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उत्तरी आयरलैंड का प्रोटोकॉल ब्रिटेन और यूरोप को बांट रहा है

१८ मई २०२२

ब्रिटेन के यूरोपीय संघ से अलग होते वक्त उत्तरी आयरलैंड के लिए कुछ खास नियम तय किये गये थे. अब ब्रिटेन को इससे दिक्कत हो रहा है और वह इनमें बदलाव चाहता है. आयरिश नेताओं का बड़ा वर्ग और यूरोपीय संघ इस बदलने के खिलाफ हैं.

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ब्रिटेन से उत्तरी आयरलैंड आने वाले सामान की यूरोपीय संघ में आने वाले सामान जैसी ही जांच करनी होगी
ब्रिटेन से उत्तरी आयरलैंड आने वाले सामान की यूरोपीय संघ में आने वाले सामान जैसी ही जांच करनी होगीतस्वीर: Paul Faith/AFP/Getty Images

मंगलवार को ब्रिटेन ने कहा कि वह एक नया कानून लाने जा रहा है, जो उत्तरी आयरलैंड के लिए ब्रेग्जिट के बाद हुए समझौते के कुछ हिस्सों को बेकार कर देगा. यूरोप और ब्रिटेन के बीच इससे तनाव बढ़ सकता है. आखिर उत्तरी आयरलैंड में कारोबार के नियम कैसे काम करते हैं. सवाल यह भी है कि यूरोपीय संघ और ब्रिटेन के रिश्ते इससे क्यों प्रभावित होते हैं और नये नियमों का क्या असर होगा?

उत्तरी आयरलैंड का प्रोटोकॉल क्या है?

यूरोपीय संघ से ब्रिटेन की विदाई के वक्त तय हुई शर्तों में बोरिस जॉनसन की सरकार ने आयरलैंड को लेकर कुछ सहूलियतों पर रजामंदी दी थी. यूरोपीय संघ के एकल बाजार में सामान और उत्तरी आयरलैंड को रहने देना भी इनमें से एक था, क्योंकि आयरलैंड की यूरोपीय संघ के साथ खुली सीमा है.

इसकी वजह से उत्तरी आयरलैंड और बाकी के ब्रिटेन के बीच समंदर में 'एक आयात कर' के लिहाज से एक सीमा बन गई. ब्रिटेन समर्थक समुदायों का मानना है कि इससे ब्रिटेन में जो उनकी जगह थी, वह खत्म हो रही है.

ब्रिटेन का कहना है कि उत्तरी आयरलैंड प्रोटोकॉल की वजह से जो नौकरशाही पैदा हुई है, वह असहनीय है और यह 1998 के शांति समझौते के लिए खतरा बन रही है. उत्तरी आयरलैंड में तकरीबन तीन दशक तक चली सांप्रदायिक हिंसा इसी शांति समझौते से खत्म हुई थी.

उत्तरी आयरलैंड में प्रोटोकॉल के विरोध में दीवारों पर नारे भी लिखे गये हैं
उत्तरी आयरलैंड में प्रोटोकॉल के विरोध में दीवारों पर नारे भी लिखे गये हैंतस्वीर: Clodagh Kilcoyne//REUTERS

जांच, निगरानी और कागजी काम

ब्रिटेन ने जब ग्रेस पीरियड की मांग की, तो ब्रिटेन से आने वाले सामानों पर बहुत सी जांच और निगरानी को लागू नहीं किया गया. जब बदलाव पूरी तरह से लागू हो गये, तो इनकी वजह से कागजी काम, खर्च और कर्मचारियों की जरूरत बढ़ गई.

ब्रिटेन का कहना है कि उत्तरी आयरलैंड जाने वाले सामान के लिए एक "ग्रीन लेन" बनाई जानी चाहिए, जिसे यूरोपीय संघ के लिए जरूरी जांच और निगरानी से मुक्त रखा जाये. हालांकि, अतिरिक्त लेबल लगाने से भी सामान बनाने वालों का खर्च बढ़ेगा.

