1. कंटेंट पर जाएं
  2. मेन्यू पर जाएं
  3. डीडब्ल्यू की अन्य साइट देखें

आईपीएल पर जर्मन प्रेस की नज़र

३० अप्रैल २०१०

आईपीएल सिर्फ तीन सालों में दुनिया के दूसरे सबसे बडे देश भारत में सबसे प्रमुख खेल टुर्नामेंट बन गया है. शायद आईपीएल की लोकप्रियता धोखा, अफवाहों, स्कैंडलों और अवैध धंधों पर निर्भर हैं.

https://p.dw.com/p/NBDD
तस्वीर: BilderBox

यह कहना है जर्मनी के सबसे मशहूर दैनिकों में से एक फ्रांकफुर्टर आलगमाईने त्साईटुंग का.

इस बीच सबको रोशन करता है तथाकथित आईपीएल बॉलिवूड का ग्लैमर फैक्टर. क्रिकेट प्रेमियों के बीच बहुत बड़े और छोटे स्टार्स देखने को मिलते हैं. इसके अलावा राजनीतिज्ञ और कड़ोरपति भी और दलाई लामा भी. संरचना बिल्कुल बेकार है, लेकिन माहौल ठीक है. कार्निवल का माहौल है, पार्टियां फॉर्मुला वन स्टाईल में की जातीं हैं. चीयरलीडर रूस से भारत बुलाए जाते हैं, अरबों का मुनाफा होता है और इसके ज़रिए काले धन को भी सफेद किया जाता है. आर्थिक अखबार मिंट के आर्थिक मामलों के जानकार समंथ सुब्रह्मण्यम का इस सब को लेकर मानना है कि आईपीएल की सफलता एक टुर्नामेंट की सफलता नहीं हैं, बल्कि शायद इंडिया इनकोर्पोरेटड का विकास है.

भारत में आदिवासियों का बहुमत नक्सलवादियों और सरकार के बीच विवाद में फंसा हुआ है. इसके बारे में बर्लिन का टात्ज़ अखबार लिखता है.

कहीं और भूख और कुपोषण भारत में ज़्यादा देखने को नहीं मिलते है जितना आदिवासियों के बीच देखने को मिलते है. जिस तरह दलित भी बहुत सारे भारतीयों के लिए दूसरे दर्जे के नागरिक हैं उसी तरह आदिवासी भी इस नज़रिए से देखे जाते हैं. एक ज़माने में दलितों के बीच ईसाई धर्म लोकप्रिय हो गया था, उसी तरह अब कई आदिवासियों के लिए नक्सलवादी भी आकर्षण का केंद्र बन रहे हैं. लेकिन बहुत से आदिवासी ऐसे भी हैं जिन्हे समझ नहीं आ रहा है कि उन्हे किस पक्ष के हित में फैसला लेना है. उनकी आलोचना है कि हिंसा उनकी रोज़मर्रा की ज़िंदगी का हिस्सा बन गईं हैं. कितने शक्तिशाली नक्सली भी हैं, वह यह दिखाते नहीं हैं. वह धमकी देते हैं ताकि उनके विरोधी डर जाएं. इसके साथ आदिवासी पूलिस कर्मियों के बदले से भी डरते हैं, क्योंकि कई बार पूलिसवाले उनपर शक करते हैं. जंगलों में लडाई बहुत ही निर्मम होती है.

और अब एक नज़र पाकिस्तान पर. पाकिस्तान में हाल ही में राष्ट्रपति आसिफ अली ज़रदारी के संवैधानिक सुधारों के साथ देश को एक बार फिर लोकतंत्र के रास्ते पर वापस ले जाने की कोशिश की जा रही है. इसके साथ पूर्व राष्ट्रपति परवेज़ मुशर्रफ के सैनिक शासन की विरासत को खत्म करने की भी कोशिश की जा रही है. यह मानना है साम्यवादी अखबार नोएस डोएत्शलांड का.

