1. कंटेंट पर जाएं
  2. मेन्यू पर जाएं
  3. डीडब्ल्यू की अन्य साइट देखें

आखिरकार अखबारों में छपने लगेंगी खबरें

१२ मार्च २०१९

चुनावी तारीखों की घोषणा होने से पहले तक देश के अखबार पार्टियों के विज्ञापनों से भरे रहे. लेकिन आचार संहिता लागू होने के बाद पाठकों को विज्ञापनों से राहत मिल सकेगी.

https://p.dw.com/p/3EqKR
Indien Anzeigenkampagne der Regierung in Zeitungen
तस्वीर: DW/M. Jha

अखबारों के पन्नों से प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की बड़ी बड़ी तस्वीरें 10 मार्च के बाद से गायब हो गई हैं. भारत में चुनावों की घोषणा के साथ ही प्रभाव में आई चुनावी आचार संहिता ने अखबारों के पाठकों को अब विज्ञापन की बजाय खबरों से रूबरू होने का मौका दे दिया है. समाचार एजेंसी रॉयटर्स की एक रिपोर्ट के मुताबिक 1 मार्च से 10 मार्च के बीच देश के अधिकतर बड़े अखबारों में सरकारी विज्ञापन छाए रहे.

प्रधानमंत्री को दिखाने वाले विज्ञापनों की संख्या भी 150 से अधिक रही. टाइम्स ऑफ इंडिया, द हिंदुस्तान टाइम्स, द इंडियन एक्सप्रेस समेत हिंदी और अन्य भाषाओं के अखबारों में विज्ञापन पेज आते रहे. अकेले टाइम्स ऑफ इंडिया, द हिंदुस्तान टाइम्स, द इंडियन एक्सप्रेस के दिल्ली संस्करण में इन दस दिनों के दौरान 162 सरकारी विज्ञापन छापे गए, जिसमें से 93 फुल पेज विज्ञापन थे.

अधिकतर विज्ञापनों में मोदी की तस्वीरों समेत केंद्र की एनडीए सरकार के शुरू किए गए कार्यक्रमों का उल्लेख था, जिसमें ग्रामीण विकास, सौर ऊर्जा समेत बुनियादी ढांचों और सामाजिक सुरक्षा जैसे कार्यक्रम अहम थे. एक फुल पेज विज्ञापन में तो सरकार द्वारा अलग-अलग सेक्टरों में हासिल की गई 12 सफलताओं जैसी बातों का जिक्र भी किया गया था. साथ ही कहा गया कि केंद्र सरकार के लिए किसान मुद्दे और राष्ट्रीय सुरक्षा सबसे अहम है.

Indien Anzeigenkampagne der Regierung in Zeitungen
तस्वीर: DW/M. Jha

विभिन्न मंत्रालयों के साथ मिलकर काम करने वाली सरकारी एजेंसी डायरेक्टेट ऑफ एडवरटाइजिंग एंड विजुअल पब्लिसिटी (विज्ञापन और दृश्य प्रचार निदेशालय) ने चुनाव तारीखों की घोषणा के बाद कहा, "चुनावी आचार संहिता का पालन करते हुए अब सरकार की सफलताओं और कामों को दिखाने वाले कोई भी विज्ञापन किसी भी अखबार में नहीं छापे जाएंगे." एजेंसी ने इन विज्ञापनों पर होने वाले सरकारी खर्चों पर किसी भी प्रकार की कोई जानकारी नहीं दी है

वहीं प्रधानमंत्री कार्यालय ने अब तक इस विषय पर कोई कमेंट नहीं किया है. हिंदुस्तान टाइम्स ने अपनी एक रिपोर्ट में आरटीआई से प्राप्त सूचना के हवाले से कहा है कि मोदी सरकार ने अपने विज्ञापनों पर करीब 35 करोड़ रुपये खर्च किए हैं. 

सरकार के इस रुख पर टि्वटर और अन्य सोशल मीडिया प्लेटफॉर्मों पर खूब मजाक बनाया जा रहा है. काफी लोग इस पर अपना गुस्सा भी जता रहे हैं. कम्युनिस्ट पार्टी के नेता सीताराम येचुरी ने अपने ट्वीट में मोदी सरकार की ऐसी नीतियों पर सवाल उठाए हैं.

येचुरी ने ट्वीट कर कहा, "सरकार के पास दलित छात्रों को दिए जाने वाले स्टाइपेंड के लिए पैसा नहीं है, वह अब भी पिछले साल जितना ही है. लेकिन प्रधानमंत्री को जनता का पैसा विज्ञापन और अपने प्रचार पर खर्च करने में जरा भी शर्म नहीं आ रही है. फिर चाहे कमजोर तबके के छात्र पढ़ाई ना कर सकें."

टि्वटर यूजर ध्रुव राठी ने हाल में इस विषय से जुड़ा एक वीडियो पोस्ट किया था. वीडियो में टाइम्स ऑफ इंडिया के पेजों को दिखाया गया था. राठी ने अपने ट्वीट में लिखा था, "हर पलटते पेज पर आपको मोदी की तस्वीर जरूर दिखेगी." इस वीडियो को 82 हजार से भी ज्यादा बार देखा गया.

कुछ ऐसी ही प्रतिक्रिया आम यूजर्स ने भी दी है. एक यूजर ने लिखा है, "इन दिनों अखबारों को पढ़ना बेहद कष्टकारी हो गया है. क्या हमें वाकई ऐसी नॉनसेंस चाहिए? ये हमारे पैसों की बर्बादी है." एक अन्य यूजर शशांक रजक ने लिखा है, "मिस्टर मोदी का दूसरा नाम होना चाहिए स्कीम वाले बाबा.विडंबना है कि सरकार ने सारी योजनाओं को बस प्रचार के लिए लॉन्च किया है. डिजाइनर कपड़ो को पहनने वाले मोदी फैशन में भी कम नहीं है."

एनडीटीवी की एक खबर के अनुसार प्रधानमंत्री मोदी ने 8 फरवरी और 9 मार्च के बीच 30 दिनों में 157 स्कीमों का उद्घाटन हुआ. ऐसा भी बताया जा रहा है कि इनमें से कुछ स्कीमें पहले से ही चल रही थी.

विज्ञापनों में छाए प्रधानमंत्री मोदी के ऊपर आलोचनाओं का दबाव फिलहाल तो कम होता नहीं दिख रहा है. नौकरियों की कमी और किसान मुद्दे सरकार के लिए चिंता लगातार बढ़ाते रहे हैं. हालांकि स्थानीय मीडिया यह भी कह रहा है कि पुलवामा हमले के बाद भारत की पाकिस्तान के लिए जो रणनीति अपनाई गई थी उसका कुछ लाभ सरकार को आम चुनावों में हो सकता है.

एए/आईबी (रॉयटर्स) 

इस विषय पर और जानकारी को स्किप करें

इस विषय पर और जानकारी