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एडमिरल गोर्शकोव से विक्रमादित्य तक

Anwar Jamal Ashraf१६ नवम्बर २०१३

पांच साल की देरी से रूस आधुनिक विमानवाही पोत भारत के सुपुर्द करने वाला है, जिसे पूरा होने में बजट दूर भाग गया और जिसकी वजह से भारत और हथियारों के सप्लायर के बीच तल्खी भी पैदा हुई.

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तस्वीर: picture-alliance/dpa

रूस के सेवेरोदविन्स्क शहर में आईएनएस विक्रमादित्य को सेवमाश शिपयार्ड से पानी में उतारा जाएगा और अगले साल तक यह भारतीय सीमा में पहुंचेगा. भारतीय नौसेना के प्रवक्ता पीवीएस सतीश ने बताया, "भारतीय रक्षा मंत्री एके एंटनी आईएनएस विक्रमादित्य को शनिवार को कमीशन करेंगे. कुछ दूसरे जहाज इसे सुरक्षा प्रदान करते हुए भारतीय सीमा तक पहुंचाएंगे."

आईएनएस विक्रमादित्य को पहले एडमिरल गोर्शकोव के तौर पर तैयार किया गया था और 1987 में इसे पानी में उतारा गया था. समझा जाता है कि पड़ोसी मुल्क चीन की नौसेना शक्ति को ध्यान में रखते हुए भारत के लिए यह अहम साबित होगा.

भारत के पास फिलहाल सिर्फ एक विमानवाहक युद्धपोत आईएनएस विराट है, जो 1987 में कमीशन किया गया था. भारत और रूस में इस युद्धपोत के सौदे पर 1980 के दशक में ही बातचीत शुरू हुई लेकिन समझौते पर दस्तखत 2004 में किया गया. यह सौदा करीब 77 करोड़ डॉलर का था.

बढ़ता गया बजट

भारतीय मीडिया का कहना है कि बाद में 284 मीटर लंबे इस जहाज का बजट बढ़ता हुआ 2.3 अरब डॉलर तक पहुंच गया, जबकि इसकी समयसीमा बार बार बढ़ाई गई और इसकी वजह से भारत और रूस की दोस्ती में भी खटास आई. भारत के रक्षा सौदों का 70 फीसदी रूस से ही होता है.

भारतीय उद्योग संघ सीआईआई के रक्षा सलाहकार ग्रुप में शामिल मृणाल सुमन का कहना है, "अंतरराष्ट्रीय सौदे को पूरा करना के यह तरीका नहीं हो सकता है क्योंकि इसमें वादाखिलाफी है." वह कहते हैं," रूसियों को पता था कि हमें कितनी शिद्दत से इसका इंतजार था और उन्होंने इसका गलत फायदा उठाया." सुमन भारतीय सेना में मेजर जनरल के पद पर रह चुके हैं.

सबसे बड़ा हथियार खरीदार

रूस के बाद भारत ने इस्राएल, अमेरिका, फ्रांस और ब्रिटेन से भी हथियार खरीदे. वह इन दिनों दुनिया में हथियारों की खरीद के मामले में पहले नंबर का देश बन गया है. भारतीय रक्षा मंत्रालय के एक अधिकारी ने बताया कि पांच युद्धपोत आईएनएस विक्रमादित्य को सुरक्षा देते हुए भारतीय सीमा में लाएंगे क्योंकि फिलहाल विक्रमादित्य हथियारों से लैस नहीं है.

भारत के अखबार इंडियन एक्सप्रेस का कहना है कि तीन महीने का इसका परीक्षण सितंबर में पूरा हो गया और यह उसमें पूरी तरह कामयाब रहा. मंत्रालय के अधिकारी का कहना है कि इसमें 2500 टन स्टील लगा है और इसमें रूस के मिग 29 लड़ाकू जहाज लगाए जाएंगे. 44,500 टन के विक्रमादित्य में 8000 टन ईंधन भरा जा सकेगा, जिसकी मदद से 13,000 किलोमीटर की दूरी तय हो सकती है. इस पर 1,600 नाविकों के बेड़े को आसानी से 45 दिनों तक रखा जा सकता है और इसमें 16 टन चावल, 2000 लीटर दूध और एक लाख अंडे स्टोर किए जा सकते हैं.

इस्तेमाल पर सवाल

भारतीय नौसेना को इस साल अगस्त में उस वक्त बड़ा झटका लगा, जब रूस में ही बनी पनडुब्बी आईएनएस सिंधुरक्षक में मुंबई के पास विस्फोट हो गया. इसमें 18 लोग मारे गए. इस पनडुब्बी को तकनीकी और प्रशासनिक वजहों से पानी में नहीं उतारा गया था. आईएनएस विक्रमादित्य को जिस वक्त भारत लाया जाएगा, इसमें रूसी विशेषज्ञ भी होंगे, जो तकनीकी सलाह देंगे.

दिल्ली में इंस्टीट्यूट ऑफ कंफ्लिक्ट मैनेजमेंट के रिसर्चर अजीत कुमार सिंह का कहना है कि इस युद्धपोत के इस्तेमाल को लेकर उन्हें शक है, "ऐसे बड़े युद्धपोत सिर्फ युद्ध के दौरान इस्तेमाल होते हैं. और मुझे नहीं लगता कि आने वाले वक्त में कोई बड़ा युद्ध होने वाला है."

एजेए/एमजी (पीटीआई, एएफपी)