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उथल-पुथल भरा रहा साल 2015

प्रभाकर३१ दिसम्बर २०१५

भारत में राजनीतिक, सामाजिक और आर्थिक मोर्चे पर यह साल बेहद उथल-पुथल भरा रहा. दिल्ली में हार ने नरेंद्र मोदी की बीजेपी को आईना दिखाया, तो बांग्लादेश के साथ भूखंड संधि और नरेंद्र मोदी की लाहौर यात्रा ऐतिहासिक घटनाएं रहीं.

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तस्वीर: picture-alliance/dpa/Press Information Bureau

दिल्ली विधान सभा के चुनावों में आप ने 70 में से 67 सीटें जीतीं तो बिहार में महागठजोड़ को मिली अप्रत्याशित जीत ने भी एनडीए को करारा झटका दिया. राजनीतिक विवाद के चलते शीतकालीन अधिवेशन के दौरान संसद के ठप रहने की वजह से जीएसटी समेत कई अहम विधेयक पारित नहीं हो सके. सामाजिक मोर्चे पर भी यह साल काफी उलटफेर भरा रहा. उत्तर प्रदेश के दादरी में बीफ खाने की अफवाह के चलते एक व्यक्ति की पीट-पीट कर हत्या का मामला हो या फिर अभिनेता शाहरुख खान और आमिर खान के असहिष्णुता संबंधी बयान, सबने देश-विदेश में काफी सुर्खियां बटोरीं. असहिष्णुता के विरोध में दर्जनों साहित्यकारों, कलाकारों और संस्कृतिकर्मियों ने अपने अवार्ड भी लौटाए. साल के आखिरी महीनों में जहां चेन्नई में भारी बारिश से हुई तबाही ने अंधाधुंध शहरीकरण को कटघरे में खड़ा कर दिया, वहीं इस दौरान संकट की घड़ी में एक-दूसरे का हाथ थामने की कई मानवीय कहानियां भी उभर कर सामने आईं.

Indien Bildungsministerin Smriti Irani mit Frank Walter Steinmeier in New Delhi
चांसलर मैर्केल के भारत दौरे पर जर्मन भाषा शिक्षा पर समझौतातस्वीर: Getty Images/AFP/P. Singh

एक पुरानी कहावत है कि प्यार और युद्ध में सब कुछ जायज होता है. लेकिन राजनीति शायद इनमें सबसे ऊपर है, यह साबित किया जम्मू-कश्मीर ने. वहां हुए विधानसभा चुनावों के बाद विपरीत विचाराधारा वाली दो पार्टियों, बीजेपी और पीडीपी ने नेशनल कांफ्रेंस को सत्ता से बाहर रखने के लिए हाथ मिला लिया. हालांकि इसके लिए इन दोनों में बातचीत और खींचतान का लंबा दौर भी चला. बिहार में एक चेले के गुरू के खिलाफ झंडा बुलंद करने का मामला भी सुर्खियों में रहा. नीतीश कुमार ने लोकसभा चुनाव में दुर्गति के बाद जिस जीतन राम मंझी को मुख्यमंत्री की कुर्सी सौंपी थी उन्होंने नीतीश के कहने पर कुर्सी खाली करने से इंकार कर दिया. लंबे विवाद के बाद आखिर मांझी को जद (यू) से बाहर जाना पड़ा. दिल्ली विधानसभा चुनावों में आप को मिली शानदार कामयाबी ने मोदी की लोकप्रियता के मिथक तोड़े लेकिन सत्ता में आने के बाद आप अपने कामकाज नहीं, बल्कि पार्टी के अंदरूनी विवादों की वजह से ज्यादा चर्चा में रही है.

Shinzo Abe und Narendra Modi in Neu Delhi
जापान बनाएगा भारत में पहली बुलेट ट्रेनतस्वीर: Reuters/A. Abidi

साल के शुरूआती दौर में कांग्रेस महासचिव राहुल गांधी की दो महीने लंबी रहस्यमय विदेश यात्रा ने भी काफी सुर्खियां बटोरी. इस दौरान अटकलों का बाजार गर्म रहा. कोई उनको थाईलैंड में बताता रहा तो कोई कंबोडिया और वियतनाम में. इसके अलावा विशाखापत्तनम में सीपीएम की 21वीं पार्टी कांग्रेस के दौरान प्रकाश कारत के राज का खात्मा कर सीताराम येचुरी का महासचिव बनना भी विपक्ष की राजनीति का एक अहम पड़ाव रहा. तमाम खींचतान और चुनाव की खबरों के बीच आखिर येचुरी आम राय से इस पद पर चुने गए. इसके साथ ही वामपंथी राजनीति में एक नए उदारवादी दौर की शुरूआत हुई. दक्षिण में कर्नाटक हाईकोर्ट की ओर से आय से ज्यादा संपत्ति रखने के मामले में बरी होने के बाद जयलिलता ने पांचवीं बार मुख्यमंत्री का पद संभाला.

