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अब ब्लड टेस्ट बताएगा कि स्किन कैंसर है या नहीं

१८ जुलाई २०१८

स्किन कैंसर का पता लगाने के लिए पहली बार एक ब्लड टेस्ट विकसित किया गया है. ऑस्ट्रेलिया के शोधकर्ताओं का दावा है कि इससे मेलानोमा के शुरुआती चरण के बारे में पता लगाया जा सकेगा.

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Melanoma - Hautkrebs - Illustration der Krebszellen
तस्वीर: Imago/Science Photo Library/A. Pasieka

मेलानोमा यानि स्किन कैंसर के बारे में अगर शुरुआती चरण में पता चल जाए तो अगले पांच वर्षों तक जीने की संभावना 90 से 99 फीसदी तक हो जाती है. एडिथ काउवान यूनिवर्सिटी में शोध का नेतृत्व कर रहे पाउलीन जाएनकर के मुताबिक, अगर शुरुआती चरण में कैंसर का पता न चले तो यह पूरे शरीर में फैलने लगता है और अगले 5 साल तक जीवित रहने की संभावना घटकर 50 फीसदी हो जाती है. फिलहाल मेलानोमा का पता लगाने के लिए डॉक्टर उसे देखकर या बायोप्सी का सहारा लेकर जांच करते हैं. नए ब्लड टेस्ट के जरिए ऑटोएंडीबॉडीज की जांच की जाती है जो मेलानोमा से लड़ने के लिए शरीर में विकसित होता है. 

जाएनकर कहते हैं, "शरीर में जैसी ही मेलानोमा विकसित होना शुरू होता है, ये एंटीबॉडीज पैदा होने लगते हैं. इसका पता ब्लड टेस्ट के जरिए लगाया जा सकता है."

केले की मदद से कैंसर की जांच

शोधकर्ताओं ने मेलानोमा का पता लगाने के लिए 1,627 विभिन्न प्रकार के एंडीबॉडीज की जांच की जिसमें से 10 की पहचान हो सकी. इस ट्रायल में 105 मेलानोमा के और 104 स्वस्थ्य लोगों पर टेस्ट किया गया. करीब 79 फीसदी मामलों में मेलानोमा के शुरुआती चरण के बारे में पता चला. इस रिसर्च के बारे में ऑन्कोटारगेट जर्नल में विस्तृत लेख प्रकाशित हुआ है.

मेलानोमा रिसर्च ग्रुप के प्रोफेसर मेल जिमान के मुताबिक, अगर यह प्रयोग सफल रहा तो हम इसे पैथोलॉजी क्लिनिक में इस्तेमाल कर सकते हैं. इस रिसर्च का उद्देश्य है कि बायोप्सी और अन्य कैंसर जांच के पहले ही मेलानोमा के बारे में पता लगाया जा सके. जिन लोगों के चेहरे पर तिल अधिक होते है, पीले रंग की चमड़ी होती है या आनुवांशिक बीमारी रहती है, उनमें स्किन कैंसर का खतरा अधिक पाया जाता है. मेलानोमा एक खतरनाक कैंसर है जो आमतौर पर यूवी लाइट या सूरज की किरणों से होता है. न्यूजीलैंड के बाद ऑस्ट्रेलिया में सबसे अधिक मेलानोमा के मरीज पाए जाते हैं. हर साल यहां औसतन 14 हजार नए मरीजों का पता चलता है और करीब दो हजार की हर साल मौत होती है. 

चेस विंटर/वीसी

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