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अमेरिकी दूतावास की सुरक्षा चिंता

१ जुलाई २०१४

राष्ट्रपति बराक ओबामा ने इराकी राजधानी बगदाद में 200 अमेरिकी सैनिक भेजे हैं. ये सैनिक बगदाद में अमेरिकी दूतावास की सुरक्षा के लिए भेजे गए हैं. इराकी सेना की मदद के लिए वहां पहले से ही 300 सैनिक मौजूद हैं.

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तस्वीर: Reuters

अमेरिकी संसद कांग्रेस को लिखे एक पत्र में ओबामा ने कहा, "बगदाद में सुरक्षा स्थिति के कारण अमेरिकी दूतावास, उसके सहयोगी कार्यालय और बगदाद अंतरराष्ट्रीय एयरपोर्ट की सुरक्षा के लिए मैंने 200 अतिरिक्त सैनिक इराक भेजे हैं. यह सेना वहां रहने वाले अमेरिकी नागरिकों और संपत्ति की सुरक्षा के लिए भेजी गई है. जरूरत पड़ने पर युद्ध के लिए भी यह तैयार है."

अमेरिकी रक्षा मंत्रालय पेंटागन के मुताबिक इराक में कुछ सैनिक रविवार को पहुंचे. इसी के साथ दूतावास की रक्षा के लिए तैनात कुल सैनिकों की संख्या 800 हो गई. यह ऐसी स्थिति में हो रहा है जब सुन्नी चरमपंथी गुट ने इराक के कई हिस्सों को अपने कब्जे में ले लिया और हिंसा के कारण जून के महीने में मरने वालों का आंकड़ा 2000 तक पहुंच गया है.

उधर इराकी सेना ने सोमवार को सद्दाम हुसैन के गृहनगर तिकरित में सैन्य कार्रवाई की. यहां भी सुन्नी गुट ने कब्जा जमा रखा है. एक सैन्य अधिकारी ने बताया कि सेना ने शहर की सीमा को नियंत्रित कर लिया है. तिकरित बगदाद से करीब 160 किलोमीटर उत्तर में है और इस शहर को चरमपंथियों ने 11 जून से कब्जे में ले रखा है.

इस हिंसा के कारण प्रधानमंत्री नूरी अल मालिकी पर भी भारी दबाव बन रहा है. अप्रैल में ही वह प्रधानमंत्री चुने गए हैं और मंगलवार को संसद की शुरुआत होनी है.

विश्व के नेताओं ने मांग की है कि इराकी नेता तेजी से सहमति बना कर सरकार बनाएं. लेकिन आशंका है कि प्रधानमंत्री को सरकार बनाने में एक महीना लग सकता है.

इराक और सीरिया में आइसिस खिलाफत की घोषणा कर चुका है और गुट के नेता अबु बकर अल बगदादी को खलीफा बनाने का एलान भी.

हालांकि इसका भले ही तुरंत असर न हो लेकिन यह एक गुट का आत्मविश्वास और अल कायदा को सीधी चुनौती का संकेत जरूर देता है. आइसिस अल कायदा से टूटा हुआ गुट है. लंदन के थिंक टैंक रॉयल यूनाइटेड सर्विसेस इंस्टीट्यूट के शोधार्थी शशांक जोशी दलील देते हैं, "मुझे नहीं लगता कि इससे जमीनी हकीकत में बदलाव होगा. जो बदला है वो उनका लक्ष्य बदला है. यह प्रेरणा और स्फूर्ति देने वाला अभियान है. इसके कारण लक्ष्य पाने के लिए कई मुस्लिम चरमपंथ की ओर आकर्षित होंगे."

नौ जून से इराक में आइसिस तेजी से आगे बढ़ा और उत्तर सहित पश्चिम के कई शहरों को कब्जे में किया. इसमें देश का दूसरा सबसे बड़ा शहर मोसूल भी शामिल है. वॉशिंगटन ने हालांकि कहा है कि खिलाफत की घोषणा का कोई मतलब नहीं है. विदेश मंत्रालय की प्रवक्ता जेन साकी ने पत्रकारों से कहा कि इसने सिर्फ गुट का असली चेहरा उजागर किया है और दिखाया है कि वह लोगों को डर के जरिए काबू में करना चाहते हैं.

एएम/एजेए (एएफपी)