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समाज

परफेक्ट पार्टनर की तलाश में साथ दे रहे हैं मां-बाप

१० जून २०१९

परंपराओं और समाज की फ्रिक किए बिना अब कई भारतीय मां-बाप एलजीबीटी समुदाय की बातों को समझने की कोशिश कर रहे हैं. बच्चों का घर बसा देखने के लिए कुछ मां-बाप तो उनके लिए परफेक्ट पार्टनर की तलाश में भी निकल पड़े हैं.

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Indien Symbolbild LGBT
तस्वीर: picture-alliance/NurPhoto/D. Talukdar

एक आम हिंदुस्तानी मां की तरह पुणे की सुषमा समुद्रा भी अपने बेटे की शादी के सपने संजो रही थीं. उनकी भी ख्वाहिश थी कि उनका बेटा, शादी करे और बहू लाए. लेकिन हुआ ये कि एक दिन उनके बेटे ने उन्हें और उनके पति को बताया कि वह गे (समलैंगिक) है और किसी लड़की से शादी नहीं कर सकता.

बेटे का शादी के लिए मना करना और खुद को गे बताना, सुषमा को ज्योतिषियों के पास ले गया. बात नहीं बनी तो वह अपने बेटे को मनोवैज्ञानिकों के पास ले गईं, मंदिरों में पूजा पाठ किया, भगवान से मन्नत मांगी कि जैसे-तैसे बस बेटे को ठीक कर दें. लेकिन कुछ भी काम नहीं कर रहा था. उनके पति भी एक ज्योतिषी की सलाह पर सड़कों पर घूमने वाले कुत्तों को घी लगी रोटी खिलाते और पूजा-अर्चना में खूब समय बिताते.

बहरहाल, आज 66 वर्षीय सुषमा अपनी उस नासमझी पर हंसती हैं. वे कहती हैं कि मुझे समलैंगिकता और गे जैसे शब्दों को समझने में करीब दस साल लग गए.  इन्होंने बताया, "अब जब लोग मुझे इस बारे में बताते हैं तो मैं कहती हूं कि अपने बच्चे को स्वीकार करो. क्योंकि मैंने यही गलती की थी."

BdTD Indien Gay Pride Parade
तस्वीर: picture-alliance/AP Photo/A. Nath

समाज में बदलाव लाने में हमेशा समय लगता है. पहले असहनीय समझे जाने वाली बातों के साथ भी लोग जीना सीख लेते हैं. कई भारतीय मां-बाप भी एलजीबीटी समुदाय के अपने बच्चों का घर बसा देखने के लिए खुद सक्रिय भूमिका निभा रहे हैं. कई माता पिता अपने बच्चों के लिए परफेक्ट पार्टनर की तलाश में लगे हैं.

समलैगिंकता अब भारत में अपराध नहीं है लेकिन अब भी ऐसे लोगों के लिए परिवार के सामने खुलना, इस पर चर्चा करना मुश्किल है. अब सुषमा जैसे कई अभिभावक परंपराओं से उलट बच्चों के समलैंगिक होने को स्वीकार कर रहे हैं. सुषमा बताती हैं कि उनके बेटे ने उन्हें होमोसेक्शुएलिटी को समझने के लिए किताबें दी और अब वे मानती हैं कि ये प्राकृतिक है. 

मुंबई में एलजीबीटी सपोर्ट ग्रुप "स्वीकार" से जुड़ी अरुणा देसाई बताती हैं कि जब बच्चे अपनी सच्चाई मां-बाप को बताते हैं तो उस स्थिति में मां-बाप खुद को भावनाओं में कैद कर लेते हैं. देसाई ने बताया कि जब उनके बेटे ने उन्हें अपनी सच्चाई बताई तो उनके साथ भी ऐसा ही हुआ था. लेकिन अब उनका स्वीकार समूह अभिभावकों के लिए वर्कशॉप आयोजित करता है. देसाई बताती हैं कि उनकी वर्कशॉप में एल, जी, बी, टी का अर्थ समझाया जाता है और उनसे जुड़ी सारी बातें बताई जाती हैं.

