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अभयारण्य नहीं रहेगा तो कैसे बचेंगे गजराज

हृदयेश जोशी
२५ नवम्बर २०२०

हाथी सिर्फ एक विशाल प्राणी नहीं है, पारिस्थितिक तन्त्र और जैव विविधता संरक्षण में उसका महत्वपूर्ण योगदान है. शिवालिक एलीफेन्ट रिजर्व का दर्जा खत्म करने के उत्तराखंड सरकार के फैसले इलाके के हाथी मुश्किल में आ सकते हैं.

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Indien | Nandhaur Wildlife Sanctuary in Uttarakhand
तस्वीर: Hridayesh Joshi

उत्तराखंड में स्टेट बोर्ड ऑफ वाइल्डलाइफ यानी राज्य वन्यजीव बोर्ड ने शिवालिक एलीफेन्ट कॉरिडोर को डिनोटिफाइ करने के प्रस्ताव को स्वीकार कर लिया है. हिमालय की तलहटी पर यह एलीफेन्ट रिजर्व 5409 वर्ग किलोमीटर में फैला है और राज्य में मौजूद करीब 2000 हाथियों का महत्वपूर्ण बसेरा है. उत्तराखंड सरकार ने यह फैसला विकास योजनाओं के लिये वन भूमि के हस्तांतरण को आसान बनाने के लिये किया है. इसमें राजधानी देहरादून के पास जौलीग्रांट एयरपोर्ट का विस्तार प्रमुख है. इसे लेकर वन्य जीव विशेषज्ञों ने कड़ी आपत्ति दर्ज की है.

क्या हासिल होगा इस फैसले से

भारत में आज हाथियों के लिए कुल 30 अभयारण्य हैं, जिनमें 27,000 से अधिक हाथी हैं. हाथियों को रहने के लिये विशाल क्षेत्र चाहिये और उनकी फितरत कई सौ किलोमीटर के दायरे में विचरण करने की होती है. इसी लिहाज से देश में इन अभयारण्यों को ‘प्रोजेक्ट एलीफेन्ट' के तहत नोटिफाइ किया गया ताकि इस वन्य जीव को संरक्षित किया जा सके.

शिवालिक एलीफेन्ट रिजर्व को अक्टूबर 2002 में नोटिफाइ किया गया था लेकिन उत्तराखंड राज्य वन्य जीव बोर्ड ने अपने ताजा फैसले में कहा है कि अब एलीफेन्ट रिजर्व से जुड़ी अधिसूचना का कोई औचित्य नहीं है. यह देश का पहला एलीफेन्ट रिजर्व है जिसकी अधिसूचना को रद्द किया जा रहा है. राज्य वन्य जीव बोर्ड प्रमुख मुख्यमंत्री होते हैं. अगर केंद्र सरकार ने स्टेट बोर्ड के इस फैसले को स्वीकार कर लिया तो यह पूरा क्षेत्र विकास योजनाओं के लिये खुल जायेगा. केंद्र सरकार की मंजूरी को महज औपचारिकता ही माना जा रहा है. फिलहाल राजधानी देहरादून के पास एयरपोर्ट के विस्तार के लिये करीब 10 हजार पेड़ों को काटे जाने की योजना है. 

Indien | Uttarakhand | Corbett Reserve
कॉर्बेट नेशनल पार्क भी शिवालिक एलीफेंट कॉरिडोर में शामिल है.तस्वीर: Bildagentur-online/Tips Images/picture alliance

गजराज पर मंडराता रहा है संकट

देश में वन्यजीव विशेषज्ञ हाथियों के संरक्षण को लेकर फ्रिकमंद हैं और आंकड़े इस चिन्ता की वजह बताते हैं. आज दुनिया के 60% एशियाई हाथी भारत में है लेकिन ये लगातार असामान्य मौत के शिकार हो रहे हैं. सरकार के अपने आंकड़े बताते हैं कि 2014 और 2019 के बीच हर साल औसतन 102 हाथियों की अकाल मौत हुई. जानकार कहते हैं कि असल आंकड़ा सरकार की बताई संख्या से कहीं अधिक है.

उत्तराखंड वन विभाग के मुताबिक पिछले 5 साल में 170 हाथी मरे। टाइम्स ऑफ इंडिया में प्रकाशित रिपोर्ट बताती है कि इस साल अक्टूबर तक ही 22 हाथी मारे जा चुके हैं. कुछ हाथियों की मौत प्राकृतिक होती है तो कुछ सड़क या रेल पटरियों पर या दूसरी दुर्घटनाओं का शिकार होते हैं जिनमें अक्सर बिजली का झटका लगने की घटनायें शामिल हैं. इसके अलावा पोचिंग (शिकार) और आपसी भिडंत से भी हाथी मरते हैं.

गजराज का पारिस्थितिकी में महत्व

हाथी जमीन पर चलने वाला सबसे बड़ा स्तनधारी है और यह एक समझदार और सामाजिक प्राणी है. किसी भी स्वस्थ पारिस्थितिक तन्त्र में इसका काफी महत्व है. इसीलिये वन्य जीव विशेषज्ञ इसे ‘इकोसिस्टम इंजीनियर' कहते हैं. खुश्क मौसम में हाथी अपने विशाल दांतों से जमीन खोद कर पानी निकालते हैं जिससे दूसरे वन्य जीवों को भी प्यास बुझाने में सहूलियत होती है.

Asiatischer Elefant
60 फीसदी एशियाई हाथी भारत में रहते हैं.तस्वीर: WILDLIFE/picture alliance

इसी तरह गजराज घने जंगलों में दूसरे प्राणियों के लिये रास्ता तैयार करता है और वन्य जीवों का विचरण आसान बनाता है. जब हाथी जंगल में चलते हैं तो उनके पैरों से बने गढ्ढे से सूक्ष्म जीवों के लिये घर बनता है. मिसाल के तौर पर इन गढ्ढों में पानी भरने और टेडपोल को रहने और विकसित होने के लिये जगह मिलती है. इसके अलावा जंगल में कई वनस्पतियों की वृद्धि और उनका विकास हाथी से जुड़ा है. कई वनस्पतियां ऐसी हैं जिन्हें जब हाथी खाते हैं तो उनके पाचन तन्त्र से होकर गुजरने के बाद ही वह प्रजातियां अंकुरित होती हैं और उनका बीज फैलता है. इस तरह जैव विविधता संरक्षित करने में हाथियों की बड़ी भूमिका है. 

हाथियों का इंसानों से टकराव 

जंगलों को खत्म किये जाने से हाथियों का बसेरा लगातार घट रहा है. हाथियों के विचरण के लिये अंतर्राज्यीय कॉरिडोर भी खत्म हो रहे हैं. जैसे-जैसे हाथियों के लिये जगह कम हो रही है वैसे-वैसे इंसानों के साथ उनका टकराव बढ़ रहा है. संसद में सरकार ने जो जानकारी दी है उसके मुताबिक 2015 से 2018 के बीच 373 हाथियों की अकाल मृत्यु हुई और 1,713 लोग हाथियों के हमले में मरे. उत्तराखंड वन विभाग के मुताबिक  2015 से अब तक कम से कम 45 लोग हाथियों के हमले में मारे गये हैं. इससे साबित होता है कि जंगलों को संरक्षण हाथियों के लिये ही नहीं इंसानों के लिये भी बहुत जरूरी है.

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