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असुरक्षा की भावना है हर कहीं

८ जनवरी २०१६

जर्मनी में आंतरिक सुरक्षा की बात होने पर लोग पहले आतंकी हमले की बात सोचते थे. नए साल की रात महिलाओं पर यौन हमले के बाद हालात बदल गए हैं. मार्सेल फुर्स्टेनाऊ का कहना है कि जरूरत नए कानून की नहीं, कानून पर अमल की है.

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तस्वीर: Reuters/W. Rattay

कोलोन, म्यूनिख, लाइपजिग या कहीं और इस्लामी कट्टरपंथी हमले का शिकार होने का खतरा हकीकत में बहुत कम है. फिर भी जर्मनों को उससे सबसे ज्यादा डर लगता है. पेरिस जैसे हमलों की तस्वीर देखने के बाद इसे भावनात्मक तौर पर समझा जा सकता है. इसके पहले ऐसी तस्वीरें लंदन, मैड्रिड और न्यूयॉर्क से भी आ चुकी हैं. ये हमले अपने को पश्चिमी और समझदार समझने वाले समाज के लोगों के दिमाग में अफगानिस्तान, इराक, सीरिया या भारत की तस्वीरों से ज्यादा असर डालती हैं. ये देश यहां रहने वाले लोगों के लिए न सिर्फ भौगोलिक तौर पर बल्कि सांस्कृतिक और धार्मिक तौर पर भी बहुत दूर हैं.

दुनिया के दूसरे देशों से तुलना की जाए तो जर्मनी ईर्ष्या होने लायक सुरक्षित हालात में है. अब इसमें चाहे बाहरी खतरे की बात हो या घरेलू खतरे की. इसके बावजूद बहुत जरूरी है कि उन मुद्दों पर खुलकर चर्चा की जाए जिन्हें विभिन्न कारणों ने वर्जित बना दिया है. नए साल की रात जर्मनी के कई शहरों में महिलाओं के साथ बड़े पैमाने पर हुए यौन दुर्व्यवहार के बाद बहस ने जोर पकड़ लिया है. और यह सही भी है. क्योंकि अब खुलकर उन आपराधिक और इंसान विरोधी अपराधों पर बोला जा रहा है जो नए कतई नहीं हैं. लेकिन आंतरिक सुरक्षा के नजरिए से इस मामले पर बहस के लिए इस चौंकाने वाले आयाम की जरूरत हुई है.

Kommentarfoto Marcel Fürstenau Hauptstadtstudio
मार्सेल फुर्स्टेनाऊतस्वीर: DW/S. Eichberg

अब तक महिलाओं के लिए रात में मेट्रो में सफर करना समस्या नहीं थी. लेकिन कोलोन में नए साल की रात के बाद ऐसा नहीं रहा. सुरक्षा के मामले में फिर से भरोसा पैदा करने के लिए अब नई शुरुआत करनी होगी. उसकी कुंजी पूरे समाज के हाथों में है. जो अपराध है उसके लिए सजा दी जानी चाहिए. उसके लिए नए कानूनों की जरूरत नहीं है, बस मौजूदा कानूनों पर अमल की जरूरत है. उसमें शर्त पूरी होने पर विदेशी अपराधियों को देश से निकालना शामिल है. इसका विदेशी विरोध से लेना देना नहीं है, बल्कि यह कानून को लागू करने का मुद्दा है. और जर्मन पासपोर्ट वाले अपराधी सजा पाकर जेल पहुंचेंगे. यही हकीकत है. कम से कम सैद्धांतिक रूप से.

अपराधियों को सजा देना आंतरिक सुरक्षा का महत्वपूर्ण हिस्सा है. वह इस बात का अहसास देता है कि कोई भी अपराध कानून की निगाहों से बच नहीं सकता. यदि अपराधियों को सजा न मिले तो लोग असुरक्षित महसूस करने लगते हैं. वे भी जो सीधे प्रभावित नहीं हैं. लोगों को सुरक्षा की भावना देने के लिए जरूरी है कि सही जगह पर निवेश किया जाए. उसमें सबसे प्रमुख है पुलिसकर्मियों की संख्या बढ़ाना और उन्हें पहरे के लिए तैनात करना. उन्हें हमारी ओर से अधिक संसाधनों की और नैतिक समर्थन की जरूरत है.