देसाई के मुताबिक मां-बाप की सबसे बड़ी चिंता होती है कि समाज कैसे व्यवहार करेगा. लेकिन देसाई को उम्मीद है कि एक दिन ऐसा भी आएगा जब ऐसे समूहों की जरूरत ही नहीं होगी.

समलैंगिक विवाहों को भारत में अब तक मंजूरी नहीं मिली है, बावजूद इसके अब कई मां-बाप अपने बच्चों के लिए पार्टनर खोज रहे हैं. मुंबई में रहने वाली पदमा ने साल 2015 में कई समाचार पत्र के कार्यालयों के चक्कर लगाए. वह अपने बेटे के लिए अच्छा वर (पार्टनर) ढूंढना चाहती थीं. उस वक्त अधिकतर अखबारों ने मना कर दिया.  लेकिन हाल ही में देश के अग्रणी अखबार टाइम्स ऑफ इंडिया ने एलजीबीटी समुदाय के लिए अपने अखबार में "आउट एंड प्राउड" नाम का एक साप्ताहिक कॉलम शुरू किया है. पदमा कहती हैं कि वह अपने बच्चे के लिए लिव-इन पार्टनर तो ढूंढ नहीं सकती इसलिए उनके सामने वैवाहिक विज्ञापन ही एकमात्र विकल्प बचता है. 

एलजीबीटी वेडिंग पोर्टल ‚सोलमेट' के संस्थापक स्वप्निल कदम कहते हैं, "शादी भारत में कानूनी नहीं है लेकिन यह एक लंबे रिश्ते की नींव जरूर रखती है."

दिल्ली की वेडिंग और इंटीरियर डिजाइनर इंदू जसूजा भी अपने बेटे पुनीत के लिए सही पार्टनर की खोज में हैं. जसूजा कहती हैं, "मैं उसके लिए कोई ऐसा व्यक्ति खोजना चाहती हूं जो उसके साथ सैटल हो जाए." अच्छे पार्टनर की तलाश में अब वह अपने रिश्तेदारों की मदद भी ले रही हैं, लेकिन एक वक्त ऐसा भी था जब वह अपने बेटे से कहती थीं कि वह अपने गे होने की बात किसी से ना कहे.

समाचार एजेंसी रायटर्स से बातचीत में उन्होंने कहा कि मेरा बेटा होनहार है, फिट है, मैं क्यों उसको स्वीकार नहीं करुंगी. 

एलजीबीटी समुदाय के लिए आज बेशक समाज में स्वीकार्यता बढ़ने लगी है, लेकिन अब भी इनके लिए चुनौतियां कम नहीं हुई है. अब तक एलजीबीटी समुदाय का कोई आधिकारिक आंकड़ा नहीं है. सरकार का कहना है कि भारत में करीब 25 लाख गे लोगों ने अपनी समलैंगिकता के बारे में स्वास्थ्य मंत्रालय को अवगत कराया था.

44 साल के पुनीत जसूजा कहते हैं कि आज लोग जरूर खुल रहे हैं लेकिन ये नहीं कहा जा सकता है कि वे बदल रहे हैं. जसूजा के मुताबिक आज भी गे और लेस्बियन लोगों पर शादी के लिए दबाव बनाया जाता है. उन्होंने बताया कि फेसबुक पर "सुविधायुक्त शादी" जैसी रिक्वेस्ट खूब आती हैं जिसमें एक गे आदमी, एक लेस्बियन महिला से सिर्फ मां-बाप की खुशी के लिए शादी करना चाहता है.

तमाम चुनौतियों के बीच अब समाज में बदलाव की सुगबुगाहट महसूस होने लगी है. सुषमा कहती हैं, "लोगों की सोच बदलने में वक्त लगेगा. हमारे पास एक ही जीवन है और हमें समाज में बदलाव लाने के लिए उदाहरण पेश करने ही होंगे."

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एए/ आरपी (थॉमसन रॉयटर्स फाउंडेशन)

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