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एशिया ने यूरोप को पीछे छोड़ा

१५ मार्च २०१३

एशिया बारूद के ढेर की ओर बढ़ रहा है. पहली बार एशियाई देशों का रक्षा बजट के मामले में पूरे यूरोप को पछाड़ा. चीन और भारत जहां खूब पैसा खर्च कर रहे हैं, तो वहीं द्वितीय विश्वयुद्ध के बाद शांत हुआ जापान भी चिंता में है.

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तस्वीर: Reuters

इंटरनेशनल इंस्टीट्यूट फॉर स्ट्रैटजिक स्टडीज (आईआईएसएस) की वार्षिक रिपोर्ट कहती है कि बीते साल एशिया महाद्वीप का रक्षा खर्च 4.94 फीसदी बढ़ा. 'मिलिट्री बैलेंस 2013' रिपोर्ट के मुताबिक इसी दौरान यूरोप के नाटो सदस्य देशों का रक्षा खर्च गिरा और 2006 के स्तर पर आ गया. रिपोर्ट के मुताबिक, "निश्चित ही, एशियाई खर्च में इजाफा बहुत तेजी से हुआ है और यूरोपीय देशों में रक्षा बजट में भारी कटौती हुई है, इस वजह से एशियाई रक्षा बजट (287.4 अरब डॉलर) न सिर्फ नाटो वाले यूरोप बल्कि सभी यूरोपीय देशों के खर्च (रक्षा) से ज्यादा हो चुका है."

आईआईएसएस ने इस संभावना से इनकार किया है कि एशिया अमेरिकी सामरिक नीति की धुरी बन रहा है. रिपोर्ट के मुताबिक अमेरिका ने सीमित सैन्य तैनाती का एलान किया है, लेकिन यह भी सच है कि अमेरिका यूरोप से अपना ध्यान हटा रहा है. दुनिया में अब भी सबसे ज्यादा रक्षा बजट अमेरिका का ही है. पूरी दुनिया रक्षा पर जितना पैसा खर्च कर रही है, उसका 45.3 फीसदी खर्चा सिर्फ अमेरिका कर रहा है.

China erster Flugzeugträger
चीन ने बनाया पहला विमानवाही युद्धपोततस्वीर: Getty Images

चिंतित करता चीन

लेकिन बीते एक दशक में चीन तेजी से अमेरिका की तरफ बढ़ रहा है. रिपोर्ट के मुताबिक एशिया में कठिन स्थानीय माहौल को देखते हुए चीन अपने आर्थिक विकास का सहारा लेकर सैन्य खर्च बढ़ा रहा है, "रक्षा खर्च के मामले में साफ तौर पर अब चीन दुनिया का दूसरा बड़ा देश है." माना जा रहा है कि अगर चीन ऐसे ही आर्थिक विकास करता रहा तो 2025 से 2028 के बीच वह अमेरिकी रक्षा बजट की बराबरी कर लेगा. 2013-14 के लिए चीन ने 106.4 अरब डॉलर का रक्षा बजट रखा है. यह बीते साल की तुलना में 11.2 फीसदी ज्यादा है.

रक्षा विशेषज्ञों को उत्तर कोरिया भी हैरान कर रहा है. रिपोर्ट के मुताबिक पिछले महीने तीसरा परमाणु टेस्ट करने वाला उत्तर कोरिया तेजी से सैन्य क्षमताएं बढ़ा रहा है. अंदाजा लगाया गया है कि उत्तर कोरिया के पास प्लूटोनियम का पर्याप्त भंडार है, इसके जरिए वह चार से 12 परमाणु हथियार बना सकता है. प्लूटोनियम के अलावा प्योंगयांग यूरेनियम संवर्धन कार्यक्रम भी चला रहा है. इसकी मदद से भी हर साल एक-दो परमाणु हथियार बनाए जा सकते हैं.

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सेनकाकू द्वीप पर उलझते जापान-चीनतस्वीर: Reuters/Kyodo/Files

विवादों की कतार

उत्तर कोरिया की वजह से जापान और दक्षिण कोरिया जैसे देशों पर रक्षा बजट बढ़ाने का दबाव पड़ रहा है. आईआईएसएस को लगता है कि एशिया में कई तरह के खतरे पैदा हो रहे हैं. कई देश बराबरी की होड़ में जुट रहे हैं, "इस बात के पुख्ता सबूत हैं कि वहां क्रिया-प्रतिक्रिया की होड़ चल रही है और ये इलाके के देशों के सैन्य कार्यक्रमों को प्रभावित कर रही है."

विदेशी हथियारों पर बुरी तरह आश्रित भारत विदेशी हथियार कंपनियों के लिए सबसे बड़ा बाजार बन चुका है. नई दिल्ली चीन और पाकिस्तान को ध्यान में रखते हुए अपनी सैन्य क्षमता को दुरुस्त कर रही है. इस साल भारत ने रक्षा बजट में 5.3 फीसदी का इजाफा किया. 2013-14 में भारत रक्षा पर 37.4 अरब डॉलर खर्च करेगा.

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भारत की सैन्य तैयारियां भी जोरों परतस्वीर: AP

इंडियन इंस्टीट्यूट फॉर डिफेंस एंड एनालिसिस के मुताबिक रक्षा बजट की कुल रकम में 49 फीसदी थल सेना, 28 फीसदी पैसा वायुसेना और 18 फीसदी नौसेना पर खर्च किया जाएगा. रक्षा अनुसंधान संस्थान डीआरडीओ के लिए सिर्फ पांच फीसदी रकम रक्षा बजट में रखी गई है.

उत्तर कोरिया के परमाणु और मिसाइल कार्यक्रम की वजह से जापान और दक्षिण कोरिया भी सैन्य तैयारियां मजबूत कर रहे हैं. 1945 में द्वितीय विश्वयुद्ध के खत्म होने के बाद जापान ने रक्षा और सेना पर बहुत ज्यादा पैसा खर्च नहीं किया, लेकिन हाल के सालों में उसका चीन के साथ द्वीप विवाद गहराता जा रहा है. कुछ मौके तो ऐसे भी आ चुके हैं जब दोनों देशों के लड़ाकू विमान एक दूसरे से उलझ चुके हैं. बीजिंग और टोक्यो एक दूसरे को चेतावनी पर चेतावनी दे रहे हैं.

ओएसजे/एमजे (रॉयटर्स)

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