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कानून का राज्य

उत्तर प्रदेश में पीएफ घोटाले के पीछे आखिर है कौन?

७ नवम्बर २०१९

उत्तर प्रदेश में बिजली विभाग के कर्मचारियों के भविष्यनिधि का करीब ढाई हजार करोड़ रुपया विभागीय अधिकारियों के उस फैसले की भेंट चढ़ गया है जो सारे नियमों को धता बताते हुए महज कुछेक लोगों के बीच तय कर लिया गया.

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तस्वीर: bahrialtay - Fotolia.com

इस मामले में राज्य की आर्थिक अपराध शाखा ने उस समय पावर कॉर्पोरेशन के प्रबंध निदेशक रहे एपी मिश्र समेत एंप्लॉईज ट्रस्ट के तत्कालीन सचिव पीके गुप्ता और तत्कालीन वित्त निदेशक सुधांशु द्विवेदी को गिरफ्तार करके पूछताछ शुरू कर दी है लेकिन बिजली विभाग के करीब पैंतालीस हजार कर्मचारियों और अधिकारियों को इस बात की आशंका है कि जो पैसा उन्होंने अपने भविष्य को सुरक्षित रखने के मकसद से सरकार के पास सुरक्षित रखा था, वह उन्हें मिल पाएगा या नहीं.

दरअसल साल 2014 में उत्तर प्रदेश स्टेट पावर सेक्टर एंप्लॉइज ट्रस्ट और उत्तर प्रदेश पावर कॉर्पोरेशन अंशदायी भविष्य निधि ट्रस्ट के पैसे को उन कंपनियों में निवेश करने का फैसला लिया गया था जहां अधिक ब्याज मिले. इससे पहले इस राशि को सिर्फ राष्ट्रीयकृत बैंक में ही जमा किया जाता था ताकि कर्मचारियों का पैसा सुरक्षित रहे और उन्हें उचित ब्याज मिलता रहे.

साल 2016 से ट्रस्ट ने पहले पीएनबी हाउसिंग फाइनेंस कंपनी में निवेश की शुरुआत की लेकिन मार्च 2017 में ट्रस्ट के पदाधिकारियों ने तत्कालीन सचिव पीके गुप्ता और निदेशक वित्त सुधांशु द्विवेदी की मौजूदगी में इस राशि को पीएनबी हाउसिंग कंपनी की बजाय एक निजी हाउसिंग कंपनी डीएचएफएल यानी दीवान हाउसिंग फाइनैंस लिमिटेड में पैसे लगाने की मंजूरी दे दी. इसके बाद मार्च 2017 से लेकर दिसंबर 2018 तक कर्मचारियों की पीएफ राशि को यहीं जमा किया जाता रहा.

जानकारी के मुताबिक यूपी पावर सेक्टर एंप्लॉईज ट्रस्ट ने करीब 4121 करोड़ रुपये का निवेश डीएचएफएल में किया था. इनमें से 1854 करोड़ रुपये की एफडी एक साल के लिए और 2268 करोड़ रुपये की एफडी तीन साल के लिए कराई गई थी. 1854 करोड़ रुपये तो 2018 में मैच्योर होने के बाद वापस आ गए लेकिन बाकी बची करीब 2200 करोड़ रुपये की राशि डीएचएफएल में इसलिए फंस गई है क्योंकि बॉम्बे हाईकोर्ट ने अनियमितताओं की शिकायत के चलते इस कंपनी के सारे लेन देन पर पिछले दिनों रोक लगा दी थी.

सरकार ने इस पूरे घपले की जांच सीबीआई को सौंप दी है और आर्थिक अपराध शाखा उस वक्त रहे बड़े अधिकारियों को गिरफ्तार करके जांच कर रही है. लेकिन इस मामले में समाजवादी पार्टी और भारतीय जनता पार्टी में जबानी लड़ाई भी तेज हो गई है. उत्तर प्रदेश के ऊर्जा मंत्री श्रीकांत शर्मा कहते हैं कि ये सारा फैसला तब लिया गया जब उनकी सरकार अभी बनी ही थी. श्रीकांत शर्मा इसके लिए पूर्व मुख्यमंत्री अखिलेश यादव को दोषी ठहराते हैं.

