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आग से नहीं सीखता कोलकाता

२७ फ़रवरी २०१३

पश्चिम बंगाल में ममता बनर्जी सरकार ने पिछली गलतियों से लगता है कोई सबक नहीं सीखा. यही वजह है कि राजधानी कोलकाता में लगभग हर साल भयानक अग्निकांड हो रहे हैं. इनके अलावा आग की छोटी मोटी घटनाएं तो पूरे साल होती रहती हैं.

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तस्वीर: DIBYANGSHU SARKAR/AFP/Getty Images

हर बड़े हादसे के बाद सरकार की नींद कुछ देर के लिए टूटती है. लेकिन थोड़ी सक्रियता के बाद वह फिर नींद में समा जाती है. सरकार के इस लापरवाह रवैये की वजह से ही बुधवार तो तड़के महानगर में सियालदाह स्टेशन से सटे छहमंजिले सूर्यसेन मार्केट को अग ने अपनी लपेटे में ले लिया.

इस अग्निकांड में महिला समेत कई लोगों की जान गई. हादसे में कम से कम एक दर्जन लोग बुरी तरह घायल हुए. उनको विभिन्न अस्पातलों में दाखिल कराया गया है जहां उनकी हालत गंभीर है. ऐसे में मरने वालों की तादाद बढ़ सकती है. मरने वालों में ज्यादातर मजदूर थे जो दिन में उस बाजार में काम करते हैं और रात को वहीं सो जाते हैं.

फायर ब्रिगेड के एक अधिकारी ने बताया कि सुबह लगभग तीन बजे नीचे की मंजिल से शुरू हुई आग ने धीरे धीरे पूरी बिल्डिंग को अपनी चपेट में ले लिया और रात को वहां सोए लोग दम घुटने और आग से जलने की वजह से मौत के मुंह में समा गए. अब हर बार की तरह इस भयावह घटना के बाद भी आरोप प्रत्यारोप का दौर शुरू हो गया है.

प्लास्टिक की दुकानें

इस छहमंजिले बाजार में ज्यादातर दुकानें प्लास्टिक की थीं. बाजार में घुसने का रास्ता महज एक और वह भी संकरा होने की वजह से फायर ब्रिगेड कर्मचारियों को आग पर काबू पाने में काफी मशक्कत करनी पड़ी. फायर ब्रिगेड की 26 इंजनों ने घंटों की मशक्कत के बाद आग पर काबू पाया. आग की वजह का तो फिलहाल पता नहीं लग सका है. लेकिन मौके पर पहुंचे दमकल मंत्री जावेद खान ने कहा कि आग शायद शार्ट सर्किट की वजह से लगी है.

Brandkatastrophe in Kolkata
सूर्यसेन मार्केट में आग लगीतस्वीर: DIBYANGSHU SARKAR/AFP/Getty Images

मुख्यमंत्री ममता बनर्जी ने मौके का मुआयना किया और मृत लोगों के परिजनों को दो -दो लाख रुपये और घायलों को 50 50 हजार रुपये का मुआवजा देने का एलान किया. उन्होंने फायर ब्रिगेड, कोलकाता नगर निगम और पुलिस से तीन दिनों के भीतर इस हादसे पर रिपोर्ट देने को कहा है. उसके बाद दोषियों के खिलाफ सख्त कार्रवाई की जाएगी.

पूर्व सरकार पर आरोप

मुख्यमंत्री ममता बनर्जी कहती हैं, "राज्य की पूर्व वाम मोर्चा सरकार ने महानगर की बहुमंजिली इमारतों में आग से बचाव के उपायों के प्रति आंखें मूंद रखी थीं. इस लापरवाही का खमियाजा अब मौजूदा सरकार को भुगतना पड़ रहा है." मुख्यमंत्री ने इस घटना के पीछे साजिश की संभावना से भी इनकार नहीं किया है. उन्होंने कहा, "यह बात सब जानते थे कि इस बाजार में भारी मात्रा में ज्वलनशील पदार्थ है. एक हल्की चिंगारी भी इसको मलबे के ढेर में काफी थी."

