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क्या इस्लामाबाद पूरी कर पाएगा अमेरिकी अपेक्षाएं

माइकल कूगेलमन
२३ जुलाई २०१९

अमेरिका और पाकिस्तान दोनों पक्षों की अपनी-अपनी उम्मीदें हैं. पारस्परिक संबंधों का भविष्य इस पर निर्भर करेगा कि उम्मीदों पर कौन कितना खरा उतरता है. इस्तामाबाद की अपेक्षाएं अमेरिका से ज्यादा हैं.

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US-Präsident Donald J. Trump empfängt den pakistanischen Ministerpräsidenten Imran Khan
तस्वीर: picture-alliance

पाकिस्तान के प्रधानमंत्री इमरान खान की व्हाइट हाऊस में अमेरिकी राष्ट्रपति डॉनल्ड ट्रंप से मुलाकात हुई और समाप्त हो गई. आश्चर्य नहीं कि खान की यात्रा का सबसे अधिक सुर्खियों वाला क्षण तब आया जब ट्रंप ने अपनी छवि के अनुरूप टिप्पणी की. मीडिया से बातचीत में ट्रंप ने कहा कि वह कश्मीर को लेकर भारत-पाकिस्तान विवाद में मध्यस्थता करने को तैयार हैं. यह एक ऐसी टिप्पणी थी जो निश्चित रूप से अमेरिका के प्रमुख सहयोगी भारत को पसंद नहीं आयी क्योंकि वह इस मुद्दे पर किसी तरह की बाहरी मध्यस्थता नहीं चाहता है.

ट्रंप-खान की बैठक कई घंटों तक चली. यह न सिर्फ अकेले में हुई सौहार्दपूर्ण बैठक रही, बल्कि अन्य उच्च-स्तरीय आदान-प्रदान भी हुए. इसमें ट्रंप प्रशासन के कई अधिकारियों के साथ दोपहर का भोजन भी शामिल था. नतीजतन, पिछले महीनों में काफी कमजोर हो गया रिश्ता फिर से जीवंत हो गया. अब इसे और ऊर्जा देने का अवसर मिला है. ट्रंप-खान बैठक के बाद पांच सवाल रिश्ते के गति को निर्धारित करने में मदद करेंगे.

क्या खान की यात्रा के दौरान साख बढ़ेगी?
अमेरिका-पाकिस्तान संबंधों के लिए एक स्थायी चुनौती विश्वास की कमी है. हालांकि दोनों देश के बीच शीत युद्ध के दौरान मजबूत संबंध रहे हैं लेकिन हाल के वर्षों में संबंधों में तनाव पैदा हुए हैं, जिससे विश्वास में कमी आयी है.

परमाणु हथियारों के विकास पर सच बोलने से पाकिस्तान के इंकार और आतंकवादियों के साथ संबंधों से लेकर पाकिस्तान में अमेरिका की गुप्त गतिविधियों तक कई पुराने विवाद हैं. खान की यात्रा से पैदा हुई गति को भुनाने के लिए काफी सारी उच्च स्तरीय दौरों और वार्ता की जरूरत होगी. हालांकि रणनीतिक वार्ता के बदले लेनदेन की कूटनीति के पक्षधर ट्रम्प प्रशासन के लिए यह बड़ी चुनौती है.

Michael Kugelman
माइकल कूगेलमन, वुड्रो विल्सन सेंटर, वाशिंगटनतस्वीर: C. David Owen Hawxhurst / WWICS

क्या इस्लामाबाद अफगानिस्तान में शांति प्रक्रिया को समर्थन देगा?

इमरान खान के साथ ट्रंप की बैठक के दौरान अफगानिस्तान निस्संदेह एक प्रमुख मुद्दा था. तालिबान के साथ हो रही शांति वार्ता में सहायता के लिए इस्लामाबाद का समर्थन पाना वाशिंगटन का लिए एक प्रमुख उद्देश्य है. क्या पाकिस्तान तालिबान को युद्ध विराम करने और अफगान सरकार के साथ सीधी बातचीत के लिए राजी कराने में सफल होगा? इन मांगों को तालिबान अब तक स्पष्ट रूप से अस्वीकार करता रहा है. यदि इस्लामाबाद का प्रयास कामयाब रहता है, तो अमेरिका-पाकिस्तान संबंधों को मजबूती मिलेगी. व्यापार और निवेश जैसे मामलों को लेकर संबंध और मजबूत हो सकते हैं.

