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इतिहास में आज: 26 अगस्त

२५ अगस्त २०१४

1988 में आज ही के दिन अहिंसावादी नेता आंग सान सू ची मोर्चा लेकर रंगून पहुंचीं. पांच लाख लोगों के सामने वहां से दिए अपने पहले सार्वजनिक भाषण में सू ची ने जनता को लोकतांत्रिक आंदोलन में कूद पड़ने का सशक्त संदेश दिया.

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तस्वीर: AFP/Getty Images

तब बर्मा कहे जाने वाले म्यांमार में आंदोलन की शुरुआत इसी विद्रोह के साथ मानी जाती है. इस आंदोलन के पीछे कोई राजनीतिक कार्यक्रम नहीं, बल्कि सैन्य शासन के खिलाफ आक्रोश था. 26 अगस्त के दिन लोगों का जत्था रंगून की तरफ बढ़ रहा था. सेना की तमाम चेतावनियों के बावजूद लोग बर्मा की राजधानी में मिलिट्री जुंता के खिलाफ अपना विरोध जताने के लिए बड़ी बड़ी रैलियां निकालना चाहते थे. शासन की ओर से उन्हें रास्ते में ही रोक लिया गया. सेना की एक टुकड़ी ने भीड़ पर बंदूकें तान रखी थीं. लेकिन सू ची ने वहां दिए अपने पहले सार्वजनिक भाषण में बर्मा के लिए राष्ट्रीय आजादी की दूसरी लड़ाई का आह्वान कर डाला. इस घटना के साथ ही देश और विदेश में वह सैनिक शासन के विरोध का प्रतीक मानी जाने लगीं. देश में लोकतंत्र बहाल करने की उनकी कोशिशों को रोकने के लिए जुंता ने उन्हें 15 सालों तक नजरबंद रखा.

Myanmar Proteste Armee Intervention Archivbild August 1988
तस्वीर: ullstein bild-Heritage Images/Alain Evrard

सू ची के पिता को लोग आधुनिक बर्मा का राष्ट्रपिता मानते हैं. देश को ब्रिटिश शासन से आजाद कराने वाले राष्ट्रीय हीरो आंग सान की बेटी ने भी अपने पिता के आदर्शों को आगे बढ़ाते हुए देश सेवा का धर्म निभाया. 15 सालों के बाद 2010 में बर्मा की असैनिक सरकार ने सू ची को नजरबंदी से रिहा करने का निर्णय लिया. लोकतंत्र के लिए सू ची की लड़ाई शुरु से ही सत्य और अहिंसा पर आधारित रही. दुनिया को सत्य और अहिंसा का पाठ पढ़ाने वाले महात्मा गांधी की ही तरह वह भी उच्च शिक्षा के लिए इंग्लैंड गईं. नोबेल शांति पुरस्कार विजेता आंग सान सू ची को मानवाधिकार के क्षेत्र में उनके योगदान को देखते हुए 2014 के विली ब्रांट पुरस्कार से भी सम्मानित किया गया है.