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'इटली के राजदूत को विशेषाधिकार नहीं'

१८ मार्च २०१३

भारत के सर्वोच्च न्यायालय ने इटली के राजदूत पर गुस्सा जताते हुए उन्हें कूटनीतिक विशेषाधिकारों के वंचित कर दिया है. उधर यूरोपीय संघ ने भारत से वियना संधि का पालन करने की मांग की है.

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तस्वीर: CC-BY-SA-3.0 LegalEagle

दो भारतीय मछुआरों की हत्या का मुकदमा झेल रहे इटली के दौ नौसैनिकों के मामले में भरोसे को तोड़ने के लिए सुप्रीम कोर्ट का गुस्सा इटली के राजदूत पर उतरा जिन्होंने छुट्टी के बाद उनके वापस लौटने का वचन दिया था. अदालत ने राजदूत से कहा कि उन्हें कूटनीतिक विशेषाधिकार प्राप्त नहीं है और अगले आदेश तक उनके देश छोड़कर जाने पर रोक लगा दी.मुख्य न्यायाधीश अल्तमस कबीर के नेतृत्व वाली बेंच ने कहा, "जो व्यक्ति इस अदालत में अपीलकर्ता के रूप में आया है, हम नहीं समझते कि उसे कोई विशेषाधिकार है." 45 मिनट की सुनवाई के दौरान राजदूत डैनिएल मंचिनी और इटली सरकार की ओर से पेश हो रहे वकील मुकुल रोहतगी ने राजदूत के विशेषाधिकार की दलील दी.

सुनवाई के शुरू में भारत की संवैधानिक अदालत की बेंच ने कहा कि फिलहाल वे सिर्फ मंचिनी के बारे में चिंतित हैं जिन्होंने अभियुक्त नौसैनिकों को भारत वापस लाने का हलफनामा दिया था. बेंच ने रोहतगी से कहा कि वे सिर्फ राजदूत के नाम पर जिरह करें. बेंच के दो न्यायाधीशों एआर दवे और रंजना प्रकाश देसा ने कहा, "हमें राजदूत पर और भरोसा नहीं है. हमें उम्मीद नहीं थी कि वे ऐसा बर्ताव करेंगे." राजदूत के देश छोड़कर जाने पर लगी रोक को सुप्रीम कोर्ट ने अगले आदेश तक बढ़ा दिया. मामले की अगली सुनवाई 2 अप्रैल को होगी.

अंतरराष्ट्रीय जिम्मेदारी के विपरीत

सुनवाई के शुरू में एटोर्नी जनरल जीई वाहनवती ने इटली सरकार द्वारा भारत सरकार को भेजा गया नोट वर्बाल की एक कॉपी दी. उन्होंने कहा कि इसमें इसका जिक्र किया गया है कि इटली के राजदूत के भारत छोड़ने सहित उनके आवागमन पर किसी भी प्रकार की रोक मेजबान देश की उनके व्यक्ति, आजादी, सम्मान और कर्तव्य का आदर करने की अंतरराष्ट्रीय जिम्मेदारी के विपरीत होगी. वाहनवती ने कहा कि भारत सरकार ने इटली के दूतावास के नोट वर्बाल को अस्वीकार कर दिया है. एटोर्नी जनरल ने कहा कि ऐसा लगता है कि इटली सरकार को पता नहीं है कि किस संवैधानिक संरचना के तहत भारत की सरकार चलती है.

Massimiliano Latorre und Salvatore Girone
तस्वीर: AFP/Getty Images

सोमवार को आदेश सुनाने से पहले सुप्रीम कोर्ट की बेंच ने कहा कि नौसैनिकों को वोट देने के लिए इटली जाने की चार हफ्ते की छुट्टी अभी खत्म नहीं हुई है, और उनके पास लौटने के लिए अभी भी समय है. बेंच ने कहा, "हमने (राजदूत की) अंडरटेकिंग का आदर किया और उन्हें (नौसैनिकों को) चार हफ्ते के लिए जाने की इजाजत दी, जो 22 मार्च को खत्म होगी. उनके पास अब भी वापस आने का समय है. सही कहा जाए तो उन्होंने अभी तक आदेश का हनन नहीं किया है."

वियना संधि की दुहाई

सुप्रीम कोर्ट के फैसले पर यूरोपीय संघ ने संयमित प्रतिक्रिया व्यक्त की है, लेकिन भारत से राजनयिकों की सुरक्षा के बारे में वियना की संधि का पालन करने की मांग की है. ईयू की विदेशनीति प्रतिनिधि कैथरीन एशटन के प्रवक्ता माइकल मन ने ब्रसेल्स में कहा, "हम इटली और भारत दोनों को अंतरराष्ट्रीय समुद्री कानून के आधार पर पारस्परिक संतोषजनक समाधान ढूंढ़ने और सहमति की संभावनाओं का इस्तेमाल करने के लिए बढ़ावा देते हैं." प्रवक्ता ने साथ ही कहा कि आयोग ने संवैधानिक न्यायालय के आदेश को संज्ञान में लिया है. उन्होंने जोड़ा, "सभी पक्षों द्वारा वियना संधि का पालन किया जाना चाहिए."

डैनिएल मंचिनी को दो नौसैनिकों को छुट्टी दिलवाने में उनकी भूमिका के लिए सजा दी जा रही है. उन्हें इटली के चुनावों में हिस्सा लेने के लिए सु्परीम कोर्ट ने राजदूत की गारंटी पर छोड़ा था. लेकिन इटली सरकार ने पिछले हफ्ते घोषणा की कि नौसैनिकों को वापस नहीं भेजा जाएगा. नौसैनिकों पर पिछले साल फरवरी में दो भारतीय मछुआरों की हत्या के आरोप में भारत में मुकदमा चल रहा है. उनका दावा है कि उन्होंने समुद्री डाकू समझकर गलती से मछुआरों पर गोली चलाई. इटली इस मामले में मुकदमा चलाने के भारत के अधिकार को नहीं मानता.

एमजे/आईबी (पीटीआई, एएफपी)

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