हालांकि, यह पाकिस्तान से महात्वाकांक्षी मांग होगी. ये सच है कि इस्लामाबाद  तालिबानी नेताओं को सुरक्षित पनाह देने की वजह से तालिबान का लाभ उठाता रहा है. फिर भी, विद्रोही मजबूत स्थिति से बातचीत कर रहे हैं, वे बड़े हमले कर रहे हैं और उनका पहले से कहीं बड़े इलाके पर कब्जा है. फिर उन्हें पाकिस्तानी संरक्षकों सहित किसी की भी बात सुनने की क्या पड़ी है.

क्या वाशिंगटन पाकिस्तान को कुछ आर्थिक प्रलोभन देगा?

अगर अफगानिस्तान शांति वार्ता और इस्लामाबाद के आतंकवाद विरोधी प्रयासों में पर्याप्त प्रगति होती है तो ट्रंप प्रशासन ने पाकिस्तान के साथ अधिक व्यापार और आर्थिक सहयोग की संभावना जताई है. पाकिस्तान की अर्थव्यवस्था के संकट में होने के कारण कोई भी नया अमेरिकी आर्थिक और व्यापारिक समर्थन देश के लिए एक बड़ा वरदान साबित होगा.

पाकिस्तान अभी से ही व्यापार बढ़ाने के लिए उत्सुक है. अमेरिका पहुंचे बड़े प्रतिनिधिमंडल में खान के वाणिज्य सलाहकार भी शामिल हैं. खान के कार्यक्रम में शीर्ष निगमों के साथ बैठकें भी शामिल थीं. अमेरिका द्वारा व्यापार और निवेश फ्रेमवर्क समझौते (टीआईएफए) के तहत बैठकों की संख्या बढ़ाने की मांग जैसे मामूली पहल भी सहयोह बढ़ाने में सहायक होंगे और अफगानिस्तान में अधिक पाकिस्तानी सहयोग को प्रोत्साहित कर सकते है.

क्या रंग में भंग भी हो सकता है?

अमेरिका-पाकिस्तान संबंधों के नाजुक होने का एक कारण यह है कि नई प्रगति की विफलता में ज्यादा समय नहीं लगता. सालों से सबसे बड़ा खतरा अफगानिस्तान में बड़े पैमाने पर जानलेवा आतंकवादी हमले रहे हैं, खासकर जब हमले विशेष रूप से अमेरिका, अमेरिकी हितों या सहयोगी भारत को लक्ष्य बना होते हों. अगर इस तरह का हमला होता है और वाशिंगटन को लगता है कि ऐसा पाकिस्तान से हुआ है और पाकिस्तानी सुरक्षा प्रतिष्ठानों से जुड़े समूहों द्वारा किया गया है, तो रिश्ते को एक और झटका लगेगा. इससे द्विपक्षीय संबंधों में तनाव भी बढ़ेगा. इसकी वजह ये है कि वाशिंगटन का मानना है कि पाकिस्तान ने अमेरिकी और भारतीय जान माल को नुकसान पहुंचाने वाले अपने देश स्थित आतंकवादी समूहों के खिलाफ ठोस और बदले न जा सकने वाले कदम नहीं उठाए हैं.

क्या अलग-अलग उम्मीदों में सामंजस्य हो सकता है?

दरअसल पाकिस्तान की मध्यकालीन अपेक्षाएं अमेरिका की तुलना में अधिक महत्वाकांक्षी हैं. इस्लामाबाद द्विपक्षीय संबंधों को पूरी तरह से बहाल करना और व्यापक बनाना चाहता है. वहीं दूसरी ओर वाशिंगटन मुख्य रूप से अफगानिस्तान में अधिक पाकिस्तानी सहायता और आतंकवादियों के खिलाफ कार्रवाई चाहता है.

दोनों पक्ष एक दूसरे की उम्मीदों में अंतर को किस तरह पाटते हैं, यही इस बात का फैसला करेगा कि काफी समय से उतार चढ़ाव का सामना कर रहे रिश्तों का भविष्य क्या होगा.

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