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अल्जाइमर के इलाज की उम्मीद बढ़ी

८ जुलाई २०१४

अल्जाइमर पीड़ित लोगों की लगातार बढ़ती संख्या को देखते हुए डॉक्टरों और वैज्ञानिकों ने इस रोग को घटाने या फिर इसके इलाज के लिए कोशिश तेज कर दी हैं. भूलने की बीमारी या अल्जाइमर एक लाइलाज बीमारी है.

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तस्वीर: Fotolia/Doc Rabe Media

इस समय बाजार में मौजूद दवाएं अल्जाइमर की प्रगति को रोके बिना इसके लक्षण को कम कर सकती हैं. जर्मन शहर म्यूनिख के मनोचिकित्सक टीमो ग्रिमर के मुताबिक वर्तमान में उम्मीदें इम्युनोथेरेपी पर टिकी हैं. इसे शरीर का पैसिव इम्यूनाइजेशन कहते हैं. यानि शरीर की अपनी रोग प्रतिरोधी क्षमता को सक्रिय करने के लिए मरीज के शरीर में बाहर से एंटीबॉडी दिए जाते हैं. इसका उद्देश्य मस्तिष्क में चयापचय उत्पादों के जमा होने को घटाना या फिर धीमी गति देना है.

ग्रिमर कहते हैं कि इस रणनीति की तुलना टीके से की जा सकती है. वे कहते हैं, "अगर सबकुछ ठीक जाता है तो दो सालों में लाइसेंस प्राप्त एंटीबॉडी यानी रोग प्रतिरक्षी थेरेपी होंगी. तब हो सकता है कि चिकित्सा विज्ञान निश्चित रूप से टीका बनाने की कोशिश करेगा." लेकिन यह सब भविष्य की बात है. ग्रिमर कहते हैं, "इस समय इस बीमारी को रोकने का कोई तरीका नहीं है."

अल्जाइमर बेहद असामान्य दिमागी बीमारी है. औसतन 65 वर्ष की आयु के बाद यह बीमारी पकड़ में आती है. अब तक हुए वैज्ञानिक शोधों के मुताबिक अल्जाइमर के रोगियों के दिमाग का आकार समय से साथ बदलने लगता है. स्वस्थ मनुष्य के दिमाग के बीचो बीच और बाएं व दाहिने स्थान पर बहुत छोटा सा खाली हिस्सा रहता है. लेकिन अल्जाइमर के रोगियों के दिमाग का यह खाली हिस्सा फैलता जाता है. रोगी चीजों को तेजी से भूलने लगता है. बढ़ती उम्र के साथ उसमें चिड़चिड़ापन और अचानक मूड बदलने का स्वभाव आ जाता है.

अगर अल्जाइमर का पता समय से लग जाता है तो इसके लक्षण को दवाई की मदद से कम किया जा सकता है. ग्रिमर कहते हैं, "मरीज इसके बारे में बहुत पहले बता रहे हैं." उनका कहना है कि समाज में अल्जाइमर को लेकर जागरूकता बढ़ रही है. ग्रिमर कहते है, "इसका मतलब है कि मरीज छोटी बीमारी के साथ हमारे पास आते हैं जो किसी भी तरह से डिमेंशिया के स्तर तक नहीं पहुंची होती है." डिमेंशिया आम तौर पर बुढ़ापे में होने वाली बीमारी है जो आगे चलकर अल्जाइमर में तब्दील हो जाती है. ग्रिमर का कहना है, "इन लोगों में एंटी डिमेंशिया की दवाई मस्तिष्क की कोशिकाओं को प्रोत्साहित करती हैं, इसलिए याददाश्त का खोना ध्यान देने योग्य नहीं होता है लेकिन कुछ समय में बीमारी इन्हें जकड़ लेती है."

भविष्य में डिमेंशिया पीड़ित लोगों की देखभाल और इससे जुड़े खर्च को लेकर गहरी चिंता है. एक समय में डिमेंशिया पीड़ितों को चौबीसों घंटे देखभाल की जरूरत होती है. इस बीमारी के पीड़ितों की संख्या लाखों में पहुंच रही है और 2050 तक यह दोगुनी हो जाएगी. "यही निर्णायक बिंदु है जो चिकित्सा विज्ञान को इतना महत्वपूर्ण बनाता है कि वह इस ओर आगे बढ़े. एक व्यापक रोग जो लाखों लोगों को प्रभावित करता है एक बिंदु पर वह असहनीय हो जाता है. सौभाग्य से कई मामलों में रिश्तेदार, पार्टनर या फिर बच्चे उनका भार उठा लेते हैं."

एए/एमजे (डीपीए)