ब्रिटेन में रिटेल कारोबार करने वाली कंपनी मार्क एंड स्पेंसर का कहना है कि उसे ब्रेग्जिट के बाद अपना सामान आयरलैंड रिपब्लिक के स्टोर तक पहुंचाने के लिए जरूरी कागजी कार्रवाई पूरी करने में आठ घंटे लगेंगे, जबकि ग्रेस पीरियड के कारण फिलहाल उत्तरी आयरलैंड जाने वाले सामानों के लिए यही समय लगभग एक घंटे है.

प्रोटोकॉल के पहले साल में आयरलैंड रिपब्लिक और उत्तरी आयरलैंड के बीच व्यापार बढ़ गया. उत्तरी आयरलैंड से आयात में 65 फीसदी का इजाफा हुआ, तो निर्यात में 54 फीसदी की बढ़ोतरी हो गयी. जाहिर है कि रिपब्लिक और उत्तरी आयरलैंड के बीच कारोबारी रिश्ता मजबूत है.

बोरिस जॉनसन की सरकार नया कानून बनाने की तैयारी में है
बोरिस जॉनसन की सरकार नया कानून बनाने की तैयारी में हैतस्वीर: Charles McQuillan/Getty Images

ब्रिटेन क्या चाहता है और यूरोपीय संघ क्या कहता है

ब्रिटेन ने उत्तरी आयरलैंड के साथ कारोबार में एक बदलाव की कोशिश की है. इसके लिए आंतरिक बाजार बिल लाया गया है, जिसे बहुत से ब्रिटिश अधिकारी "शॉक टैक्टिक" यानी झटका देने की चाल कहते हैं.

शुरुआती उठापटक के बाद आखिरकार कारोबारी बातचीत शुरू हुई. यूरोपीय संघ ने 2021 के अक्टूबर में नियमों को आसान बनाने की पेशकश की, लेकिन ब्रिटेन ने कहा कि यह पर्याप्त नहीं हैं और कई मामलों में तो यह मौजूदा नियमों से भी ज्यादा बुरा है.

सरकारी अधिकारियों का कहना है कि प्रोटोकॉल पर दस्तखत करते समय दोनों पक्ष इस बात पर रजामंद थे कि उत्तरी आयरलैंड के लिए समस्या होने पर इसके कुछ हिस्सों को बदला जा सकता है.

नई योजना के तहत सामान को ले जाना आसान हो जायेगा. उत्तरी आयरलैंड पर ब्रिटेन की कर-व्यवस्था लागू होगी और इस राज्य को चलाने वाले नियमों के मामले में ब्रिटेन को ज्यादा अधिकार मिल जायेंगे.

इधर यूरोपीय संघ का कहना है कि प्रोटोकॉल कानूनी रूप से बाध्यकारी समझौता है, जिसमें ब्रिटेन सरकार अपनी मर्जी से दाखिल हुई थी और इस मामले पर लगाता उठ रहे विवादों से वह परेशान है.

यूरोपीय संघ का कहना है कि कोई भी एकतरफा कार्रवाई अस्वीकार्य है. हालांकि, संघ का यह भी कहना है कि वह मौजूदा ढांचे के अंदर रहकर ही व्यवहारिक समाधान की तलाश करना चाहता है.

यह भी पढ़ेंः उत्तरी आयरलैंड प्रोटोकॉल पर ब्रिटेन-ईयू तनाव में कानूनी मोड़

यूरोप क्या कर सकता है?

यूरोपीय आयोग नियम से "छेड़छाड़ पर कार्यवाही" फिर शुरू कर सकता है, जो वास्तव में ब्रिटेन के ग्रेस पीरिड को बढ़ाने की कोशिशों से शुरू हुए हैं. उन्हें बातचीत के लिए रोका गया था.

आयोग यूरोपीय संघ के कानूनों के कथित उल्लंघन के आरोप में इस "कार्यवाही" को दोबारा तुरंत शुरू कर सकता है. हालांकि, यूरोपियन कोर्ट ऑफ जस्टिस का फैसला आने में दो साल लग सकते हैं. यूरोपीय संघ करार टूटने पर जवाबी कार्रवाई भी कर सकता है.

