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ऑक्सफैम: सीरिया में 1.1 करोड़ को चाहिए मदद

१३ मार्च २०१५

राहत संस्थाओं ने 'फेलिंग सीरिया' नाम की रिपोर्ट में संयुक्त राष्ट्र की सुरक्षा परिषद पर सीरिया संकट में पूरी तरह विफल होने का आरोप लगाया है. ऑक्सफैम के रॉबर्ट लिंडनर ने डॉयचे वेले से कहा कि सीरिया के हालात बहुत खराब हैं.

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तस्वीर: Z. Al-Rifai/AFP/Getty Images

डॉयचे वेले: चार साल पहले सीरिया में असद शासन के खिलाफ प्रदर्शन शुरू हुआ. उसके कुछ ही दिनों बाद वहां गृहयुद्ध शुरू हो गया. अब लोगों की स्थिति और खराब क्यों हो गई है?

रॉबर्ट लिंडनर: सीरिया में लड़ाई खत्म होने का नाम नहीं ले रही. पहले से ज्यादा लोग मोर्चे पर फंसे हुए हैं, जहां तक उन्हें मदद नहीं पहुंचाई जा सकती. कुछ पड़ोसी देशों में स्थानीय निवासियों और शरणार्थियों के बीच नौकरी और स्वास्थ्य सुविधाओं को लेकर तनाव पैदा हो गया है. जॉर्डन में एक चौथाई निवासी सीरिया के शरणार्थी है. बहुत से शरणार्थियों के आने के कारण वहां अर्थव्यवस्था दबाव में है. बहुत से स्थानीय निवासी भी अभाव और गरीबी के शिकार हैं. अफसोस है कि लेबनान, जॉर्डन या तुर्की जैसे देश अपनी सीमाओं को शरणार्थियों के लिए बंद कर रहे हैं. ये लोग खास तौर पर खतरे में हैं क्योंकि वे हमलों से सुरक्षित नहीं हैं और उन तक मदद भी महीं पहुंचाई जा सकती है.

सहायता सामग्री वहां तक क्यों नहीं पहुंच पा रही है जहां तक उसे पहुंचना चाहिए?

सौभाग्य से हमारी सहायता सामग्री आम तौर पर उन लोगों तक पहुंच रही है जिन्हें उनकी सबसे ज्यादा जरूरत है. मसलन पीने के पानी का संयंत्र, शौचालय, नहाने और साफ सफाई का सामान या फिर जॉर्डन और लेबनान के बड़े शरणार्थी कैंपों से बाहर खानपान या रिहायश के लिए पैसा. सीरिया में राहतकर्मियों पर होने वाले हमले भी राहत में बाधा डाल रहे हैं. उग्रपंथी लड़ाके अक्सर राहत सामग्रियों को जब्त कर लेते हैं. उस पर से राहतकर्मियों के आने जाने और सहायता सामग्रियों के ट्रांसपोर्ट पर नौकरशाही बाधाएं भी हैं.

कितने सारे लोग युद्ध से सीधे प्रभावित हैं?

करीब 1.1 करोड़ से ज्यादा लोग यानि सीरिया की कुल आबादी के आधे से ज्यादा लोग मानवीय सहायता पर निर्भर हैं. करीब 76 लाख लोग अपने ही देश के अंदर हिंसा से बचने के लिए भाग रहे हैं, जबकि 37 लाख लोगों ने विदेशों में शरण ली है. सीरिया में रह रहे लोगों का तीन चौथाई हिस्सा गरीबी में रह रहा है. 2 लाख लोग चारों तरफ से घिरे शहरों में रह रहे हैं जहां उन्हें खाने पीने के लिए पर्याप्त सामान नहीं मिलता.

क्या आप सीरिया में विवाद का कोई हल देखते हैं?

फरवरी 2014 में विफल रही जेनेवा वार्ता जैसी सारी अंतरराष्ट्रीय शांति पहलकदमियां अब तक असफल रही हैं. लेकिन सीरिया में बहुमत शांति चाहता है. एक उम्मीद स्थानीय तौर पर सीमित संघर्ष विराम हो सकते हैं जिनमें से कुछ इस समय लागू हैं. अफसोस है कि उनमें से बहुत सारे लंबे समय तक टिके नहीं, इसलिए भी कि उनके लिए स्वतंत्र मध्यस्थ या निरीक्षकों के रूप में अंतरराष्ट्रीय समर्थन पर्याप्त नहीं था. बहुत से मामलों मे स्थानीय निवासियों को इस प्रक्रिया में पर्याप्त ढंग से शामिल नहीं किया गया. संयुक्त राष्ट्र के विशेष दूत स्टेफान दे मिस्तूरा की सीमित मानवीय संघर्षविराम की पहल सकारात्मक है.

सीरिया और इराक के शरणार्थियों की स्थिति पड़ोसी देशों और यूरोप के शरणार्थी कैंपों में भी बिगड़ी है, शायद लगातार बढ़ती संख्या के कारण. क्या शरण देने वाले देशों को और मदद दिए जाने की जरूरत है?

हां निश्चित तौर पर. अब तक सीरिया के 37 लाख लोगों ने विदेशों में शरण ली है. इसमें आश्चर्य नहीं कि लेबनान, जॉर्डन या तुर्की जैसे पड़ोसी देश इतने लोगों को ठहराने में मुश्किलों का सामना कर रहे हैं. छोटे से देश लेबनान की तुलना में यूरोप के धनी देशों ने बहुत कम शरणार्थियों को अपने यहां पनाह दी है. इसीलिए ऑक्सफैम और दूसरे गैरसरकारी संगठन इलाके के बाहर के धनी देशों से सीरिया के पांच फीसदी पंजीकृत शरणार्थियों को अपने यहां शरण देने की मांग कर रहे हैं. जर्मनी ने अपने आकार के हिसाब से काफी लोगों को शरण दी है लेकिन वह और लोगों को भी पनाह दे सकता है. बाल्कन युद्ध के समय जर्मनी ने दिखाया है कि वह इसमें समर्थ भी है.

रॉबर्ट लिंडनर राहत संस्था ऑक्सफैम जर्मनी में मानवीय संकट विशेषज्ञ हैं.

इंटरव्यू: सैरा बर्निंग/एमजे