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आईआईटी में जगह बनाने वाले दलित भाइयों पर हमला

समरा फातिमा२३ जून २०१५

भारत के प्रतिष्ठित तकनीकी संस्थान आईआईटी में जगह बनाने वाले उत्तर प्रदेश के दलित भाइयों को केंद्र और राज्य सरकार से मदद के एलान के बाद नई मुसीबत झेलनी पड़ रही है. उनके घर पर रविवार को हमले के बाद पुलिस सुरक्षा दी गई है.

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Symbolbild Studenten applaudieren
तस्वीर: Robert Kneschke/Fotolia.com

प्रतापगढ़ के रेहुआ लालगंज गांव के रहने वाले दोनों भाई बृजेश सरोज और राजू सरोज रविवार रात परिवार के साथ घर के बाहर बैठे थे जब कुछ लोगों ने उन पर पत्थर फेंकने शुरू कर दिए. यह हमला उनके लखनऊ से वापस लौटते ही हुआ जहां उन्हें मुख्यमंत्री अखिलेश यादव ने सम्मानित किया और एलान किया कि राजू और बृजेश के दाखिले और पढ़ाई का खर्च राज्य सरकार वहन करेगी.

जिला मदिस्ट्रेट ने हमले की खबर मिलते ही एसडीएम लालगंज वाईपीसिंह को आधा दर्जन पुलिस कर्मियों के साथ भेजा. राजू और बृजेश के बड़े भाई राजेश सरोज के मुताबिक, "हम अपने घर के बाहर बैठे थे जब कुछ अज्ञात युवक हम पर पत्थर फेंकने लगे. मेरे भाई बृजेश और घर की कुछ महिलाओं को चोट लगी."

तंगी और गरीबी की हालत में राजू और बृजेश के आईआईटी में जगह बनाने और फीस की भारी रकम चुकाने में असमर्थता की खबर आने के बाद से उनकी तरफ मदद के कई हाथ बढ़ने लगे. अखिलेश यादव के अलावा मानव संसाधन विकास मंत्री स्मृति ईरानी ने भी राजू और बृजेश की आईआईटी में दाखिले की फीस माफ करने की घोषणा की है. परिवार के आर्थिक हालात जानने के बाद कुछ गैर सरकारी संगठनों समेत बड़ी हस्तियों ने मदद की पेशकश की जिनमें कांग्रेस उपाध्यक्ष राहुल गांधी भी शामिल हैं.

राजू के मुताबिक परीक्षा के परिणाम आने के बाद से उन्हें कई बड़ी हस्तियों की कॉल आई. "राहुल जी की भी कॉल आई, मैं बहुत प्रसन्न हूं. बॉलीवुड अभिनेता आमिर खान ने भी कॉल किया और मुझे बिना किसी चिंता के पढ़ाई जारी रखने का सुझाव दिया." स्मृति ईरानी ने दोनों भाइयों की पंजीकरण फीस, शिक्षण शुल्क, मेस और अन्य शुल्क माफ किये जाने के बारे में ट्वीट किया.

राजू और बृजेश के पिता मजदूर हैं. दोनों ने अच्छी रैंक के साथ आईआईटी की प्रवेश परीक्षा उत्तीर्ण की. राजू ने 167वीं रैंक जबकि उसके भाई बृजेश ने परीक्षा में 410वीं रैंक हासिल की है. लेकिन परिवार के आर्थिक हालात ऐसे नहीं कि उनकी पढ़ाई का खर्च उठा सके.

राजू ने भारतीय मीडिया को बताया कि यह पहली बार नहीं है जब उनके परिवार को गांव वालों से इस तरह का बर्ताव झेलना पड़ रहा है. पहले भी कभी उनकी नाली बंद कर गई तो कभी सार्वजनिक शौचालय में जाने से उन्हें रोका गया. परिवार के मुताबिक दलित होने के कारण उन्हें इस तरह के अत्याचार सहते रहना पड़ा है.