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एचआईवी मरीजों की बढ़ती उम्र

१८ जुलाई २०१४

अब तक एड्स को ऐसी लाइलाज बीमारी माना जाता रहा है जिससे कुछ सालों में जीवन का अंत हो जाता है. लेकिन रिसर्चरों की मानें तो आधुनिक दवाओं की मदद से एचआईवी संक्रमित मरीज भी लगभग सामान्य लोगों जितना लंबा जीवन जी रहे हैं.

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तस्वीर: picture-alliance/dpa

एचआईवी के खिलाफ एंटी रेट्रोवायरल ट्रीटमेंट एआरटी की मदद से मृत्यु दर में काफी कमी आई है. जहां 1999 से 2001 के बीच प्रति 1000 एचआईवी मरीजों में से 18 की मौत हो गई, वहीं 2009 से 2011 के बीच 1000 में से करीब 9 मरीजों की ही मौत हुई. ये आंकड़े यूरोप, अमेरिका और ऑस्ट्रेलिया से जमा किए गए.

एआरटी ने दिया जीवन

साइंस की 'द लैंसेंट' पत्रिका में छपी रिपोर्ट के मुताबिक ये नतीजे एआरटी के भारी फायदों का समर्थन करते हैं. रिपोर्ट के अनुसार, "इस इलाज की मदद से एचआईवी संक्रमित लोगों की जीने की संभावना आम लोगों के जैसी होती जा रही है."

एआरटी का विकास नब्बे के दशक में हुआ. यह इलाज मरीज में ह्यूमन इम्यूनो डेफीशिएंसी वायरस यानि एचआईवी को मारता नहीं है, बल्कि वायरस के पनपने को धीमा कर एड्स के फैलाव को रोकता है.

एआरटी के इलाज से पहले मरीज इतने लंबे समय तक जीवित नहीं रह पाते थे. उनके शरीर की रोग प्रतिरोधी क्षमता के नष्ट हो जाने के कारण कैंसर या कोई अन्य बीमारी आसानी से ऐसे मरीजों को चपेट में ले लेती है.

एचआईवी संक्रमित करीब 50 हजार लोगों पर अध्ययन करके पता चला कि 29 फीसदी मामलों में मृत्यु का कारण वह स्थिति थी जब उनकी रोग प्रतिरोधी क्षमता ने पूरी तरह काम करना बंद कर दिया. इसके अलावा 15 फीसदी मामलों में फेफड़े का कैंसर, 13 फीसदी मामलों में जिगर की बीमारी और 11 फीसदी मामलों में दिल की बीमारी जिम्मेदार रही.

जीवनशैली में बदलाव

रिपोर्ट में कहा गया है कि एचआईवी संक्रिमत लोगों में फेफड़े, जिगर या दिल की बीमारियों से मरने में कमी इसलिए हुई क्योंकि उन्होंने अपनी जीवनशैली में सुधार किया. उन्होंने शराब और सिगरेट पीना कम कर दिया और एआरटी का नियमित इस्तेमाल किया. यूनिवर्सिटी कॉलेज ऑफ लंदन की कोलेट स्मिथ इस रिपोर्ट को तैयार करने वाली प्रमुख रिसर्चर हैं. वह कहती हैं, "इस बात से बहुत हौसला मिलता है कि एचआईवी संक्रमित लोगों की मृत्यु दर लगातार घट रही है. यह दिखाता है कि एंटी रेट्रोवायरल ट्रीटमेंट कितना प्रभावशाली है."

हालांकि वह यह भी मानती हैं कि इन परिणामों से हमें बिल्कुल निश्चिंत नहीं हो जाना चाहिए. "हमें इस बात का पूरा ख्याल रखना चाहिए कि एचआईवी से संक्रमित लोग नियमित रूप से दवाई ले रहे हों, ताकि वे इलाज का फायदा उठा सकें."

एसएफ/आईबी (एएफपी)