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समाज

अरुणाचल प्रदेश सीमा तक पहुंची चीन की बुलेट ट्रेन

प्रभाकर मणि तिवारी
२५ जून २०२१

चीन ने सिचुआन-तिब्बत रेलवे के 435 किलोमीटर लंबे ल्हासा-निंग्ची सेक्शन में बुलेट ट्रेन का संचालन शुरू कर दिया है. पहली जुलाई को सत्तारूढ़ कम्युनिस्ट पार्टी के शताब्दी समारोहों से पहले इसकी शुरुआत की गई है.

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China Schnellzug Verkehr
तस्वीर: Zumapress/picture alliance

भारत पर दबाव बढ़ाने की अपनी रणनीति के तहत चीन ने पूर्वोत्तर सीमा पर अपनी गतिविधियां बढ़ा दी हैं. वह कभी भूटान की जमीन के अपनी होने का दावा करता है, तो कभी अरुणाचल प्रदेश से सटे इलाके में बड़े पैमाने पर बांध, सड़क और रेलवे समेत कई आधारभूत परियोजनाओं का निर्माण कार्य तेज कर देता है.

निंग्ची का यह इलाका अरुणाचल प्रदेश से एकदम सटा है. सामरिक विशेषज्ञों का कहना है कि दोनों देशों में गलवान घाटी की तरह तनाव की स्थिति में चीन बहुत कम समय में अपनी सेना और सैन्य साजो-सामान इस ट्रेन के जरिए सीमा पर पहुंचा सकता है. चीन अरुणाचल प्रदेश को दक्षिण तिब्बत का हिस्सा बताता है. लेकिन भारत इस दावे का पुरजोर विरोध करता रहा है.

47.8 अरब अमेरिकी डॉलर की लागत

सिचुआन-तिब्बत रेलवे की शुरुआत सिचुआन प्रांत की राजधानी चेंगदू से होगी और यान से गुजरते हुए तिब्बत में प्रवेश करेगी. इससे चेंगदू से ल्हासा की दूरी 48 घंटे से कम होकर 13 घंटे रह गई है. सिचुआन-तिब्बत रेलवे किंघाई-तिब्बत रेलवे के बाद तिब्बत में दूसरी रेलवे होगी. यह किंघाई-तिब्बत पठार के दक्षिण-पूर्व क्षेत्र से होकर गुजरेगी जो भूगर्भीय रूप से विश्व के सबसे सक्रिय क्षेत्रों में से एक है.

नवंबर में चीनी राष्ट्रपति शी जिनपिंग ने इस रेलवे परियोजना का काम शीघ्र पूरा करने का निर्देश दिया था. उनका कहना था कि नई रेल लाइन सीमा पर स्थिरता कायम रखने में अहम भूमिका निभाएगी. इस रेलवे परियोजना पर करीब 47.8 अरब अमेरिकी डॉलर लागत आई है.

चीन के सरकारी अखबार ग्लोबल टाइम्स में छपी खबर के मुताबिक, इस रूट पर कुल 26 स्टेशन हैं और इस पर बिजली से चलने वाले इंजन की सहायता से ट्रेनें 160 किलोमीटर प्रति घंटे की रफ्तार से चल सकेंगी. उक्त परियोजना जिस इलाके में बनी है वह भौगोलिक रूप से बेहद दुर्गम लेकिन सामरिक रूप से उतनी ही अहम है. इलाके में कई जगह इसकी पटरियां समुद्र तल से 15 हजार फीट की ऊंचाई से गुजरेंगी.

चीन पहले ही तिब्बत स्वायत्त क्षेत्र में सड़कों का जाल बिछा चुका है. तीन साल पहले 2018 में उसने ल्हासा और निंग्ची के बीच 5.8 अरब अमेरिकी डॉलर से बनी 409 किलोमीटर लंबे एक्सप्रेस का उद्घाटन किया था. उसकी वजह से इन दोनों शहरों के बीच आवाजाही करने में अब आठ की जगह पांच घंटे ही लगते हैं. चीन ने वहां एयरपोर्ट भी बना रखा है.

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खतरे की घंटी?

विशेषज्ञों चीन की इस रेल परियोजना को भारत के लिए खतरे की घंटी बता रहे हैं. पूर्वोत्तर स्थित अरुणाचल प्रदेश पर तो चीन की निगाहें शुरू से ही रही हैं. वह अरुणाचल को भारत का हिस्सा मानने से इंकार करता रहा है और उसे दक्षिण तिब्बत का हिस्सा बताता रहा है.

इसी वजह से प्रधानमंत्री, राष्ट्रपति और दूसरे शीर्ष मंत्रियों और अधिकारियों के अरुणाचल दौरे पर वह विरोध भी जताता रहा है. कुछ साल पहले उसने अरुणाचल प्रदेश के लोगों को स्टेपल वीजा जारी किया था. तब इस पर काफी विवाद हुआ था.

इस रेलवे सेक्शन पर चीन ने हाल में ही सामरिक रूप से बेहद अहम एक रेलवे ब्रिज का काम पूरा किया था. अरुणाचल में सियांग कही जाने वाली ब्रह्मपुत्र नदी पर बना 525 मीटर लंबा यह ब्रिज नियंत्रण रेखा से महज 30 किलोमीटर दूर है.

अंतरराष्ट्रीय संबंधों के विशेषज्ञ डॉ. डीसी रायचौधुरी कहते हैं, "डोकलाम और खासकर गलवान में हुए विवाद के बाद चीन ने अचानक देश की पूर्वोत्तर सीमा पर अपनी गतिविधियां बढ़ा दी हैं. उन इलाकों में इंसानी बस्तियों के अलावा रेलवे व सड़क परियोजनाएं तेजी से बनाई जा रही हैं."

सामरिक विशेषज्ञ जीवन कुमार भुइयां कहते हैं, "यह रेल परियोजना चीन के लिए सामरिक तौर पर काफी अहम है. वह पहले से ही अरुणाचल प्रदेश को दक्षिण तिब्बत का हिस्सा मानता रहा है. अब सीमा के करीबी शहर तक पहुंचने वाली रेलवे लाइन और दूसरे निर्माण कार्यों के जरिए वह भारत पर दबाव बढ़ाने की रणनीति पर आगे बढ़ रहा है."

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