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आसान नहीं है महिला उद्यमियों की राह

प्रभाकर, कोलकाता२८ जून २०१५

भारत में महिला सशक्तिकरण और आरक्षण को लेकर भले लंबे-चौड़े दावे किए जाते रहे हों, यहां महिला उद्यमियों की राह आसान नहीं है. समाज के विभिन्न क्षेत्रों की तरह उनको उद्योग जगत में भी भारी भेदभाव का सामना करना पड़ता है.

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Indien Unternehmerinnen Sulajja Motwani
तस्वीर: Getty Images/AFP/Raveendran

भेदभाव के अलावा महिलाओं की काबिलियत पर सवाल उठाए जाते हैं. यही वजह है कि महिला उद्यमिता सूचकांक की ताजा सूची में शामिल 77 देशों में से भारत 70वें स्थान पर है. पश्चिम बंगाल समेत देश के कई राज्यों में तो हालात और बदतर हैं. महिला मुख्यमंत्री के सत्ता में होने के बावजूद इस मामले में बंगाल की हालत बाकी राज्यों से खराब है. यहां महिलाओं की कौन कहे, पुरुषों को भी कारोबार के क्षेत्र में भारी मुसीबतों से जूझना पड़ता है.

इस अध्ययन में उद्योग के क्षेत्र में महिलाओं के पिछड़ने की प्रमुख वजहों में मजदूरों की उपलब्धता और कारोबार के लिए पूंजी जुटाने में होने वाली दिक्कतें शामिल हैं. वाशिंगटन स्थित ग्लोबल इंटरप्रेन्योरशिप एंड डेवलपमेंट इंस्टीट्यूट (जीईडीआई) की ओर से बीते साल जारी ऐसे सूचकांक में 30 देश शामिल थे और उनमें भारत 26वें स्थान पर था. इससे साफ है कि देश में महिला उद्यमियों के स्थिति सुधरने की बजाय और बदतर हो रही है. हालांकि संस्था का कहना है कि पिछले साल के मुकाबले भारत की रैंकिंग दरअसल कुछ सुधरी है.

यह सही है कि भारत में अब उच्च तकनीकी शिक्षा और प्रबंधन की डिग्री के साथ हर साल पहले के मुकाबले ज्यादा महिलाएं कारोबार के क्षेत्र में कदम रख रही हैं. लेकिन यह भी सही है कि समानता के तमाम दावों के बावजूद उनको इस क्षेत्र में पुरुषों के मुकाबले ज्यादा परेशानियों का सामना करना पड़ता है. समाजशास्त्री प्रोफेसर धीरेंद्र पटनायक कहते हैं, "दरअसल, महिलाओं के प्रति हमारे समाज का नजरिया इसकी एक प्रमुख वजह है. बैंकों और वित्तीय संस्थानों को भी उनकी काबिलियत पर संदेह होता है. इसलिए महिला उद्यमियों को जरूरी पूंजी जुटाने में काफी मशक्कत करनी पड़ती है." पटनायक का कहना है कि महिला उद्यमियों की राह में आने वाली बाधाओं को दूर करने के लिए पहले समाज का नजरिया बदलना जरूरी है.

दक्षिण भारतीय राज्यों में महिला उद्यमियों की स्थिति कुछ बेहतर है. लेकिन पूर्वी और उत्तर भारत के राज्यों में इन महिलाओं को काफी भेदभाव का सामना करना पड़ता है. यही वजह है कि बंगलुरू, हैदराबाद, चेन्नई और तिरुअनंतपुरम जैसे शहरों में तो कई कामयाब महिला उद्यमी पुरुषों के साथ कंधे से कंधा मिला कर बढ़ती नजर आती हैं. लेकिन उत्तर भारतीय शहरों में उनका टोटा है. पश्चिम बंगाल में मुख्यमंत्री ममता बनर्जी के तमाम दावों के बावजूद नए निवेश तो दूर पहले से स्थापित उद्योगों का भी पलायन शुरू हो गया है. राज्य की मौजूदा राजनीतिक हालत में कोई बड़ा औद्योगिक घराना भी यहां निवेश के लिए तैयार नहीं है. ऐसे में महिला उद्यमियों की कौन कहे. यहां छोटा-मोटा काम शुरू करने में भी राजनीतिक आकाओं को प्रसाद चढ़ाना उद्यमियों की मजबूरी है.

अध्ययन में कहा गया है कि महिला उद्यमियों की राह की बाधाएं दूर करने के लिए अभी बहुत कुछ किया जाना बाकी है. इनमें बैंक खातों तक पहुंच आसान बनाना, वित्तीय प्रशिक्षण कार्यक्रम शुरू करना और पूंजीगत जरूरतों को पूरा करने के उपाय तलाशना शामिल हैं. अपने उद्यम के शुरूआती दौर में ज्यादातर महिलाओं को निजी पूंजी के सहारे ही आगे बढ़ना पड़ता है. अंतरराष्ट्रीय वित्त आयोग की एक रिपोर्ट में कहा गया है कि लघु, छोटे और मझौले उद्योगों में महिला उद्यमियों की पूंजीगत जरूरतों को पूरी करने में 6.37 लाख करोड़ की वित्तीय खाई है.