सितंबर के दौरान मोदी के घर गुजरात में पटेल समुदाय ने आरक्षण की मांग में जो आंदोलन शुरू किया था वह देश-विदेश में चर्चा में रहा. इस आंदोलन की अगुवाई महज 22 साल के युवक हार्दिक पटेल ने की थी. शुरूआती दौर में राष्ट्रीय राजनीति को हिला देने वाले इस आंदोलन के दौरान भारी हिंसा और आगजनी भी हुई. लेकिन दो महीने के भीतर ही इसकी हवा निकल गई. अब पटेल जेल में जमानत का इंतजार कर रहे हैं.

Indien Arvind Kejriwal Narendra Modi Treffen
दिल्ली और केंद्र सरकार में लगातार टकरावतस्वीर: picture-alliance/dpa

बांग्लादेश के साथ भूखंडों की अदला-बदली के लिए ऐतिहासिक करार और बंगाल सरकार के पास रखी नेताजी सुभाष चंद्र बोस से संबंधित 64 गोपनीय फाइलों का सार्वजनिक होना भी साल की अहम घटनाएं रहीं.

बिहार विधानसभा चुनावों में नरेंद्र मोदी और बीजेपी प्रमुख अमित शाह के पूरी ताकत झोंक देने के बावजूद महागठजोड़ को जिस तरह जीत मिली उससे बीजेपी को करार झटका लगा. इन चुनावों ने राजनीतिक हाशिए पर पहुंचे लालू प्रसाद यादव के करियर को न सिर्फ नई संजीवनी मुहैया कराई, बल्कि वे किंगमेकर बन कर उभरे. इन चुनावों ने एक बार फिर इस पुरानी कहावत को साबित कर दिखाया कि राजनीति में न तो कोई स्थायी दोस्त होता है और न ही कोई स्थायी दुश्मन.

Westbengalen Netaji Subhash Chandra Bose
मिथक तोड़ने के प्रयासतस्वीर: DW/P. M. Tewari

साल के आखिरी महीनों के दौरान भी कम विवाद नहीं हुए. नेशनल हेराल्ड मामले पर सोनिया और राहुल गांधी की अदालत में पेशी और दूसरे मुद्दों पर कांग्रेस ने संसद की कार्यवाही हफ्तों ठप रखी. नतीजतन जीएसटी समेत कई विधेयक पारित नहीं हो सके. इस साल आर्थिक मोर्चे पर सरकार को कोई खास कामयाबी नहीं मिल सकी. तेल के दामों में कटौती का लाभ आम लोगों तक नहीं पहुंचा. विभिन्न वजहों से शेयर बाजार में भी गिरावट हुई. राजनीतिक बाधाओं के चलते एनडीए सरकार के आर्थिक सुधार भी परवान नहीं चढ़ सके. इसी दौरान जापान के साथ बुलेट ट्रेन पर करार के जरिए रेल में प्रत्यक्ष विदेशी निवेश (एफडीआई) के दरवाजे खोल दिए गए.

दिल्ली में मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल के दफ्तर पर सीबीआई के छापे और उसके बाद बीजेपी और केंद्रीय वित्त मंत्री अरुण जेटली के साथ चलने वाले आरोप-प्रत्यारोप के दौर ने राजनीति के कड़वे चेहरे को उजागर किया. लेकिन साल का मास्टरस्ट्रोक रहा नरेंद्र मोदी का लाहौर दौरा. अफगानिस्तान से वापसी के दौरान अचानक पाकिस्तानी प्रधानमंत्री नवाज शरीफ के जन्मदिन और उनकी नतिनी के विवाह के मौके पर मोदी के चंद घंटों के लाहौर दौरे ने साल की उनकी तमाम कामयाबियों पर लगभग पर्दा डाल दिया. उनके इस कूटनीतिक फैसले ने दुनिया भर में सराहना बटोरी.

कुल मिला कर राजनीतिक, सामाजिक और आर्थिक मोर्चे पर यह साल काफी उठापटक का गवाह बना.