वाकई सुधारों के साथ उस व्यवस्था को खत्म किया जाएगा जिसमें राष्ट्रपति ही केंद्र था और लगभग सर्वशक्तिमान था. संसद और सरकार सिर्फ उनकी कठपुतलियां थीं. अब निर्णय लेने की शक्ति संसद और सरकार को प्रदान कर दी गई है. लेकिन यह भी कहना होगा कि पाकिस्तान के ज़्यादातर लोग लोकतंत्र शब्द के साथ ज़िंदगी नहीं बिता सकते हैं. वे महंगाई, पीने के पानी के अभाव, लोडशेडिंग, ग्रामीण क्षेत्रों में विकास के अभाव और कट्टरपंथियों के आतंकवादी हमलों से पीड़ित हैं. प्रधानमंत्री युसूफ रज़ा गिलानी ने इस समस्या को पहचाना. एक भाषण में उन्होने कहा कि लोकतंत्र को सिर्फ शब्दों के ज़रिए मज़बूत नहीं बनाया जा सकता है. बातों के बाद अब कार्यों की ज़रूरत है. लेकिन संविधान के मुताबिक अब प्रधानमंत्री पर यह ज़िम्मेदारी है.

पाकिस्तानी कलाकारों के कार्य दुनियाभर में अब देखने को मिलते हैं. ज़ूरिख स्थित नोए ज़ुरिखर त्साइटुंग बताता है कि पिछले दस सालों में मशहूर बने लगभग सभी पाकिस्तानी कलाकार पाकिस्तान में रहते और वहीं काम करते हैं.

करीब 20 व्यापारिक गैलरियों के साथ कहा जा सकता है कि पाकिस्तान में कराची, लाहौर और इस्लामाबाद में छोटी, लेकिन कुशल कलाकारों की सीन बनी हुई हैं. लाहौर और कराची में कला स्कूलें भी स्थापित हुए हैं और अच्छे चल रहे हैं. एक विशेष तरह की बात पाकिस्तानी कला में यह है कि सभी मशहूर कलाकार उन्ही संस्थाओं के साथ जुड़े हुए हैं या उनमें सक्रिय हैं. अपनी पहचान और अपने देश और नागरिकता पर कला के ज़रिए विचार करना एक ऐसा मुद्दा था, जिस पर पहले की दो कलाकारों की पीड़ियां विचार करती आई हैं. लेकिन यह कलाकारों की नई पीड़ी में नहीं देखने को मिलता है.

और अंत में चलते हैं श्रीलंका. श्रीलंका जहां हज़ारों यूरोपीय सैलानी हर साल अपनी छुट्टियां मनाना पसंद करते हैं, धीरे-धीरे पश्चिमी देशों से दूर होता जा रहा है. देखा जा रहा है कि श्रीलंका लिबिया, इरान, पाकिस्तान या चीन जैसे देशों के करीब होता जा रहा है. फ्रांकफुर्टर आलगमाईने त्साईटुंग का कहना है.

पूराने सहयोगी बस देखते ही जा रहे हैं कि किस तरह से श्रीलंका दूसरे देशों पर निर्भर बनता ही जा रहा है. बेजिंग से आर्थिक मदद के साथ कोलंबो श्रीलंका के दक्षिण में उसके मुताबिक दक्षिण एशिया का सबसे बड़ा बंदरगाह बना रहा है. इस बात पर अटकलें लगाईं जा रहीं है कि चीन अपनी उदारता के बदले में एक दिन श्रीलंका से वहां अपना नौसैनिक अड्डा बनाने की मांग करेगा. इस सब को देखते हुए श्रीलंका का बड़ा पड़ोसी भारत चिंतित हैं, क्योंकि भारत अब तक हिंद महासागर के जहाज़ी मार्ग पर परंपरागत रूप से नियंत्रण करता आया है. सिर्फ श्रीलंका का डरा हुआ विपक्ष ही नहीं, दूसरे पक्ष भी श्रीलंका में हो रहे गतिविधियों के विकास को देखते हुए चिंतित हैं.

संकलन: अना लेमान्न/प्रिया एसेलबोर्न

संपादन: उज्ज्वल भट्टाचार्य