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अर्मेनिया सामूहिक हत्याकांड की एक शताब्दी

२४ अप्रैल २०१५

अर्मेनिया में 24 अप्रैल 2015 को सामूहिक हत्याकांड को सौ साल पूरे हो जाएंगे. दुनिया भर के अर्मेनियाई लोग इसे 1915 में ऑटोमन साम्राज्य द्वारा अल्पसंख्यक अर्मेनियाई समुदाय के जनसंहार के रूप में याद करेंगे.

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तस्वीर: Reuters/D. Mdzinarishvili

प्रथम विश्व युद्ध के दौरान 24 अप्रैल 1915 को शुरू हुए सामूहिक हत्याकांड को जनसंहार माना जाए या नहीं, इस पर तुर्की और अर्मेनिया के अलावा अमेरिका और यूरोपीय देशों के भी अलग अलग विचार हैं. सौ साल पहले तुर्की शासन वाले अर्मेनिया में लाखों अर्मेनियाई लोगों की हत्या के जख्म एक शताब्दी बाद भी पीढ़ियां याद कर रही हैं. अर्मेनियाई लोगों के अनुसार 20वीं सदी की सबसे बड़ी त्रासदियों में से एक इस घटना में करीब 15 लाख लोगों की ऑटोमन तुर्कों ने हत्या कर दी थी.

तुर्की ने हमेशा कहा है कि इस सामूहिक हत्याकांड का निशाना केवल अर्मेनियाई ईसाई नहीं थे बल्कि कई मुसलमानों ने भी अपनी जान गंवाई थी. तुर्क इसे उस समय चल रहे वैश्विक युद्ध के माहौल की उपज और ऑटोमन साम्राज्य के खात्मे का काल बताते हैं. ऑटोमन काल के अंत के बाद 1923 में जाकर एक आधुनिक सजातीय तुर्क राष्ट्र की स्थापना हुई.

कुर्द लोगों ने इसी सप्ताह 100 साल पहले हुए इस हत्याकांड को जातिसंहार बताया है जबकि तुर्क लोग इससे इनकार करते आए हैं. करीब दो दर्जन पश्चिमी देश और बुद्धिजीवी भी 1915 की इस घटना को अर्मेनियाई सभ्यता का सफाया करने के इरादे से करार दिया गया जातिसंहार ही मानते हैं. वर्तमान में तुर्की के अर्मेनिया के साथ कोई राजनयिक संबंध नहीं हैं.

इस विवाद को इस महीने फिर हवा मिली जब पोप फ्रांसिस ने हत्याकांड को जातिसंहार कहा. इस पर तुर्की ने वैटिकन के दूत को तलब किया और वहां से अपने दूत को वापस बुला लिया. ऑस्ट्रिया की संसद में इसे जनसंहार कहे जाने पर भी तुर्की ने कड़ी आपत्ति जताई और वहां से भी अपने दूत को वापस बुलवा लिया है. जर्मनी में 24 अप्रैल को संसद में तय किया जाना है कि वे 1915 की घटना को जनसंहार ही मानेंगे. इन सब बातों से तुर्की राष्ट्रपति तैयप एर्दोआन काफी नाराज हैं.

पिछले साल एर्दोआन ने एक सदी पहले हुई इस घटना में हुई अर्मेनियाई लोगों की मौत पर अफसोस जताया था. तुर्की का मानना है कि अगर वे इसे जनसंहार मान लेते हैं तो यह एक ऐतिहासिक झूठ होगा. उनका कहना है कि ऐसे कोई साक्ष्य नहीं हैं जिससे साबित हो कि सत्ताधारियों ने अर्मेनियाई लोगों के ऊपर हिंसा के आदेश दिए हों. आधुनिक तुर्की की नींव रखने वाले लोगों में कई ऐसे हैं जो पहले ऑटोमन साम्राज्य में शासन कर चुके थे. ऐसे में तुर्की को यह भी मानना होना कि उनके राष्ट्रीय संस्थापकों में से कई लोग जनसंहार के दोषी थे और जिन्हें वे हीरो मानते आए हैं वे असल में हत्यारे थे. इतनी कड़वी गोली निगलने के लिए तुर्की तैयार नहीं है.

24 अप्रैल को अर्मेनियाई चर्च एक सदी पहले हत्याकांड के शिकार हुए उन 15 लाख अर्मेनियाई लोगों को संत घोषित करेगा. यह विश्व इतिहास में अब तक की सबसे बड़ी कैनोनाइजेशन सेरेमनी होगी.

आरआर/एमजे (रॉयटर्स)