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ऑटोमेशन से नौकरियों पर मंडरा रहा है खतरा

प्रभाकर मणि तिवारी
१ अप्रैल २०१९

भारत में बेरोजगारी की दर पर परस्पर विरोधी दावों के बीच अंतरराष्ट्रीय श्रम संगठन ने कहा है कि रोजगार की समस्या से जूझ रहे भारत में ऑटोमेशन की वजह से मौजूदा नौकरियों पर भी खतरा पैदा होगा.

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Indien Frau mit Baby arbeitet in einer Spinnerei
तस्वीर: Imago/Robertharding

हाल में जारी एक रिपोर्ट में कहा गया था कि भारत में बेरोजगारी बीते 45 वर्षों के सबसे उच्चतम स्तर पर पहुंच गई है. अब अंतरराष्ट्रीय श्रम संगठन (आईएलओ) का कहना है कि  देश में हाथ से की जाने वाली 51.8 फीसदी गतिविधियों को मशीनों की सहायता से संचालित किया जा सकता है. चेंजिंग बिजनेस एंड अपॉर्चुनिटिज फॉर इम्प्लायर एंड बिजनेस ऑर्गनाइजेशंस शीर्षक इस रिपोर्ट से रोजगार क्षेत्र की भयावह तस्वीर उभरती है.

आईएलओ की रिपोर्ट

काम और नौकरियों के क्षेत्र में ऑटोमेशन का खतरा लगातार गंभीर हो रहा है. आईएलओ की रिपोर्ट में इस खतरे के प्रति आगाह करते हुए ऐसे कामों का जिक्र किया गया है जिनमें मौजूदा तकनीक के सहारे ऑटोमेशन से किया जा सकता है. रिपोर्ट में कहा गया है कि भारत के मामले में 51.8 फीसदी गतिविधियों को ऑटोमेशन के सहारे किया जा सकता है. रोबोटिक ऑटोमेशन का असेंबलिंग और कम कुशलता वाली नौकरियों पर सबसे ज्यादा प्रभाव पड़ने का अंदेशा है. जापान और थाईलैंड के मामले में यह आंकड़ा क्रमश: 55.7 और 54.8 फीसदी है. आईएलओ ने कहा है कि पूरी दुनिया में फिलहाल इंसान जो काम कर रहे हैं उनमें से 40 फीसदी का ऑटोमेशन किया जा सकता है. नौकरियों में बड़े पैमाने पर होने वाली कटौतियों और छंटनी से जूझ रहे रोजगार क्षेत्र के लिए यह अच्छी खबर नहीं है.

 

Indien Kinder arbeiten in einer Ziegelfabrik in Deogarh
तस्वीर: Imago/Robertharding

आईएलओ की रिपोर्ट में कहा गया है कि निर्माण और खुदरा क्षेत्र के अलावा डाटा कलेक्शन और प्रोसेसिंग जैसे क्षेत्रों में ऑटोमेशन का सबसे ज्यादा असर होने का अंदेशा है. रूटीन कामकाज पर खतरा दूसरी नौकरियों के मुकाबले ज्यादा है. इसके मुताबिक, ऑटोमेशन का पुरुषों के मुकाबले महिला कामगारों पर ज्यादा असर होगा. इसकी वजह यह है कि खुदरा, बिजनेस प्रोसेस आउटसोर्सिंग (बीपीओ), कपड़ा और जूते-चप्पल के निर्माण के क्षेत्र में महिलाएं ज्यादा काम करती हैं. ऑटोमेशन का सबसे ज्यादा खतरा उन क्षेत्रों पर ही मंडरा रहा है जिनमें महिलाएं ज्यादा काम करती हैं. 

