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इतिहास में आज: 18 अगस्त

१८ अगस्त २०१४

भारतीय स्वतंत्रता संग्राम के महानायक नेताजी सुभाषचंद्र बोस ने भारत की आजादी के लिए अपना सर्वस्व न्योछावर कर दिया. नेताजी का जीवन जैसे पहेली रहा वैसे ही उनकी मृत्यु भी एक पहेली है. आज ही के दिन नेताजी की मृत्यु हुई थी.

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तस्वीर: gemeinfrei

नेताजी सुभाष चंद्र बोस राष्ट्रीय स्तर के राजनेता होने के अलावा एक वीर सैनिक और कूटनीतिज्ञ के रूप में जाने जाते हैं. उनका जन्म 23 जनवरी 1897 को उड़ीसा के कटक प्रांत में हुआ. बोस ने द्वितीय विश्व युद्ध के दौरान आजादी हासिल करने के लिए ब्रिटेन का मुकाबला आजाद हिंद फौज बना कर किया.

प्रतिष्ठित बंगाली वकील जानकीनाथ बोस के पुत्र सुभाषचंद्र बोस की शिक्षा कलकत्ता के प्रेसीडेंसी कॉलेज और स्कॉटिश चर्च कॉलेज से हुई. इसके बाद वह इंग्लैंड की केम्ब्रिज यूनिवर्सिटी चले गए. 1920 में उन्होंने इंडियन सिविल सर्विसेस की परीक्षा पास की, लेकिन अप्रैल 1921 में भारत में चल रहे राजनीतिक आंदोलन के बारे में सुन कर भारत लौट आए.

भारत लौट कर सुभाषचंद्र बोस देश के स्वतंत्रता संग्राम में महात्मा गांधी के साथ शामिल हो गए. लेकिन वह यह भी मानते थे कि अहिंसा के रास्ते से आजादी मिलने में बहुत समय लगेगा. गांधीजी द्वारा असहयोग आंदोलन बीच में ही छोड़ देने से वह निराश हुए. उन्होंने 1923 में चितरंजन दास की स्वराज पार्टी का समर्थन किया और 25 अक्टूबर 1924 को उन्हें गिरफ्तार कर बर्मा की जेल में बंद कर दिया गया. वापस आकर वह कई बार फिर जेल गए. 1938 में वह भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस के अध्यक्ष निर्वाचित हुए. लेकिन उनकी नीतियां गांधीजी की उदारवादी नीतियों से मेल नहीं खाती थीं. 1939 में उन्होंने अध्यक्ष पद से इस्तीफा दे दिया. ब्रिटेन से आजादी पाने के लिए उन्होंने जर्मनी, इटली और जापान जैसे देशों से मदद लेने की कोशिश की. उनकी यह कोशिश विवादास्पद है. 1943 में उन्होंने ब्रिटेन से लड़ने के लिए आजाद हिंद फौज बनाई.

सुभाषचंद्र बोस की मृत्यु हवाई दुर्घटना में मानी जाती है. हालांकि इस बारे में काफी विवाद रहे. माना जाता है कि दूसरे विश्व युद्ध में जापान के आत्मसमर्पण के कुछ दिन बाद दक्षिण पूर्वी एशिया से भागते हुए एक हवाई दुर्घटना में 18 अगस्त 1945 को बोस की मृत्यु हो गई. एक मान्यता यह भी है कि बोस की मौत 1945 में नहीं हुई, वह उसके बाद रूस में नजरबंद थे. उनके गुमशुदा होने और दुर्घटना में मारे जाने के बारे में कई विवाद छिड़े. आज भी नेताजी की मृत्यु के बारे में पुख्ता प्रमाण नहीं मौजूद हैं.