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इतिहास में आज: 11 नवंबर

समरा फातिमा१० नवम्बर २०१४

फलीस्तीनी मुक्ति आंदोलन के नेता यासिर अराफात की आज ही के दिन 2004 में रहस्यमयी परिस्थितियों में मौत हो गई. उस समय वह 75 साल के थे.

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तस्वीर: Reuters

इस्राएल के खिलाफ फलीस्तीनी विरोध में अराफात की 1950 से ही अहम भूमिका रही. बाद में वह फलीस्तीनी मुक्ति संगठन के नेता बने. 1994 में अराफात को नोबेल शांति पुरस्कार से सम्मानित किया गया. 11 नवंबर 2004 को अराफात की मौत रहस्यमयी परिस्थितियों में हुई.

खाना खाते समय अचानक उनकी तबियत खराब हुई और उन्हें फ्रांसीसी सेना के अस्पताल ले जाया गया. कुछ दिन में तबियत में सुधार दिखने लगा, लेकिन फिर अचानक हालत बिगड़ी और उनकी मौत हो गई. उस समय डॉक्टरों का कहना था कि उन्हें दिल का दौरा पड़ा, जिसके बाद खून के जमने से उनकी मौत हुई. मौत की गुत्थी सुलझाने में वैज्ञानिकों की कई टीमें लगी हैं. दस साल पहले हुई अराफात की मौत का कारण अब भी साफ नहीं है.

2012 में सामने आई एक रिपोर्ट के अनुसार अराफात के कपड़ों पर रेडियोधर्मी तत्व पोलोनियम के प्रमाण मिले. इसके बाद उनकी पत्नी ने आरोप लगाया कि अराफात को जहर देकर मारा गया और फ्रांस में इस मामले की जांच की मांग की. जांच के लिए यासिर अराफात की मौत के आठ साल बाद उनकी कब्र खोद कर अवशेष निकाले गए. दुनिया भर के कई देशों के वैज्ञानिक पता लगाने की कोशिश कर रहे हैं कि फ्रांसीसी सेना अस्पताल में हुई अराफात की मौत के लिए क्या पोलोनियम का इस्तेमाल किया गया.

फलीस्तीन के लोग इसके पीछे इस्राएल का हाथ मानते आए हैं लेकिन इस्राएल शुरुआत से ही इसका खंडन करता आया है. तत्कालीन इस्राएली राष्ट्रपति शिमोन पेरेस ने अराफात को मारने के लिए पोलोनियम के इस्तेमाल की बात को अविश्वसनीय बताया था. मध्य पूर्व में शांति के प्रयासों की वजह से पेरेस और अराफात को संयुक्त रूप से 1994 का नोबेल शांति पुरस्कार दिया गया था. उनके साथ इस्राएल के पूर्व प्रधानमंत्री इत्साक रबीन को भी यह पुरस्कार मिला था. इनके बीच ओस्लो शांति संधि हुई थी.