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आप भी हैं चिंतित फर्जी खबरों से? आइए बात करें इसके बारे में

जुल्फिकार अबानी
२५ जनवरी २०१७

सच्ची खबरों पर फर्जी खबरों के बढ़ते वर्चस्व के बीच कहना मुश्किल होता जा रहा है कि सोशल मीडिया पर सच क्या है और झूठ क्या है. सारा मामला सोशल बॉट्स का है. लेकिन वे क्या हैं और किस तरह राजनीतिक पद्धति पर असर डाल रहे हैं?

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DW-Karikatur von Sergey Elkin - Donald Trump und Twitter
तस्वीर: DW/S. Elkin

दुनिया को समझने में सोशल मीडिया की बढ़ती भूमिका के बीच यह जानना बहुत अहम हो गया है कि फेसबुक, ट्विटर और दूसरे साइट सूचना को उपभोक्ता तक किस तरह पहुंचाते हैं. पहले लोग राजनीतिज्ञों, आर्थिक मॉडलों और वैचारिक आंदोलनों के महत्व, उनकी लोकप्रियता और विश्वसनीयता का मूल्यांकन पेशेवर रिपोर्टों, सर्वे और सुनी-सुनाई बातों के आधार पर करते थे. अब वे सोशल मीडिया पर चल रहे ट्रेंड या उनकी फीड पर स्वीकार्य समझी जाने वाली खबरों से प्रभावित हो रहे हैं.

यहीं शुरू होती है सोशल बॉट्स यानी इंटरनेट रोबोटों की भूमिका. बीएमड्ब्लयू से लेकर स्पॉटीफाई जैसी कंपनियों के पहले से प्रोग्राम किए हुए बॉट्स की मदद से यूजर हर उस गाने को सेव कर सकता है जिसे उसने म्यूजिक ऐप पर रेकमेंड किया है. वह इंस्टाग्राम पोस्ट को ऑटोमेटिकली ट्विटर अकाउंट पर पोस्ट कर सकता है, कार के आने पर गैरेज को खोल सकता है. कुछ लोग तो खतरनाक सॉफ्टवेयर के साथ खुद अपना बॉट बना लेते हैं. इनका सबसे ज्यादा असर फेसबुक और ट्विटर पर दिखता है जहां हजारों जाली फॉलोवरों के साथ जाली अकाउंट बनाए जाते हैं और विश्वसनीयता का स्वांग रचा जाता है. किसी खास बॉट के साथ मिलकर इन फर्जी अकाउंट से लोगों को खास संदेश वाली पोस्ट या रिट्वीट भेजे जा सकते हैं.

Infografik DDos Angriff EN

फेक न्यूज

तथ्यों को तोड़ना मरोड़ना आज के राजनीतिक माहौल में बड़ा मुद्दा है. दुनिया भर में राजनीतिक बहस में यही हो रहा है. जर्मन कानून मंत्री हाइको मास ने चेतावनी दी थी कि इस साल होने वाले संसदीय चुनावों से पहले फर्जी खबरों का इस्तेमाल हो सकता है. उनकी चिंता निराधार नहीं है. हालांकि फर्जी खबरें इंसानों द्वारा लिखी जाती हैं लेकिन उनका प्रसार फेसबुक, ट्विटर या रेडिट जैसे साइटों पर बने लाखों फर्जी अकाउंटों के जरिये होता है. अमेरिका में डॉनल्ड ट्रंप की जीत के फौरन बाद बजफीड द्वारा कराए गए एक सर्वे के अनुसार सोशल मीडिया पर फर्जी खबरों पर पाठकों की 19 मीडिया संस्थानों की असली रिपोर्टों से ज्यादा प्रतिक्रिया रही.

दुनिया भर की प्रमुख यूनिवर्सिटियों की एक टीम पॉलिटिकल बॉट्स की एक रिपोर्ट के अनुसार ट्विटर पर 3 करोड़ अकाउंट फर्जी यूजरों के हैं. उन्होंने ये भी पाया कि अमेरिकी चुनाव अभियान में फर्जी खबरों को भड़ावा देने वाले ट्रंप समर्थक बॉट्स की तादाद क्लिंटन समर्थक बॉट्स की पांचगुनी थी. रिपोर्ट में चेतावनी दी गई है कि इंटरनेट में खास मकसद पूरा करने के लिए अलगोरिदम से संचालित कंप्यूटर प्रोग्रामों ने दुनिया भर में राजनीतिक बहस पर कब्जा कर लिया है. इस तरह के मानव सॉफ्टवेयर हाइब्रिड के बढ़ते इस्तेमाल और उनके पीछे के अज्ञात और भेदभाव वाले अलगोरिदम ने सोशल मीडिया की राजनीतिक संभावना को नष्ट करने का खतरा पैदा कर दिया है.

हालांकि हॉक्समैप जैसी कंपनियां 2016 से ही फर्जी खबरों की समस्या से लड़ने की कोशिश कर रही है, सोशल मीडिया कंपनियां और सरकारें अब नींद से जागी हैं. फेसबुक ने हाल ही में अपने प्लैटफॉर्म पर फर्जी खबरों से निबटने की पहल की घोषणा की है. जर्मन सरकार ने इनका सामना करने के लिए गृह मंत्रालय में "सेंटर ऑफ डिफेंस अगेंस्ट डिसइन्फॉरमेशन" नाम की इकाई बनाई है. केंब्रिज यूनिवर्सिटी के रिसर्चरों का कहना है कि एक मनोवैज्ञानिक टीका लोगों को फर्जी खबरों से बचा सकता है. लेकिन दूसरे टीकों की तरह इसे बनाने में भी दशकों लग सकते हैं.