यूरोपीय आयोग विवादों को सुलझाने के उन तरीकों पर भी विचार कर सकता है, जिन्हें ब्रेग्जिट और कारोबार समझौते में शामिल किया गया था. इससे यूरोपीय संघ और यूनाइटेड किंगडम के बीच हुए कारोबारी समझौते के कुछ हिस्से को निलंबित करने की नौबत भी आ सकती है और इसका नतीजा कुछ शुल्क लगाये जाने के रूप में भी सामने आ सकता है.

ब्रिटेन समर्थक डेमोक्रैटिक यूनियन पार्टी के नेता प्रोटोकॉल का विरोध कर रहे हैं
ब्रिटेन समर्थक डेमोक्रैटिक यूनियन पार्टी के नेता प्रोटोकॉल का विरोध कर रहे हैंतस्वीर: Paul Faith/AFP/Getty Images

आयरलैंड के संघवादी

उत्तरी आयरलैंड की क्षेत्रीय एसेंबली में इसी महीने हुए चुनाव में पुष्टि हो गई कि एसेंबली के ज्यादातर सदस्य प्रोटकॉल को बनाये रखना और यूरोपीय संघ से बातचीत करके इसे बेहतर बनाना चाहते हैं. उधर ब्रिटेन समर्थक संघवादी राजनेता इसका विरोध कर रहे हैं.

ब्रिटेन समर्थक सबसे बड़ी पार्टी  द डेमोक्रैटिक यूनियनिस्ट पार्टी यानी डीयूपी ने तब तक सत्ता की भागीदारी वाले प्रशासन में शामिल होने से इनकार कर दिया है, जब तक कि प्रोटोकॉल हटाया नहीं जाता. इसकी वजह से एसेंबली की बैठक ही नहीं हो सकी.

डीयूपी को ब्रिटेन के साथ संबंध कमजोर होने का डर है और वह ब्रेग्जिट के बाद ब्रिटेन से उत्तरी आयरलैंड आने वाले सामानों की जांच को खत्म करना चाहती है. उसका कहना है कि ब्रिटेन ने जो एकतरफा कार्रवाई की धमकी दी है, वह पर्याप्त नहीं है.

एसेंबली चुनाव के बाद राज्य की सबसे बड़ी पार्टी आयरिश नेशनलिस्ट सिन फाइन प्रोटोकॉल को स्वीकार करती है, क्योंकि पार्टी का लक्ष्य आयरिश एकीकरण है और वह यूरोपीय संघ के साथ रहना चाहती है.

इलाके में जारी छिटपुट हिंसा के पीछे आज भी कुछ चरमपंथी गुट सक्रिय हैं. विश्लेषकों का कहना है कि उत्तरी आयरलैंड के लिए राजनीतिक खालीपन कभी भी अच्छा नहीं रहा. हालांकि, जब प्रमुख पार्टियों के बीच असहमति के कारण 2017 से 2020 के बीच क्षेत्रीय असेंबली की बैठकें नहीं हो सकीं, तो इसका कोई बड़ा असर नहीं हुआ था.

उत्तरी आयरलैंड की असेंबली 2024 में पहली बार इस मुद्दे पर वोट डालेगी कि प्रोटोकॉल रहें या नहीं. अगर आम बहुमत इसके खिलाफ रहता है, तो यह दो साल बाद लागू नहीं रहेगा. हालांकि, अनुमान के मुताबिक असेंबली के सदस्य इसे बनाये रखने के लिये वोट देते हैं, तो इस पर अगली वोटिंग चार साल बाद होगी.

ब्रिटेन और यूरोपीय संघ में महंगाई लगातार बढ़ती जा रही है. ऐसे में कारोबारी युद्ध दोनों पक्षों को नुकसान पहुंचायेगा. जॉनसन की सरकार इस मुद्दे पर नरम पड़ने से पहले कई बार आवाज बुलंद कर चुकी है, लेकिन इसका समाधान नहीं हो सका.

एनआर/वीएस (रॉयटर्स)