1. कंटेंट पर जाएं
  2. मेन्यू पर जाएं
  3. डीडब्ल्यू की अन्य साइट देखें

इस्तीफा देने से क्या होगा?

Bhatia Isha Kommentarbild App
ईशा भाटिया सानन
४ नवम्बर २०१५

यौन शोषण मामले में आरके पचौरी पर कोई कार्रवाई ना होने से परेशान महिला ने टेरी से इस्तीफा दिया. इस वक्त ऐसी ही सुर्खियां चल रही हैं पर क्या कोई भी इससे हैरान है, पूछ रही हैं ईशा भाटिया.

https://p.dw.com/p/1GzPr
Rajendra Pachauri IPCC
राजेंद्र कुमार पचौरीतस्वीर: picture-alliance/AP Photo/G. Osan

इस साल की शुरुआत में जब पचौरी का मामला सामने आया, तब क्या हममें से किसी ने भी उम्मीद की थी कि पचौरी को फौरन सजा हो जाएगी या टेरी से निकाल बाहर किया जाएगा? हैरानी तो तब होती जब इस्तीफा पीड़िता का नहीं, पचौरी का होता. हैरानी इसलिए भी नहीं हो रही क्योंकि यह अपनी तरह का पहला मामला भी नहीं है. मशहूर पत्रकार तरुण तेजपाल हो या फिर दिल्ली के सेंट स्टीफेंस कॉलेज के प्रिंसिपल वाल्सन थंपू. उन पर भी ऐसे मामले दर्ज हैं. तो फिर इसमें नया क्या है? वही कहानी है, बस नाम बदल गए हैं.

Manthan in Lindau
ईशा भाटियातस्वीर: DW

लेकिन वही कहानी बार बार पढ़ने में लोगों को मजा जरूर आता है. मीडिया मिर्च मसाला लगा कर कहानी सुनाती है और लोग पूरी दिलचस्पी से उसे देखते और सुनते हैं. और दिलचस्पी हो भी क्यों ना. ज्यादातर रिपोर्टों में कहानी कुछ ऐसे पेश की जाती है जैसे फुटपाथ पर मिलने वाले किसी उपन्यास की हो या फिर 70-80 के दशक की बॉलीवुड फिल्म हो. ये वो जमाना था जब फिल्मों में एक दो रेप सीन जरूर रखे जाते थे. जब तक चोली ना फटे, औरत अपने कपड़े संभालती हुई ना दिखे, तब तक सीन पूरा ही नहीं होता था. सिमी गरेवाल और शबाना आजमी समेत कई बॉलीवुड हस्तियां खुद इस बात को स्वीकार चुकी हैं कि काफी लंबे समय तक यह "हीरो" को लॉन्च करने का "घटिया फॉर्मूला" रहा है.

अब पचौरी हों या तेजपाल, दरअसल यह उन बॉलीवुड फिल्मों के वही विलन हैं, जिन्हें देखने में दर्शकों को बहुत मजा आया करता था. रेप सीन शक्ति कपूर ने किया या गुलशन ग्रोवर ने, यह तो लोगों को याद रहता था लेकिन लड़की कौन थी, इस पर कहां किसी का ध्यान होता था. ध्यान तो सिर्फ उसके जिस्म पर होता था.

दुख की बात यह है कि टेरी की यह कर्मचारी आज वैसी ही किसी लड़की का किरदार निभाती दिख रही है. लोग उसके बारे में "बात" कर रहे हैं. इसलिए नहीं क्योंकि वे उसे न्याय दिलाने में विश्वास रखते हैं. सिर्फ बातें करने से न्याय यूं भी नहीं मिलता. बल्कि उनकी रुचि तो यह जानने में है कि पचौरी ने क्या मेसेज भेजा होगा, लड़की उनसे मिलने आई होगी या नहीं, क्या मामला होटल के कमरे तक पहुंचा होगा, अगर हां, तो वहां क्या क्या हुआ होगा. और जब यह सीन पूरा हो जाएगा, तो सब चल पड़ेंगे कोई और फिल्म देखने.

जब महिलाओं के साथ दुर्व्यवहार होता है, तो बहुत आसानी से कह दिया जाता है कि "इन रिक्शा वालों और बस वालों" की तो सोच ही ऐसी है. लेकिन टेरी की कर्मचारी जिनसे निराश है, वे देश के सबसे ज्यादा पढ़े लिखे लोग हैं. और जब शोषण की बात आती है तो साक्षर-निरक्षर का भेद नहीं रह जाता. बॉलीवुड के वो सीन सभी ने देखे हैं, किसी ने अपनी झोपड़ी में, तो किसी ने ए-सी वाले कमरे में.

इसलिए यह बात हैरान नहीं करती कि इस महिला के हक में कोई कदम नहीं उठाया गया. जैसा कि उसने अपने इस्तीफे में लिखा है, उसे किसी बात की सफाई नहीं दी गयी, बल्कि उसके लिए काम के दौरान मुश्किलें और बढ़ाई गयीं. ऐसे में उसके पास इस्तीफा देने के अलावा और कोई विकल्प ही नहीं रह गया था. लेकिन सवाल यह उठता है कि क्या इस्तीफा देने से भी कुछ बदल जाएगा?

ब्लॉग: ईशा भाटिया

आप अपनी राय हमसे साझा कर सकते हैं, नीचे टिप्पणी कर के.