ट्रस्ट की बैठक में जब यह फैसला हुआ यानी 22 मार्च 2017 को, उस समय उत्तर प्रदेश में भारतीय जनता पार्टी की सरकार बन चुकी थी और डीएचएफएल कंपनी में पीएफ के पैसे के निवेश की शुरुआत उसके बाद ही हुई. श्रीकांत शर्मा का आरोप है कि सपा सरकार में इसकी भूमिका बनी जबकि समाजवादी पार्टी के अध्यक्ष अखिलेश यादव इसके लिए ऊर्जा मंत्री और मुख्यमंत्री को दोषी ठहरा रहे हैं. वहीं कांग्रेस पार्टी का आरोप है कि फैसला चाहे जब हुआ हो, निवेश की शुरुआत भारतीय जनता पार्टी के शासन काल में हुई और ढाई साल तक इस मामले में सरकार की चुप्पी तमाम आशंकाओं को जन्म देती है.

पीएनबी घोटाला: क्या, कैसे और कब हुआ?

उत्तर प्रदेश में वरिष्ठ पत्रकार अमिता वर्मा कहती हैं, "यह मामला वास्तव में कभी सामने न आ पाता यदि पिछले दिनों पावर कॉर्पोरेशन के चेयरमैन आलोक कुमार के पास गुमनाम चिट्ठी न आई होती. उसी चिट्ठी में उनसे कथित तौर पर सात करोड़ रुपये की रंगदारी मांगी गई थी. ट्रस्ट की जिस बैठक में 22 मार्च 2017 को डीएचएफएल में निवेश का फैसला लिया गया था, उस बैठक में कर्मचारी संगठनों की ओर से कोई प्रतिनिधि मौजूद ही नहीं था. जो प्रतिनिधि थे, वे सब इस घालमेल में शामिल थे, इसीलिए यह बात किसी को पता ही नहीं चल पाई.”

मामला सामने आने के बाद पावर कॉरपोरेशन ने एक अक्टूबर को इसकी जांच अपनी सतर्कता विंग को सौंप दी. लेकिन मामले को बढ़ता देख और कांग्रेस महासचिव प्रियंका गांधी के इस पर आए लगातार ट्वीट्स के बाद सरकार ने कार्रवाई शुरू की और मामले की जांच की सीबीआई से सिफारिश कर दी. लेकिन विभाग के कर्मचारी पावर कॉर्पोरेशन के मौजूदा एमडी और चेयरमैन के खिलाफ कार्रवाई और अपने पैसों की सुरक्षित वापसी को लेकर पिछले तीन दिनों से राजधानी समेत कई जगहों पर आंदोलन कर रहे हैं. हालांकि सरकार ने उन्हें भरोसा दिलाया है कि उनका पैसा डूबने नहीं पाएगा लेकिन डीएचएफल कंपनी जिस तरह से आर्थिक अनियमितताओं से घिरी है, उसे देखते हुए कर्मचारी सशंकित हैं.

डीएचएफएल कंपनी पर बैंकों का हजारों करोड़ रुपया बकाया है और यह कंपनी डूबने की कगार पर है. कंपनी में व्याप्त अनियमितताओं की जांच प्रवर्तन निदेशालय कर रहा है और बॉम्बे हाईकोर्ट ने इसके लेन-देन पर रोक लगा रखी है. इसके अलावा कंपनी में कई ऐसे निवेशक भी हैं जिनका प्रोफाइल बेहद संदिग्ध है. बताया जा रहा है कि इस कंपनी के निवेशकों में दाउद इब्राहिम के करीबी इकबाल मिर्ची भी परोक्ष रूप से शामिल हैं.

इस मामले में गत दो नवंबर को लखनऊ के हजरतगंज थाने में एक एफआईआर दर्ज कराई गई जिसके बाद ही सुधांशु द्विवेदी और पीके गुप्ता को गिरफ्तार कर लिया गया. इसके अलावा पावर कॉर्पोरेशन के तत्कालीन एमडी एपी मिश्र को भी गिरफ्तार करके जेल भेजा चुका है. आर्थिक अपराध शाखा के डीजी आरपी सिंह ने मीडिया को बताया कि इन लोगों को आमने-सामने बैठाकर भी पूछताछ की जा सकती है. एपी मिश्र पूर्व मुख्यमंत्री अखिलेश यादव के बेहद करीबी बताए जाते हैं और पिछली सरकार ने उन्हें रिटायर होने के बावजूद तीन बार एक्सटेंशन दिया था.

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