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ईयू-भारत शिखर भेंट में सहमति की चुनौती

१० फ़रवरी २०१२

संबंधों को बेहतर बनाने के लिए यूरोपीय संघ और भारत के नेता बारह साल से एक दूसरे से ईयू-भारत शिखर सम्मेलन के दौरान मिल रहे हैं. इस बार शुक्रवार को नई दिल्ली में हो रही बैठक यूरोप में कर्ज संकट के साए में हो रही है.

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तस्वीर: DW

एजेंडे पर काफी जटिल विषय हैं- पाकिस्तान और अफग़ानिस्तान में बिगड़ते हालात, ईरान पर ईयू के नए प्रतिबंध और ऊर्जा के क्षेत्र में आपसी सहयोग को बढ़ाने की संभावना. लेकिन सबसे विवादास्पद मुद्दा आपसी व्यापार को बढ़ावा देने के लिए मुक्त व्यापार संधि ही है. दोनों पक्षों के लिए इसके फायदे बिलकुल साफ हैं. ईयू के उद्यमों को इस संधि के जरिए भारत के विशाल बाजार तक पहुंचने का मौका मिलेगा जबकि भारत भी अपनी सेवाएं और उत्पाद यूरोप में आसानी से बेच पाएगा. लेकिन फिर भी समझौते पर अंतिम सहमति नहीं हो पा रही है. भारत के किसान ऐसी संधि से डरते हैं क्योंकि यह उनके अस्तित्व के लिए खतरा हो सकता है. साथ ही भारत में काफी लोकप्रिय और जरूरी सस्ते दवाईयों के दामों पर भी असर पर सकता है जो करोड़ों भारतीयों की जीवन रक्षा के लिए आवश्यक है.

Indien Dürre Trockenheit Junge Kuh Bauer
तस्वीर: AP

ईयू और भारत की साझेदारी

ईयू इस बीच भारत का प्रमुख व्यापारिक साझेदार है. आपसी व्यापार 2010 में 86 अरब यूरो (करीब 5500 अरब रुपये) था, यानी भारत के कुल व्यापार का 15 प्रतिशत. इसके विपरीत ईयू के व्यापार में भारत का हिस्सा सिर्फ 2,4 प्रतिशत ही है. इसीलिए 2010 में ब्रसेल्स में हुए पिछले शिखर सम्मेलन में यूरोपीय आयोग के प्रमुख जोसे मानुएल बारोसो ने कहा था, "सिर्फ तब जब हम एक मुक्त व्यापार संधि पर सहमत होंगे हम अपनी अर्थव्यव्स्थाओं में वह संभावनाएं खोल सकते हैं जो अब तक बंद हैं. इसलिए मैं आप सब से यह अपील करना चाहता हूं कि हम 2011 में ही संधि पर हस्ताक्षर करें." लेकिन मतभेद बने हुए हैं और सारे प्रयासों के बावजूद विशेषज्ञों को लगता है कि इस बार भी संधि पर सहमति नहीं बन पाएगी.

अलग मोड़

ईयू और भारत ने 1963 में यानी लगभग 50 साल पहले अपने कूटनीतिक रिश्तों की शुरुआत की थी. लंबे समय तक ईयू की नजरों में भारत एक विकासशील देश था जिसका भविष्य बहुत रौशन नहीं माना जाता था. लेकिन पिछले दो दशकों में दुनिया भर में भारत की यह छवि बदली है. अब परमाणु शक्ति बन गए भारत को एक गंभीर राजनीतिक साझेदार के रूप में देखा जाता है जो एक बहुत ही अस्थिर इलाके में स्थिरता और सुरक्षा सुनिश्चित करता है. इसके अलावा वह आर्थिक रूप से भी दिलचस्प है क्योंकि उस पर वर्तमान आर्थिक और वित्तीय संकट का बहुत ही कम असर दिख रहा है.

Kühe und Milchproduktion in Indien
तस्वीर: AP

नई दिल्ली की जवाहरलाल नेहरू विश्वविद्यालय के प्रोफेसर प्रवीण झा का मानना है कि अब भारत ईयू से अपनी बात मनवाने की हालत में है. झा कहते हैं, "अगर हम सिर्फ आज को देखते हैं तब ईयू की स्थिति काफी परेशानी वाली है और भारत जो हमेशा ईयू से हर क्षेत्र में पीछे था काफी मजबूत है." अर्थशास्त्री प्रवीण झा के अनुसार यह स्थिति अभी बदलने वाली नहीं है क्योंकि भारत की अर्थव्यवस्था में तेज विकास के कम होने की कोई संभावना नहीं दिख रही है. इसके विपरीत 27 देशों से बना यूरोपीय संघ आंतरिक समस्याओं से जूझ रहा है.

चीन के साथ प्रतिस्पर्धा

भारत के लक्ष्य काफी महत्वाकांक्षी हैं. ईयू के साथ यदि साझेदारी को देखा जाए तो पड़ोसी चीन भारत से काफी आगे निकल चुका है. अमेरिका के बाद चीन ईयू का सबसे बड़ा व्यापारिक सहयोगी है. प्रोफेसर झा का मानना है कि लंबे समय तक भारत चीन का मुकाबला नहीं कर पाएगा. वे कहते हैं, "यदि हम चीन के विकास की धारा और रफ्तार को देखें तब वह दोनों दृष्टिकोण से भारत से आगे हैं." भारत को दुनिया का सबसे बडा लोकतंत्र होने के कारण पश्चिमी देशों में व्यापक सहानुभूति मिली थी. साथ ही ईयू और भारत के प्रमुख मूल्यों में भी समानता है. लेकिन पिछले दो सालों में भारत में हुए बड़े घोटालों ने उसकी छवि को बहुत ही नुकसान पहुंचाया है. प्रोफेसर प्रवीण झा का मानना है कि भारत इसके लिए खुद ही जिम्मेदार है. "निवेशकों को भारत में एक अच्छा औद्योगिक माहौल होने का भरोसा था, इसलिए विदेशों से पूंजी आती रहती थी. लेकिन 2जी स्कैम या कॉमनवेल्थ गेम्स में हुए घोटालों की वजह से भारत को काफी बड़ा धक्का लगा है और इसका फायदा निश्चित तौर पर चीन को ही मिल रहा है."

Mehr Chinesen in Städten als auf dem Land
तस्वीर: picture-alliance/maxppp

ईयू के अध्यक्ष हर्मन फान रोम्पोई, आयोग के प्रमुख बारोसो और व्यापार आयुक्त कारेल दे गुख्त नई दिल्ली में ईयू का प्रतिनिधित्व करेंगे. चार दिन बाद ही 14 फरवरी को फिर बीजिंग में ईयू-चीन शिखर सम्मेलन होने जा रहा है. दोनों शिखर सम्मेलनों के नतीजों की तुलना जरूर की जाएगी.

रिपोर्ट: प्रिया एसेलबॉर्न

संपादन: महेश झा

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