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एक समझौता जिससे बदल जाएगा दुनिया का बाजार

४ नवम्बर २०१९

थाईलैंड का दावा है कि क्षेत्रीय व्यापक आर्थिक साझेदारी के मुद्दे पर एशियाई देशों ने निर्णायक बातचीत की है, जो 16 देशों का दुनिया में सबसे बड़ा व्यापारिक समझौता साबित होगा. भारत ने इस समझौते को लेकर कुछ आशंकाएं जताई हैं.

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Thailand Asean-Gipfel
तस्वीर: picture alliance/dpa/Bermama/N. Ahmad

अमेरिका-चीन के बीच जारी कारोबारी युद्ध के बीच क्षेत्रीय व्यापक आर्थिक साझेदारी (आरसीईपी) को लेकर दक्षिणपूर्वी एशियाई देशों को उम्मीद है कि अस्थायी समझौते का एलान हो सकता है. क्षेत्रीय व्यापक आर्थिक साझेदारी का चीन समर्थन करता आ रहा है.

क्षेत्रीय व्यापक आर्थिक साझेदारी 10 आसियान देशों, जैसे कंबोडिया, इंडोनेशिया, ब्रुनेई, मलेशिया, सिंगापुर, म्यांमार, फिलीपींस, थॉलैंड, लाओस और वियतनाम और उनके छह मुक्त व्यापार समझौते वाले साझेदार देशों भारत, चीन, दक्षिण कोरिया, जापान, न्यूजीलैंड और ऑस्ट्रेलिया का समूह है. आखिरी क्षण में भारत ने कुछ बिंदुओं को लेकर अपनी मांगें रखी जिस कारण देर रात तक मंत्रियों के बीच चर्चा हुई.

भारत की आपत्ति

थाईलैंड के वाणिज्य मंत्री जूरी लक्सनाविसित के मुताबिक, "कल रात की बातचीत निर्णायक रही. आरसीईपी पर समझौते की सफलता पर नेता साथ ऐलान करेंगे. भारत इस समझौते के साथ है और संयुक्त रूप से इस पर ऐलान करेगा. समझौते पर हस्ताक्षर अगले साल किए जाएंगे."

थाईलैंड के प्रधानमंत्री प्रयुत चान ओचा के मुताबिक, "हम आरसीईपी पर वार्ता के निष्कर्ष का स्वागत करते हैं. आरसीईपी समझौते पर 2020 में दस्तखत करने को लेकर हम प्रतिबद्ध हैं."  आरसीईपी पर भारतीय अधिकारियों ने सम्मेलन के दौरान चुप्पी साधी रखी, अन्य देशों से आए अधिकारियों ने भी इस पर टिप्पणी नहीं की.

Thailand Asean-Gipfel
तस्वीर: Getty Images/AFP/M. Vatsyayana

 

घरेलू बाजार की चिंता से घिरा है भारत

दक्षिणपूर्वी एशिया के सबसे बड़े देश इंडोनेशिया ने भारत से समझौते का हिस्सा बने रहने की अपील की है. दरअसल भारत में विपक्षी दल और उद्योग जगत आरसीईपी के समझौते को लेकर कई सवाल खड़े कर रहे हैं. इसी वजह से भारत पसोपेश में हैं. इस समझौते से वैश्विक राजनीति तो बदलेगी ही साथ ही साथ वैश्विक बाजार का स्वरूप भी बदल जाएगा. भारत अपने घरेलू हितों की रक्षा करने चाहता है, भारत को आशंका है कि कहीं समझौते पर दस्तखत के बाद उसके बाजार सस्ते उत्पादों से भर ना जाए.

फिलहाल भारत की अपनी चिंताएं हैं, आर्थिक विकास दर से लेकर उद्योग-धंघे पर मंदी का संकट है. रोजगार के क्षेत्र में भी हालत उतनी अच्छी नहीं और उस पर यह समझौता भारतीय बाजार पर विपरीत प्रभाव डालने वाला साबित हो सकता है. रविवार को भारतीय प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने शिखर सम्मेलन में आरसीईपी का जिक्र तक नहीं किया. भारत को अपने बाजार में चीनी उत्पादों की आयात को लेकर  चिंता सताए जा रही है. अगर यह समझौता हो जाता है  तो यह इतना बड़ा होगा जिसकी कल्पना नहीं की जा सकती है. इस ब्लॉक की कुल आर्थिक विकास दर विश्व की एक तिहाई है यानी कि 49.5 ट्रिलियन डॉलर है. विश्व की करीब 45 प्रतिशत आबादी के साथ निर्यात का एक चौथाई इन्हीं देशों से होता है.

हालांकि कुछ देशों ने भारत के बिना ही इस समझौते पर आगे बढ़ने की संभावना के संकेत दिए हैं. समझौते में भारत के शामिल होने से दक्षिणपूर्वी देशों के लिए राहत की बात यह रहेगी की कि चीन उनपर पूरी तरह से हावी नहीं हो पाएगा. एशिया में अकेला भारत ही है जो चीन का मुकाबला करने की स्थिति में है. 

एए/एनआर (रॉयटर्स)

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