तीन दिनों के भीतर दे देता है तो उसको कोई आर्थिक नुकसान नहीं होगा. अगर ऐसे मामले चार से सात दिनों के भीतर बैंक के समक्ष आते हैं, तो भी ग्राहकों को महज पांच हजार रुपये का ही नुकसान होगा, फिर फ्रॉड की रकम चाहे कितनी भी क्यों न हो.

यानी अब ऐसी घोखाधड़ी के जरिये होने वाले नुकसान का खमियाजा बैंकों को भरना होगा. यही नहीं, रिजर्व बैंक ने अपने सर्कुलर में कहा है कि अगर धोखाधड़ी में बैंक का कोई कर्मचारी शामिल है, तो ग्राहकों को हर हाल में अपना पैसा वापस मिल जाएगा. ग्राहकों का तीन दिन का समय उस दिन शुरू होगा जब उसे एसएमएस, ईमेल या स्टेटमेंट के जरिये ऐसे किसी लेन-देन की सूचना मिलेगी, जो उसकी जानकारी में नहीं हो.

बढ़ता ऑनलाइन लेन-देन

नए नियम हर तरह के इलेक्ट्रॉनिक लेन-देन पर लागू होंगे, चाहे वह नेट बैंकिंग के जरिये हुआ हो या फिर किसी दुकान पर डेबिट या क्रेडिट कार्ड के जरिये. किसी ग्राहक ने अगर अपना पासवर्ड या पिन नंबर किसी को दिया है, तो बैंक को सूचित नहीं करने तक नुकसान की जिम्मेदारी उसकी होगी. बैंकों से ग्राहकों को वेबसाइट, ईमेल, आईवीआरएस और टोल-फ्री फोन नंबर का विकल्प देने को कहा गया है ताकि वह शीघ्र अपने साथ हुई धोखाधड़ी की सूचना बैंक को दे सके. इसके अलावा वह अपनी बैंक शाखा में जाकर भी इसकी सूचना दे सकता है. बैंकों के लिए शिकायत की प्राप्ति की सूचना ग्राहक को देना अनिवार्य होगा. इसके अलावा उसे दस दिनों के भीतर ग्राहक के खाते में धोखाधड़ी वाली रकम वापस करनी होगी.

रिजर्व बैंक ने ग्राहकों के हित में अपनी यह नीति ऐसे समय में शुरू की है जब ऑनलाइन और मोबाइल पेमेंट सौ फीसदी की दर से बढ़ रहे हैं. इस लेन-देन को आसान बनाने के लिए बैंक और ऑनलाइन पेमेंट कंपनियां रिजर्व बैंक से कम रकम वाले लेन-देन के लिए दोहरी पुष्टि प्रणाली को खत्म करने की वकालत कर रही हैं. उनका कहना है कि कार्ड के ब्योरे के अलावा पिन या वन टाइम पासवर्ड (ओटीपी) की अनिवार्यता खत्म कर देने से लेन-देन और आसान हो जाएगा. लेकिन रिजर्व बैंक की दलील है कि बैंकिंग प्रणाली का मौजूदा विवाद निपटान तंत्र पूरी तरह मजबूत नहीं है.

चिप-आधारित कार्ड

भारतीय रिजर्व बैंक ने हाल के दिनों में ग्राहकों की सुरक्षा के लिए एटीएम कार्ड को चिप-आधारित बनाने जैसे कई कदम उठाए हैं. दरअसल अब तक प्रचलित डेबिट या क्रेडिट कार्ड को क्लोन करना बेहद आसान है. सूचना सुरक्षा कंपनी इनफाइसेक के संस्थापक विनोद सेंथिल कहते हैं, "अमेजन या फ्लिपकार्ट से कोई भी एक कार्ड रीडर-राइटर खरीद सकता है. इसके बाद किसी भी कार्ड की नकल कर लेना बेहद आसान है." बैंकरों का कहना है कि डेबिट कार्ड की नकल कर क्लोन तैयार करना सबसे आसान है. रिजर्व बैंक पहले ही 31 दिसंबर 2018 तक मैग्नेटिक स्ट्रिप आधारित तमाम कार्डों का प्रचलन बंद करने का निर्देश दे चुका है.

लेकिन मुश्किल यह है कि ज्यादातर एटीएम चिप-आधारित कार्डों को पढ़ नहीं सकते. उनको मैग्नेटिक स्ट्रिप वाले कार्डों को पढ़ने के लिए बनाया गया है. नेशनल पेमेंट्स कॉर्पोरेशन ऑफ इंडिया ने कहा है कि एटीएम मशीनों को अपग्रेड करने में एक हजार करोड़ से ज्यादा का खर्च आएगा. ऐसे में इसका कुछ बोझ ग्राहकों को भी उठाना पड़ सकता है. बावजूद इसके रिजर्व बैंक की नई नीति से ग्राहक चैन की सांस ले सकते हैं.