ममता ने कहा कि इस घटना के तमाम पहलुओं की जांच की जाएगी. दमकल मंत्री जावेद खान आरोप लगाते हैं, "यह बाजार गैरकानूनी तरीके से बना था. पहले की वाम मोर्चा सरकार ने महानगर में कई ऐसी इमारतों को गैरकानूनी तौर पर कामकाज की अनुमति दी थी जहां आग से बचाव के मामूली इंतजाम तक नहीं थे." खान ने कहा कि इमारत के मालिक के खिलाफ कड़ी कार्रवाई की जाएगी. दूसरी ओर विधानसभा में विपक्ष के नेता सूर्यकांत मिश्र ने कहा कि यह आरोप प्रत्यारोप का समय नहीं है. उन्होंने कहा कि इस हादसे की निष्पक्ष जांच से हकीकत सामने आ जाएगी. सीपीएम नेता मिश्र ने भी मौके का दौरा किया.

इमारत के एक दुकानदार शोभन घोष कहते हैं, "मुझे सुबह तीन बजे आग लगने की सूचना मिली. यहां पहुंचने पर देखा कि पूरी इमारत आग और धुएं में घिरी है. उनका दावा है कि इस इमारत में यह बाजार पिछले 40 वर्षों से चल रहा है." पुलिस का कहना है कि इमारत की ऊपर की मंजिलों में स्थित गोदामों में केमिकल, प्लास्टिक और कागज रखे थे. उनसे आग तैजी से फैल गई.

Mamata Banerjee Ministerpräsidentin West Bengal
मुख्यमंत्री ममता बनर्जीतस्वीर: Prabhakar Mani Tewari

सीख नहीं ली

वैसे सरकार चाहे जो भी दावे करे, यह सच है कि ऐसी हर बड़ी घटना के बाद कुछ दिनों तक तो सक्रियता रहती है. लेकिन उसके बाद सब कुछ जस का तस हो जाता है. दिसंबर, 2011 में महानगर के एमआरआई अपताल में हुई घटना इस बात का सबूत है. उस हादसे में 93 लोग मारे गए थे. उनमें से ज्यादातर मरीज थे. उस अगिनकांड के बाद के घटनाक्रमों से ही यह बात साफ हो जाती है. उस घटना के बाद फायर ब्रिगेड के पांच सदस्यों को लेकर एक सुरक्षा जांच और निगरानी समिति बनाई गई थी जिसने महानगर और आसपास के 39 बड़े अस्पतालों का दौरा किया था. उनमें से किसी में भी आग से बचाव के संतोषजनक उपाय नहीं थे.

समिति की सिफारिश के बावजूद अब भी इनमें से 20 बड़े अस्पताल फायर ब्रिगेड की एनओसी के बिना ही चल रहे हैं. घटना के तीन महीने बाद यह समिति भी निष्क्रिय हो गई. इसके दो सदस्य हट गए हैं. कर्मचारियों की कमी की दुहाई देकर अब अस्पतालों की निगरानी का काम ठप है. उस आग से जूझने में खुद फायर ब्रिगेड को भी कई समस्याओं से जूझना पड़ा था. उसके पास ऊंची सीढ़ी और क्रेन नहीं थी. तब इस विभाग के आधुनिकीकरण की बात कही गई थी और नए उपकरण खरीदे जाने थे. लेकिन साल भर बाद भी कुछ नहीं हुआ है. फायर ब्रिगेड की हालत जस की तस है. एएमआरआई मामले में आरोप पत्र दायर होने के 12 महीने बाद भी इस मामले की सुनवाई शुरू नहीं हो सकी है.

सजा की बात तो बहुत दूर है. सबसे बड़ी विडंबना यह है कि अब तक फोरेंसिक रिपोर्ट भी अदालत में जमा नहीं हुई है. उससे पहले पार्क स्ट्रीट की इमारत स्टीफन कोर्ट में हुई अग्निकांड के मामले में भी अब तक कोई खास प्रगति नहीं हो सकी है.इससे सरकार का रवैया झलकता है. ऐसे में निकट भविष्य में ऐसी घटनाओं की पुनरावृत्ति का अंदेशा रत्ती भर भी कम नहीं हुआ है.

रिपोर्टः प्रभाकर, कोलकाता

संपादनः ए जमाल

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