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एक भूल ऐसी भी

२२ जनवरी २०११

लोग जीवन में अकसर कई चीजें भूल जाते हैं. यह बड़ी आम बात है. कुछ लोगों को तो भूलने की बीमारी ही होती है. लेकिन कई बार एक छोटी-सी भूल दूसरों के लिए परेशानी का सबब बन जाती है.

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दिल्ली मेट्रो की एक तस्वीरतस्वीर: AP

कोलकाता में मेट्रो रेलवे के एक मोटरमैन से भी ऐसी ही एक भूल हो गई. दरअसल एक स्टेशन पर वह ट्रेन के दरवाजे खोलना ही भूल गया. इसका नतीजा यह हुआ वहां उतरने वाले सैकड़ों यात्रियों को एक स्टेशन आगे जाकर उतरना पड़ा. स्टेशन पर ट्रेन में सवार होने का इंतजार कर रहे यात्रियों को भी अगली ट्रेन तक इंतजार करना पड़ा. बाद में पूछताछ में उस मोटरमैन ने माना कि वह दरवाजे खोलना ही भूल गया था.

मेट्रो के इतिहास में अपनी तरह की यह पहली घटना गुरुवार की शाम को घटी. दमदम से नेताजी सुभाष तक जाने वाली मेट्रो ट्रेन दफ्तर से लौटने वाले लोगों से भरी होती हैं. ऐसी ही एक ट्रेन पर शाम छह बजे नेताजी स्टेशन पर पहुंची तो यात्री उतरने के लिए दरवाजे के पास पहुंच गए.

ट्रेन के रुकने के बाद लोग दरवाजों के खुलने का इंतजार करते रहे. लेकिन उनको उस समय झटका लगा जब ट्रेन कुछ देर ठहरने के बाद अगले स्टेशन की ओर रवाना हो गई. यात्रियों ने शोर भी मचाया. लेकिन किसी के कानों पर जूं तक नहीं रेंगी.

अगले स्टेशन पर जब ट्रेन रुकी तो नेताजी स्टेशन पर उतरने वाले यात्रियों ने वहां स्टेशन मास्टर से इसकी शिकायत की.

उधेड़बुन के कारण

मेट्रो रेलवे के अधिकारियों ने जब ट्रेन के मोटरमैन से इस बाबत पूछताछ की तो उसने कहा कि वह दरवाजा खोलना भूल गया था. मोटरमैन का कहना था कि वह किसी उधेड़बुन में डूबा था. इसलिए दरवाजे खोलना ही भूल गया. फिलहाल रेल प्रबंधन ने उसके खिलाफ विभागीय जांच के आदेश दे दिए हैं.

मनोचिकित्सकों का कहना है कि भारी मानसिक दबाव की वजह से लोग अक्सर अपने आसपास घटने वाली बातों पर ध्यान नहीं दे पाते. शायद उस मोटरमैन के साथ भी ऐसा ही हुआ हो. लेकिन मेट्रो रेलवे के अधिकारियों का कहना है कि उस मोटरमैन पर काम का कोई दबाव नहीं था.

मेट्रो रेलवे के जनसंपर्क अधिकारी प्रत्युष घोष कहते हैं, "दरवाजों को खोलने और बंद करने की जिम्मेवारी ट्रेन के पिछले हिस्से में रहने वाले मोटरमैन की है. उसने पूछताछ में माना है कि वह दरवाजे खोलने वाला स्विच दबाना भूल गया था. ट्रेन चलाने वाले मोटरमैन ने भी इस ओर ध्यान ही नहीं दिया कि दरवाजे नहीं खुले हैं."

यात्रियों को परेशानी

हर मेट्रो ट्रेन में दो मोटरमैन होते हैं. ट्रेन के सामने बैठा मोटरमैन ट्रेन का संचालन करता है जबकि पिछले केबिन में बैठा मोटरमैन दरवाजे खोलता और बंद करता है. हर स्टेशन पर मोटरमैनों के केबिन के ठीक सामने लगे स्क्रीन पर पूरे प्लेटफार्म का नजारा दिखता है. ऐसा इसलिए किया गया है कि ताकि मोटरमैन दरवाजों के खुलने, बंद होने और उसमें चढ़ने-उतरने वाले यात्रियों की सुरक्षा पर निगाह रख सके.

लेकिन इस मामले में भी किसी भी मोटरमैन ने शायद स्क्रीन पर ध्यान नहीं दिया. ट्रेन चलाने वाले मोटरमैन के सामने भी हरी और लाल बत्तियां लगी होती हैं, जो इस बात का संकेत देती हैं कि दरवाजे खुले हैं या बंद. लेकिन उसने भी ध्यान नहीं दिया कि बत्तियों का रंग हरे से लाल नहीं हुआ. यानी दरवाजे खुले ही नहीं.

बाद में एक दूसरी ट्रेन से इन यात्रियों को उनके गंतव्य की ओर रवाना किया गया. फिलहाल इस मामले की जांच शुरू हो गई है. उस ट्रेन में सवार विमल दास कहते हैं, "मोटरमैन की इस भूल की वजह से दिन भर दफ्तर में खटने के बाद हमें घर पहुंचने में एक घंटे ज्यादा समय लग गया. सैकड़ों यात्रियों को एक स्टेशन आगे जाकर दोबारा लौटना पड़ा."

रिपोर्टः प्रभाकर, कोलकाता

संपादनः ए कुमार

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