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अयोध्या फैसले पर कानूनी जानकारों में मतभेद

१ अक्टूबर २०१०

अयोध्या विवाद पर इलाहाबाद हाई कोर्ट की लखनऊ बेंच के फैसले पर कानूनी विशेषज्ञों की राय बंटी हुई है. कुछ जानकारों के मुताबिक फैसले से सांप्रदायिक सौहार्द को मजबूती मिलेगी लेकिन दूसरे जानकार इस फैसले पर हैरानी जता रहे हैं.

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तस्वीर: AP

हाई कोर्ट ने अपने फैसले में अयोध्या में विवादित भूमि को तीन हिस्सों में बांटने का आदेश दिया है जिसमें एक हिस्सा सुन्नी वक्फ बोर्ड को, दूसरा निर्मोही अखाड़े और तीसरा हिस्सा हिंदू पक्ष को देने की बात कही गई है. पूर्व कानून मंत्री और वरिष्ठ वकील शांति भूषण ने अपनी प्रतिक्रिया में बताया, "मैं इस फैसले से पूरी तरह खुश हूं. यह फैसला देश में धर्मनिरपेक्षता और धार्मिक संप्रदायों में सहिष्णुता को बढ़ावा देगा."

वरिष्ठ वकील मुकुल रोहतगी ने हाई कोर्ट के फैसले को टलवाने के लिए सुप्रीम कोर्ट का रुख किया ताकि अदालत के बाहर ही मामले का निपटारा हो सके. लेकिन सुप्रीम कोर्ट ने हाई कोर्ट को फैसला सुनाने की इजाजत दे दी. हाई कोर्ट के फैसले पर मुकुल रोहतगी का कहना है, "अभी फैसले को पूरी तरह से पढ़ा जाना है लेकिन तीनों जजों ने यह फैसला दिया है कि विवादास्पद जमीन को तीन बराबर हिस्सों में बांटा जाना चाहिए. यह फैसला एक तरह का समझौता फार्मूला है जिसमें सभी पक्षों का ख्याल रखा गया है."

संवैधानिक मामलों के जानकार राजीव धवन ने अयोध्या विवाद पर फैसले को हैरान कर देने वाला करार दिया और कहा कि यह पूरी तरह से हिंदू संगठनों के पक्ष में गया है. उदारता के लिए इसमें मुस्लिम पक्ष का भी ख्याल रखा गया है. वरिष्ठ वकील पीपी राव ने भी इस फैसले को हैरानी भरा बताते हुए कहा है कि यह पंचायत के फैसलों की तरह सुनाया गया है.

पूर्व सोलिसीटर जनरल हरीश साल्वे के मुताबिक जजों ने माना है कि जमीन पर दोनों पक्ष उपासना करते रहे हैं और इसके चलते इस पर उनका संयुक्त हक बनता है. इसीलिए विवादास्पद जमीन को बांटने का आदेश सुनाया गया है.

रिपोर्ट: एजेंसियां/एस गौड़

संपादन: ए जमाल

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