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समाज

अब रोबोट करेगा सेप्टिक टैंकों की सफाई

प्रभाकर मणि तिवारी
२७ मार्च २०१९

भारत में सेप्टिक टैंकों की सफाई के दौरान तीन महीने में 15 लोग मारे जा चुके हैं. अब आईआईटी ने सेप्टिक टैंकों सफाई के लिए रोबोट विकसित करने का काम शुरू कर दिया है.

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Indien  Lucknow Uttarpradesh  - Toilettenmangel in ländlichen Gebieten
तस्वीर: DW/S. Misra

आईआईटी मद्रास की एक पहल से अब सेप्टिक टैंक में दम घुटने से होने वाली मौतों पर अंकुश लगने की उम्मीद जगी है. संस्थान के वैज्ञानिकों की एक टीम सेप्टिक टैंकों की सफाई के लिए एक रोबोट विकसित करने में जुटी है. अगले महीने लैब में इसके परीक्षण के बाद जुलाई-अगस्त के दौरान इसका मौके पर परीक्षण किया जाएगा. इस साल जनवरी से अब तक सेप्टिक टैंक की सफाई के दौरान कम से कम 15 लोगों की मौत हो चुकी है.तमिलनाडु के कांचीपुरम जिले में कल ही ऐसे एक टैंक की सफाई के दौरान छह लोगों की मौत हो गई.

मौतों की बढ़ती तादाद

देश में सेप्टिक टैंक की सफाई के दौरान होने वाली मौतों की बढ़ती तादाद गहरी चिंता का विषय बनती जा रही है. हर बार ऐसी मौतों के बाद कुछ दिनों तक सरकारी व गैर-सरकारी स्तर पर सक्रियता बनी रहती है और उसके बाद सबकुछ जस का तस हो जाता है. सफाई कर्मचारियों के हितों की रक्षा के लिए गठित संवैधानिक संस्था राष्ट्रीय सफाई कर्मचारी आयोग (एनसीएसके) ने बीते साल सितंबर में पहली बार अपने आंकड़ों के आधार पर बताया था कि एक जनवरी 2017 से अगस्त 2018 तक औसतन हर पांच दिन पर ऐसे एक कर्मचारी की मौत हुई है. उसका यह आंकड़ा अखबारों में छपी खबरों और कुछ राज्य सरकारों की ओर से मुहैया कराई गई सूचनाओं पर आधारित था. आयोग ने बताया था कि जनवरी, 2017 से अब तक सेप्टिक टैंकों की सफाई के दौरान 123 लोगों की मौत हो गई. लेकिन आयोग के सूत्रों का मानना है कि आंकड़ों के अभाव की वजह से इन मौतों की सही तादाद का अनुमान लगाना मुश्किल है. उनके मुताबिक यह तादाद कई गुना ज्यादा हो सकती है.

बीते साल ही एक अंतर-मंत्रालय कार्य बल ने देश में सेप्टिक टैंक की सफाई के काम से जुड़े कर्मचारियों की तादाद 53,236 बताई थी जबकि वर्ष 2017 तक सरकारी आंकड़ों में यह तादाद 13 हजार से कुछ ज्यादा थी. यानी साल-डेढ़ साल के भीतर इनकी तादाद तीन गुनी से ज्यादा बढ़ गई है. लेकिन इस आंकड़े के भी सही होने पर संदेह जताया गया था. इसकी वजह यह थी कि इसमें देश के छह सौ से ज्यादा जिलों में से महज 121 के आंकड़े ही शामिल थे. इसके अलावा इसमें रेलवे का आंकड़ा शामिल नहीं था. इंसानी मल साफ करने वाले कर्मचारियों की तादाद रेलवे में ही सबसे ज्यादा है. कार्य बल को 18 राज्यों के 170 जिलों में ऐसे कर्मचारियों की तादाद का पता लगाना था. लेकिन इसके तहत महज 12 राज्यों के 121 जिलों को ही कवर किया गया था. बिहार, जम्मू-कश्मीर, झारखंड, कर्नाटक, तेलंगाना और पश्चिम बंगाल जैसे राज्यों ने उक्त सर्वेक्षण में हिस्सा नहीं लिया था.

सफाई कर्मचारी आयोग के अध्यक्ष मनहर वालजीभाई जाला ने बीते साल सितंबर में कहा था कि वर्ष 1993 से ऐसी घटनाओं में कम से कम 612 लोगों की मौत का अनुमान है. दूसरी ओर, इंसानी मल साफ करने और सिर पर ढोने वाले कर्मचारियों के पुनर्वास की दिशा में काम करने वाले संगठन सफाई कर्मचारी आंदोलन का दावा है कि जनवरी, 2017 से अब तक तीन सौ से ज्यादा लोगों की मौत हो चुकी है. ऐसी मौतों का आंकड़ा हमेशा विवादास्पद रहा है. इसकी वजह यह है कि केंद्र सरकार कभी इसे नहीं स्वीकार नहीं करती और राज्य सरकारें भी इस आंकड़े को काफी घटा कर पेश करती हैं.

