इब्ने मरियम या युज़ असफ़?
२८ अप्रैल २०१०श्रीनगर का रोज़ाबाल मकबरा. सैकड़ों साल से श्रद्धालू वहां आते रहे हैं. वैसे इलाके के बाहर उसकी शोहरत कम ही रही है. लेकिन अब एक विवाद के चलते चारों ओर उसकी चर्चा है. यह विवाद इस बात पर है कि मकबरा ईसा मसीह का है, या सैकड़ों साल पहले जीने वाले स्थानीय मुस्लिम संत युज़ असफ़ और सैयद नसीरुद्दीन का. अब इस मकबरे को दर्शकों के लिए बंद कर दिया गया है.
कश्मीर आए ईसा मसीह
ईसा मसीह वाली कहानी पहली बार 1973 में बाज़ार में आई. एक स्थानीय पत्रकार, अज़ीज़ कश्मीरी ने अपनी क़िताब क्राइस्ट इन कश्मीर में दावा किया कि सलीब पर चढ़ाए जाने के बाद ईसा फिर से ज़िंदा हो उठे, वे अपना मुल्क छोड़कर कश्मीर आ गए, वहां रहने लगे, उन्होंने अपना मिशन जारी रखा, और फिर वहीं उनका देहांत हुआ. इसके बाद इसी विषय पर और कई क़िताबें लिखी गई.
लेकिन स्थानीय मुस्लिम समुदाय इसे मानने को तैयार नहीं है. उनके लिए यह सदियों से युज़ असफ़ का मकबरा है. युज़ असफ़ का मतलब योज़ेफ़ का बेटा भी हो सकता है, यानी ईसा मसीह. बौद्ध परंपरा में इसे बोधिसत्व भी कहा गया है. ईसा मसीह को इस्लाम की परंपरा में भी पैगंबरों में से एक माना गया है, लेकिन उन्हें सलीब पर चढ़ाए जाने की किंवदंती को वहां नहीं माना जाता रहा है.
विवाद का मुद्दा
विवाद तब शुरु हुआ, जब पश्चिम के कुछ शोधकर्ताओं ने इस मकबरे के नीचे के अवशेषों की कार्बन डेटिंग और डीएनए टेस्ट करना चाहा. मकबरे के केयरटेकर मोहम्मद अमीन रिंगशॉल ने उनकी इस अर्ज़ी को साफ़-साफ़ ठुकरा दिया. उनका कहना था कि इससे मुसलमानों की भावनाओं को ठेस पहुंचेगी. पर्यटकों की भीड़ से बचने के लिए अब इस मकबरे को दर्शकों के लिए बंद कर दिया गया है.
इस विवाद से इतिहास और किंवदंतियों के बीच फ़र्क का मसला फिर से सामने आया है. ईसा की ऐतिहासिकता हो सकती है, लेकिन क्या सलीब पर चढ़ाए जाने के बाद उनके फिर से जी उठने की कथा का भी ऐतिहासिक आधार है? मुस्लिम धर्मशास्त्री ईरशाद अहमद का कहना है कि अगर ईसा कश्मीर आए होते, तो हम सभी ईसाई हो गए होते. लेकिन ऐसा नहीं हुआ है. फिर यह पूछना लाज़मी हो जाता है - क्या ईसा मसीह लोगों को ईसाई बनाते थे?
बहस करने वाले बहस करते रहेंगे. फ़िलहाल मकबरे का दरवाज़ा बंद है.
रिपोर्टः एजेंसियां/उ. भ.
संपादनः आभा मोंढे