उदासीनता सबसे बड़ी अड़चन: कैलाश सत्यार्थी
१० दिसम्बर २०१४सत्यार्थी को बुधवार को नॉर्वे की राजधानी ओसलो में मलाला यूसुफजई के साथ नोबेल शांति पुरस्कार दिया गया. सत्यार्थी कहते हैं कि बच्चों और महिलाओं के खिलाफ हिंसा का कारण धार्मिक मान्यताएं नहीं बल्कि समस्या वे लोग हैं जो अपने आर्थिक और राजनीतिक फायदों के लिए धर्म की आड़ में छुपते हैं. उनका कहना है, "शिक्षा से समाज में सहनशीलता आती है जिससे शांति, भाईचारा और एक दूसरे के लिए सम्मान पैदा होता है."
2014 में कैलाश सत्यार्थी और पाकिस्तान में लड़कियों की शिक्षा के लिए तालिबान के खिलाफ आवाज उठाने वाली मलाला यूसुफजई को नोबेल शांति पुरस्कार से सम्मानित किया गया. मलाला 2012 में तालिबान के हमले का शिकार हुई थीं. उन्हें इसके बाद इलाज के लिए लंदन ले जाया गया, तब से वह अपने परिवार के साथ वहीं रह रही हैं.
संयुक्त राष्ट्र के मुताबिक उपसहारा देशों में करीब 1.5 करोड़ बच्चों से नियमित रूप से काम लिया जाता है. इनमें से करीब एक चौथाई की उम्र 5 से 14 साल के बीच है. सत्यार्थी के मुताबिक, "हमारी शिक्षा में मानव मूल्यों का समावेश होना चाहिए."
सत्यार्थी मानते हैं, "बाल मजदूरी की एकलौती बड़ी वजह उदासीनता है. लोग दिन पर दिन भौतिकतावादी और उपभोक्तावादी होते जा रहे हैं." दुनिया में गरीब और मजबूर लोगों के लिए करुणा खत्म होती जा रही है. भारत में शिक्षा की कमी एक बड़ा मुद्दा है. उनके मुताबिक नई सरकार के आने के बाद से शैक्षिक योग्यता पर ध्यान देने के बजाय कई हिन्दूवादी विचारधारा के समर्थक हिन्दू मूल्यों की शिक्षा को ज्यादा महत्व देने की कोशिश कर रहे हैं. यह भारत जैसे धर्मनिरपेक्ष और आधुनिक देश के लिए अच्छा नहीं.
नोबेल शांति पुरस्कार मिलने के लिए मलाला की सत्यार्थी से ज्यादा चर्चा हो रही है. लेकिन सत्यार्थी इससे विचलित नहीं. वह कहते हैं, "मैंने अपने जीवन में कभी मशहूर होने की कोशिश नहीं की क्योंकि मैं उन बच्चों के लिए काम करता हूं जो लोगों को सबसे कम दिखाई देते हैं. मेरा काम सालों तक लोगों की नजर से छुपा रहा, और उसके साथ ही मैं भी." उन्होंने कहा, "मलाला एक जबरदस्त लड़की है, वह मेरी बेटी की तरह है, मैं उसे पसंद करता हूं और इज्जत भी करता हूं."
सत्यार्थी इस बात से इनकार करते हैं कि मुस्लिम देशों में महिलाओं के खिलाफ होने वाली हिंसा से धर्म का कुछ लेना देना है. उन्होंने कहा, "इस्लाम का अर्थ ही है प्रेम और मानवता. कुछ लोग अपने छोटे मोटे फायदों के लिए राजनीति, धंधे या धर्म का इस्तेमाल करते हैं."
सत्यार्थी ने बाल मजदूरी के खिलाफ काम करने के लिए 1980 में अपना इलेक्ट्रिक इंजीनियर का पेशा छोड़ दिया था. उनके नेतृत्व में कई तरह के शांतिपूर्ण प्रदर्शन भी हुए हैं. उनकी गैर सरकारी संस्था बचपन बचाओ आंदोलन पिछले तीस सालों में करीब 80,000 बच्चों को बाल मजदूरी से मुक्त कराने के लिए जानी जाती है. सत्यार्थी के मुताबिक करीब 6 करोड़ बच्चे अभी भी बाल मजदूरी का शिकार हैं.
एसएफ (रॉयटर्स)/आरआर