आईएलओ ने कहा है कि अब 66 फीसदी भारतीय नियोक्ता नए कर्मचारियों में तीन साल पहले के मुकाबले अलग स्तर का कार्य कौशल तलाश रहे हैं. लेकिन इनमें से 53 फीसदी को मनचाहे कौशल वाले कामगर नहीं मिल पा रहे हैं. रिपोर्ट में कहा गया है कि भारत पहले से ही रोजगार के संकट से जूझ रहा है. लेकिन इसके साथ ही रोजगार लायक कामगारों की भी भारी कमी सामने आ रही है. लगभग हर क्षेत्र में नौकरियां तो पहले से ही घट रही हैं. ऊपर से कंपनियों को काम लायक उम्मीदवार भी नहीं मिल रहे हैं. इसकी मुख्य वजह यह है कि देश की शिक्षा प्रणाली तकनीक और कौशल के क्षेत्र में आने वाले बदलावों के अनुरूप खुद को ढाल नहीं सकी है. इसके अलावा पुराने कर्मचारियों के समुचित प्रशिक्षण की व्यवस्था नहीं होने की वजह से वह लोग नई तकनीक और जरूरतों पर खरा नहीं उतर पा रहे हैं. इसकी वजह से बेरोजगारी का संकट और गंभीर हो गया है.

Indien Mitarbeiter der Bosch Ltd in Bangalore
तस्वीर: imago/photothek

रोजगार के आंकड़े

भारत में रोजगार के क्षेत्र में संकट लगातार गंभीर हो रहा है. इस साल जनवरी की शुरुआत में ही खबर आई थी कि बीते साल लगभग 1.10 करोड़ नौकरियां खत्म हुई हैं और महीना बीतते न बीतते नेशनल सैंपल सर्वे आफिस (एनएसएसओ) के एक सर्वेक्षण के हवाले यह बात सामने आई कि वर्ष 2017-18 के दौरान भारत में बेरोजगारी दर बीते 45 वर्षों में सबसे ज्यादा रही है. इसमें कहा गया था कि देश में वर्ष 1972-73 के बाद बेरोजगारी दर सर्वोच्च स्तर पर पहुंच गई है. शहरी इलाकों में बेरोजगारी की दर 7.8 फीसदी है जो ग्रामीण इलाकों में इस दर (5.3 फीसदी) के मुकाबले ज्यादा है. उससे पहले  सेंटर आफ मॉनीटरिंग इंडियन इकोनॉमी (सीएमआईई) ने अपनी एक रिपोर्ट में कहा था कि देश में बीते साल 1.10 करोड़ नौकरियां कम हुई हैं. यह हालत तब है जब वर्ष 2014 में केंद्र की एनडीए सरकार हर साल एक करोड़ नौकरियां पैदा करने का वादा कर सत्ता में आई थी.

विशेषज्ञों का कहना है कि रोजगार के क्षेत्र में खतरा लगातार बढ़ रहा है. अब आईएलओ की रिपोर्ट ने भी इसकी पुष्टि कर दी है. अर्थशास्त्री प्रोफेसर अजित कुमार दासगुप्ता कहते हैं, "सार्वजनिक से लेकर निजी क्षेत्रों तक में रोजगार के अवसर लगातार घट रहे हैं. इसके साथ ही ऐसे शिक्षित बेरोजगारों की तादाद तेजी से बढ़ रही है जिनके पास नौकरी लायक जरूरी कौशल का अभाव है." वह कहते हैं कि इस समस्या की जड़ें देश की शिक्षा व्यवस्था में है. सरकार ने अब तक इस समस्या की जड़ पर ध्यान नहीं दिया है. यही वजह है कि जब नौकरियों के लिए विज्ञापन भी निकाले जाते हैं तो कंपनियों को योग्य उम्मीदवार नहीं मिल पाते. एक शिक्षाशास्त्री संजीत कुमार कहते हैं, "रोजगार के क्षेत्र पर मंडराते संकट से निपटने के लिए बहुआयामी उपाय जरूरी हैं. इसके तहत पहले शिक्षा को रोजगारमूलक बनाना होगा. इसके साथ ही स्कूली स्तर से ही शिक्षा की गुणवत्ता की निगरानी के लिए एक तंत्र की स्थापना करनी होगी. ऐसा नहीं होने की स्थिति में हालात के विस्फोटक होने का खतरा है."