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उग्र दक्षिणपंथी हिंसा, मतलब सरकार की शिकस्त

हंस फाइफर
१२ जुलाई २०१८

दस लोगों की हत्या के लिए अदालत ने पांच साल के मुकदमे के बाद बेयाटे चेपे को आजीवन कारावास की सजा सुनाई. मृतकों के परिजनों के लिए ये फैसला एक कमजोर दिलासा है. सरकार ने उन्हें बेसहारा छोड़ दिया.

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Foto vom Tag des Nagelbombenanschlags vom 9.6.2004 in der Kölner Keupstraße
तस्वीर: DW/A. Grunau

जर्मन चांसलर फरवरी 2012 में काले कपड़ों में मंच पर आई थीं और उन्होंने एक वादा किया था. फरवरी की सर्दियों में उस दिन शोक व्यक्त करने के लिए पूरा राष्ट्रीय नेतृत्व जमा था. और जिनका शोक मनाया जा रहा था वे न तो प्रसिद्ध लोग थे और न ही ताकतवर. एक अपवाद को छोड़कर सारे आप्रवासी थे. और सिर्फ इसलिए एनएसयू संगठन के बेयाटे चेपे और अन्य उग्र दक्षिणपंथी आतंकवादियों ने उन्हें मार डाला था. हत्यारे छह साल तक पूरी जर्मनी में उत्पाद मचाते रहे, हत्या करते रहे. उनका मकसद आप्रवासियों से नस्लवादी घृणा है. और उन्हें किसी ने भी नहीं रोका. न पुलिस ने, न खुफिया एजेंसियों ने, न सरकार ने.

पीड़ितों पर संदेह

इससे भी बुरी बात ये रही कि जांच अधिकारियों ने पीड़ितों और उनके परिवारों पर ही शक किया, तुर्क ड्रग डीलर या माफिया का सदस्य होने का. नस्लवादी मान्यताएं पुलिस की जांच का आधार बन गईं. नाजी अपराधों की जांच के लिए विख्यात जर्मनी के लिए ये सरकार की पूरी विफलता रही.

Deutsche Welle Pfeifer Hans Portrait
हंस फाइफरतस्वीर: DW/B. Geilert

फरवरी 2012 में चांसलर ने हत्या के शिकार हुए दस परिवारों से क्षमा मांगी थी और वादा किया था, "हम सब कुछ करेंगे, ताकि हत्यारों, उनकी मदद करने वालों और साजिश रचने वालों का पता लग सके और अपराधियों को उचित सजा जी जा सके." ये बड़ा वादा था और परिजनों के लिए न्याय मिलने की बड़ी उम्मीद. अब पिछले सालों के सबसे नामी मुकदमे के पूरा हो जाने के बाद एक बात साफ है कि वादा टूट गया है.

राज्यसत्ता की नाकामी

चूंकि मामले की पूरी जांच के सरकार और अदालत के प्रयास ज्यादा दिनों तक नहीं चले. जल्द ही सारा मामला मुख्य अभियुक्त बेयाटे चेपे पर अटक गया. हत्यारों की मदद करने वाले नेटवर्क और जांच में विफलता में खुफिया एजेंसियों की भागीदारी की जांच को भुला दिया गया. चांसलर के दफ्तर में भी. आज भी खुफिया एजेंसियां और मंत्रालय जांच में मदद करने से कतरा रही हैं.

सबसे तकलीफदेह राज्य की नाकामी है. 2012 में चांसलर ने उन सबके खिलाफ कार्रवाई करने का आश्वासन दिया था जो दूसरों पर "उनके मूल, त्वचा के रंग और धर्म के कारण जुल्म करते हैं." आज उस वादे के छह साल बाद नस्लवाद और नस्लवादी सोच ने समाज में, यहां तक कि जर्मन संसद में भी फिर से जगह बना ली है. और एएफडी पार्टी के साथ नफरत की आक्रामक आवाज संसद पहुंच गई है. हालांकि एनएसयू मुकदमे ने एक बार दिखाया है कि नफरत का अंत हत्या में होता है.