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इंसानों की तरह चलेंगे रोबोट

१४ जनवरी २०१४

भविष्य में रोबोट हमें हर मुश्किल स्थिति से निकालने की हालत में होंगे. कोई आग में फंसा हो या कहीं गड्ढे में गिर गया हो, रोबोट हमें बाहर निकालेंगे. जहां इंसानी मदद नहीं पहुंच सकती वहां रोबोट पहुंचा करेंगे.

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तस्वीर: DW/A.Freund

जर्मनी के शहर हाइडलबर्ग में शुरू हुए इस प्रोजेक्ट में यूरोपीय संघ निवेश कर रहा है. प्रोजेक्ट का मकसद है रोबोट को इतना संपूर्ण बना देना कि वे इंसानों की ही तरह चल फिर सकें. बारिश में गीली जमीन पर चलना हो या बर्फ वाले फिसलते रास्तों पर या फिर किसी पथरीली चट्टान पर चढ़ना हो, रोबोट को इंसानों की तरह खुद को अलग अलग परिस्तिथियों में ढालना सीखना होगा.

प्रोजेक्ट को नाम दिया गया है कोरोइबोट. दरअसल 776 ईसा पूर्व में जब पहली बार ओलंपिक खेल खेले गए तब उसे जीतने वाले का नाम था कोरोइबोस. उन्हीं के नाम पर इस प्रोजेक्ट का नाम रखा गया है. यह प्रोजेक्ट तीन साल तक चलेगा और इसके तहत 'ह्यूमनोइड' यानि इंसानों जैसे दिखने वाले रोबोट को बेहतर बनाने पर काम किया जाएगा.

बिना रिमोट के

इस प्रोजेक्ट में कुल 40 वैज्ञानिक हिस्सा ले रहे हैं जो यूरोप के अलावा इस्राएल और जापान से हैं. रोबोट बनाने में जापान दुनिया में सबसे आगे है. यूरोपीय संघ इसके लिए 42 लाख यूरो खर्च कर रहा है. प्रोजेक्ट का नेतृत्व करने वाली हाइडलबर्ग यूनिवर्सिटी की कात्या मोमबाउअर कहती हैं, "हम ऐसे सॉफ्टवेयरों का विकास कर रहे हैं जिनकी मदद से रोबोट की गतिविधियों को नियंत्रित करना आसान हो सकेगा. हम ऐसे तरीके विकसित कर रहे हैं जिनसे वे बेहतर रूप से चल सकेंगे और स्थिति के अनुसार खुद बहुत कुछ सीख सकेंगे."

जापान में आए भूकंप और सूनामी को याद करती हुई वह कहती हैं, "2011 में हुए फुकुशिमा हादसे ने यह बात साफ कर दी कि अगर ऐसा रोबोट होता जिसे चलाने के लिए रिमोट की जरूरत ना हो और जो इंसानों की ही तरह काम कर सकता हो तो कितना फायदा हो सकता था." कात्या मोमबाउअर कहती हैं कि अगर उस समय रोबोट के क्षेत्र में ज्यादा शोध हो चुका होता तो बाद में जिन बुरे परिणामों का सामना करना पड़ा उनसे बचा जा सकता था. वह उम्मीद जताती हैं कि अगर रोबोट इंसानों की तरह चल सकें तो हादसों के दौरान वे लोगों की मदद कर सकते हैं, "यहां तक कि उन्हें मार्स पर भी भेजा जा सकता है."

Humanoider Roboter namens Geminoid
जापान में पहले से ही ऐसे ह्यूमनोइड रोबोट्स मौजूद हैं जो लोगों का ख्याल रख सकें.तस्वीर: DW

सुपरमार्केट में मिलेंगे रोबोट

हालांकि ऐसा होने में अभी लंबा समय लगेगा. बर्लिन के इंस्टीट्यूट फॉर फ्यूचर स्टडीज में शोध कर रहे रॉबर्ट गैसनर का कहना है कि इस तरह के रोबोट का औद्योगिक उत्पादन होने में अभी 20 से 30 साल लग सकते हैं. पर साथ ही वह यह भी कहते हैं कि जब ऐसा होने लगेगा तब लोग इन्हें सुपरमार्केट में खरीदा करेंगे, "ह्यूमनोइड रोबोट को बनाने का मकसद ही यही है कि वे इंसानों के साथ संपर्क में रह सकें, वे घर के कामों में मदद करें, म्यूजियम में या अन्य संस्थाओं में काम में आ सकें."

पर हर काम करने के लिए रोबोट को इंसान जैसा दिखने की जरूरत नहीं. गैसनर कहते हैं, "एक तरह से देखा जाए तो रोबोट तो हमारे जीवन के हर पहलू में हमारे साथ हैं." खुद चलने वाले वैक्यूम क्लीनर हों या खिड़कियां साफ करने वाली मशीनें, इन सबको वह रोबोट की श्रेणी में ही रखते हैं.

रोबोट की दुनिया में सबसे आगे रहने वाले देश जापान में पहले से ही इस तरह के ह्यूमनोइड रोबोट्स का इस्तेमाल हो रहा है जो बूढ़े और बीमार लोगों का ख्याल रख सकें. अस्पतालों में ये रोबोट मरीजों को कसरत करवाते हैं और बिस्तर से उठा कर व्हीलचेयर पर बैठने में भी मदद करते हैं.

आईबी/एमजे (डीपीए)

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