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एक तीर से कई शिकार किए हैं ममता ने

१८ सितम्बर २०१५

नेताजी से जुड़ी 64 गोपनीय फाइलों को सार्वजनिक कर के मुख्यमंत्री ममता बनर्जी ने एक तीर से कई शिकार करने का प्रयास किया है. ममता के इस औचक फैसले से उनके मंत्रिमंडलीय सहयोगियों के अलावा नेताजी के परिजन भी हैरान हैं.

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तस्वीर: DW/P. M. Tewari

इन फाइलों को सामने लाने का फैसला करने से पहले उन्होंने नेताजी के परिजनों से भी कोई सलाह-मशविरा नहीं किया. दशकों से धूल फांक रहीं 64 फाइलें लगभग सात दशकों बाद पहली बार शुक्रवार को सार्वजनिक कर दी गईं. आम लोगों के लिए मूल फाइलों को सोमवार से यहां पुलिस संग्रहालय में रखा जाएगा. शुक्रवार को इन फाइलों को डिजिटल स्वरूप में कांपैक्ट डिस्क(सीडी) के तौर पर जारी करते हुए इसकी पहली प्रति नेताजी के परिजनों को सौंपी गई.

Westbengalen Netaji Subhash Chandra Bose
सीडी के साथ नेताजी की रिश्तेदारतस्वीर: DW/P. M. Tewari

वर्ष 1937 से 1947 के बीच के एक दशक के दौरान नेताजी के जीवन का इतिहास इन 64 फाइलों के 12,744 पन्नों में दर्ज है. ममता बनर्जी ने इसे एक ऐतिहासिक दिन करार दिया है. अपने एक ट्वीट में उन्होंने कहा है कि आज एक ऐतिहासिक दिन है. हमारी सरकार ने नेताजी से संबंधित फाइलों को सार्वजनिक कर दिया है. आम लोगों को देश के इस वीर सपूत के बारे में जानने का हक है.

इन फाइलों को सार्वजनिक करने की मांग जितनी पुरानी थी, इनको सार्वजनिक करने का ममता का फैसला उतना ही अचरज भरा है. अब सवाल उठ रहा है कि आखिर उन्होंने अचानक इन फाइलों को सार्वजनिक करने का फैसला क्यों किया? वैसे, एक सप्ताह पहले इस बारे में ममता के एलान के बाद से ही तमाम कयास लगाए जा रहे हैं. नेताजी के परिजनों के अलावा कई अन्य संगठन तो लंबे अरसे से इसकी मांग करते रहे हैं. ममता ने चार साल से सत्ता में रहते कभी इस मुद्दे पर ध्यान नहीं दिया था. लेकिन अब अचानक कुछ महीनों के भीतर उनकी पहल पर धूल फांक रही इन फाइलों को न सिर्फ झाड़-पोंछ कर बाहर निकाला गया, बल्कि उनको सार्वजनिक करने का भी फैसला कर लिया गया.

इसे लेकर कई थ्योरी हवा में है. कोई इसे अगले विधानसभा चुनावों से पहले ममता का मास्टरस्ट्रोक मान रहा है तो किसी का कहना है कि उन्होंने अपने स्वभाव के अनुरूप ही अचानक इसका फैसला किया है. एक तबका ऐसा भी है जो इसे फॉरवर्ड ब्लाक नेता अशोक घोष के साथ हाल में बढ़ी ममता की नजदीकियों के साथ जोड़ कर देख रहा है. ममता अशोक घोष के जन्मदिन के मौके पर फूलों का गुच्छा लेकर उनको शुभकामनाएं देने गई थीं.

इस बारे में अलग-अलग गुटों की राय भले अलग-अलग हो तमाम लोग इस बात पर सहमत हैं कि ममता ने नेताजी से संबंधित इन फाइलों को सार्वजनिक करने का फैसला कर एक तीर से कई शिकार किए हैं. इसमें कोई दो-राय नहीं है कि नेताजी अब भी बंगाल के लोगों के लिए एक संवेदनशील मुद्दा हैं. ऐसे में उनसे जुड़ी फाइलों को सामने लाने पर ममता को आम लोगों खासकर नेताजी से जुड़े संगठनों का समर्थन मिल सकता है. इस हथियार की सहायता से अगले चुनाव में वे तीनों प्रमुख विपक्षी दलों-सीपीएम, कांग्रेस और बीजेपी को निशाना बना सकती हैं. इसके साथ ही इसके जरिए उन्होंने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और उनकी एनडीए सरकार पर भी इस मामले में पहल करने का दबाव बढ़ा दिया है.

यह कोई संयोग नहीं है कि इन फाइलों को सार्वजनिक करने के एलान के चौबीस घंटे के भीतर ही प्रधानमंत्री दफ्तर की ओर से नेताजी के परिजनों को मोदी से मुलाकात का न्योता आ गया. शुक्रवार को भी उनके परिजनों ने कहा कि बंगाल सरकार की ओर से इन फाइलों को सार्वजनिक करने के फैसले से सबक लेते हुए अब केंद्र सरकार को भी ऐसा करना चाहिए. नेताजी के परिजन केंद्र के पास रखी ऐसी 135 गोपनीय फाइलों को भी सार्वजनिक करने की मांग कर रहे हैं. मोदी सरकार ने पहले तो ऐसा करने का भरोसा दिया था. लेकिन बाद में वह भी पूर्व यूपीए सरकार की इस दलील की आड़ में पीछे हट गई कि ऐसा करने से पड़ोसी देशों के साथ संबंध बिगड़ सकते हैं.

वैसे, खुद मुख्यमंत्री ने इस फैसले का एलान करते वक्त कहा था कि हम पारदर्शिता व जवाबदेही बनाए रखना चाहते हैं. लोगों को नेताजी के बारे में पता चलना चाहिए. वे एक राष्ट्रीय हीरो थे. हमें नेताजी की जन्मतिथि के बारे में तो जानकारी है, लेकिन हम उनके निधन के बारे में कुछ नहीं जानते. लोगों को नेताजी के जीवन के आखिरी दिनों के बारे में जानने का हक है.

राजनीतिक पर्यवेक्षकों का कहना है कि ममता का यह फैसला तुरुप का पत्ता साबित हो सकता है. वैसे, जानकारों की राय में इन फाइलों से नेताजी के आखिरी दिनों का सच सामने आने की उम्मीद कम ही है. ज्यादातर फाइलें नेताजी के परिजनों की खुफिया निगरानी से संबंधित हैं. लेकिन आजादी से पहले वाली फाइलें दिलचस्प हो सकती है.

ब्लॉग:प्रभाकर

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