बीते साल सितंबर में राजधानी दिल्ली में एक ही घटना में पांच लोगों की मौत हो गई थी. हर मामले में आरोप लगते रहे हैं कि समुचित सुरक्षा उपकरणों की कमी ही मजदूरों की जान की दुश्मन बन जाती है. लेकिन अब तक इस कमी को दूर करने की दिशा में कोई ठोस पहल नहीं की जा सकी है. तमिलनाडु के कांचीपुरम जिले में श्रीपेरम्बदुर गांव के एक घर में सेप्टिक टैंक साफ करते समय मंगलवार को छह लोगों की मौत हो गई.

मजदूरों के काम करने के बाद घर के लोग यह देखने के लिए टैंक में घुसे थे कि काम ठीक से हुआ है या नहीं. लेकिन वह अंदर जहरीली गैस के चलते बेहोश हो गए. उनको बचाने गए उनके दोनों बेटे और तीन अन्य तीन लोग भी जहरीली गैस के शिकार हो गए.

Flash-Galerie Indian Institute of Technology, Madras
आईआईटी मद्रास विकसित कर रहा है रोबोटतस्वीर: cc-by-sa/Minivalley

आईआईटी की पहल

अब चेन्नई स्थित भारतीय तकनीकी संस्थान मद्रास (आईआईटी मद्रास) के वैज्ञानिकों की एक टीम सेप्टिक टैकों की सफाई के लिए एक रोबोट बनाने में जुटी है. वर्ष 2011 की जनगणना में बताया गया था कि देश में अब भी लगभग 40 करोड़ लोग अपने घरों में सेप्टिक टैंकों का इस्तेमाल करते हैं. आईआईटी मद्रास के सेंटर फार नान-डस्ट्रिक्टिव ईवैल्यूएशन के डॉ. प्रभु राजगोपाल कहते हैं, "जहरीली गैसों से भरे माहौल में रोबोट का इस्तेमाल बेहद चुनौतीपूर्ण है." राजगोपाल अपनी टीम के साथ बीते चार सालों से इस परियोजना पर काम कर रहे हैं. वह बताते हैं कि टैंक की ऊपरी सतह पर जमे तरल पदार्थ को हटाने के लिए रोबोट में प्रोपेलर होना जरूरी है. लेकिन किसी विमान की तरह का रोटरी प्रोपेलर इस्तेमाल करने की स्थिति में उसके ब्लेड में इस तरल पदार्थ के फंसने का खतरा है. इसी  वजह से उनकी टीम ने बायोइंस्पायर्ड फिन तकनीक के इस्तेमाल का फैसला किया. अब उक्त रोबोट में एक ऐसे प्रोपेलर का इस्तेमाल किया गया है जिसे संस्थान के ही एक छात्र श्रीकांत ने विकसित किया है.

प्रयोगशाला में ही सेप्टिक टैंक के भीतर का माहौल बनाने के लिए यह टीम तेल व गैस क्षेत्र से गाढ़ा द्रव हासिल करने का प्रयास कर रही है. डॉ राजगोपाल बताते हैं, "रोबोट को भीतर उतारने से पहले छाते के आकार का एक कटर टैंक के भीतर डाला जाएगा. यह भीतर जाकर खुल जाएगा और नीचे जमी गंदगी को टुकड़ों में काट देगा. उसके बाद उसे वैक्यूम पंपों के सहारे बाहर खींच लिया जाएगा." राजगोपाल की टीम इस मामले में सफाई कर्मचारी आंदोलन के कार्यकर्ताओं की भी सहायता ले रही है. वह बताते हैं कि फिलहाल यह तकनीक महंगी है और एक रोबोट पर 10 से 30 लाख रुपये तक की लागत आएगी. इसके अलावा अभी कुछ अन्य तकनीकी पहलुओं पर काम बाकी है. मसलन इस बात का ध्यान रखना होगा कि रोबोट के भीतर कहीं कोई स्पार्क नहीं हो. टैंक के भीतर ज्वलनशील गैस रहती है. इससे आग लगने या विस्फोट का खतरा बना रहता है. राजगोपाल बताते हैं कि कटर का इस्तेमाल कम खर्च वाला तरीका है. लेकिन एक ऐसे रोबोट का निर्माण जरूरी है जो टैंक के भीतर घुस कर अकेले तमाम सफाई को अंजाम दे सके. उनकी टीम इसी रोबोट पर काम कर रही है.

सफाई कर्मचारी आयोग के सुकुमार कहते हैं, "यह एक ठोस पहल है. स्वच्छ भारत योजना के तहत दूर-दराज के इलाकों में कई शौचालय बनाए जा रहे हैं. वहां गलियां पतली होने की वजह से पंप नहीं जा सकते. ऐसे मामलो में कटर का इस्तेमाल बेहद प्रभावी होगा." वह कहते हैं कि इस परियोजना के पूरा होने पर सफाई कर्मचारियों की अकाल मौतों पर काफी हद तक अंकुश लगाया ज सकेगा.