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ओबामा का मुश्किल सऊदी दौरा

१९ अप्रैल २०१६

मध्यपूर्व नीति पर आलोचना झेल रहे अमेरिकी राष्ट्रपति बुधवार को सऊदी अरब पहुंच रहे हैं. पश्चिम एशिया में चल रही राजनीतिक उथल पुथल में सऊदी अरब अमेरिका का महत्वपूर्ण सहयोगी है लेकिन रिश्तों में पहले जैसी गर्माहट नहीं है.

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USA Barack Obama empfängt König Salman bin Abdulaziz Al Saud
तस्वीर: picture-alliance/epa/M. Reynolds

सुन्नी सऊदी अरब और शिया ईरान एक दूसरे के जानी दुश्मन हैं और इस समय सीरिया और यमन जैसे कई देशों में छद्म युद्ध के जरिए इलाके पर वर्चस्व स्थापित करने की कोशिश में लगे हैं. ऐसे में ईरान के साथ पश्चिमी देशों का परमाणु समझौता सऊदी अरब को कतई रास नहीं आया है और वह इस समझौते को पूरी तरह नकार रहा है. उसे समझाने की अमेरिकी कोशिश भी नक्करखाने में तूती साबित हुई है. वॉशिंग्टन चाहता है कि सऊदी अरब इलाके में ज्यादा राजनीतिक जिम्मेदारी उठाए.

मानवाधिकार और तेल

अमेरिका और सऊदी अरब के रिश्तों में खटास का एक मुद्दा मानवाधिकारों का मुद्दा भी है. अमेरिका सऊदी अरब से मानवाधिकारों की अनदेखी नहीं करने की अपील करता रहा है. लेकिन रइफ बदावी जैसे ब्लॉगरों को कोड़ों और कैद की सजा देकर सऊदी सल्तनत पश्चिमी अनुरोधों की अनदेखी करता रहा है. इस्राएल और फलीस्तीनियों के साथ संबंधों को लेकर भी दोनों पक्षों के बीच गंभीर मतभेद हैं. सबसे प्रमुख मुद्दा आतंकवाद का भी है. अल कायदा और ओसामा बिन लादेन की जड़ें सऊदी अरब में ही हैं. दूसरी ओर खाड़ी के सुन्नी बहुल देश ओबामा की ईरान और सीरिया नीति की लंबे समय से आलोचना करते रहे हैं.

दोनों देशों के रिश्तों में एक और बात खटास पैदा कर रही है कि अमेरिका अब सऊदी अरब के तेल पर उतना निर्भर नहीं रहा जितना हुआ करता था. 2015 में अमेरिका ने 82 देशों से प्रतिदिन 94 लाख बैरल तेल का आयात किया. इसमें सिर्फ 11 प्रतिशत तेल का आयात सऊदी अरब से किया गया और कनाडा के बाद दूसरे नंबर पर था.

चरमराती दोस्ती

राष्ट्रपति ओबामा का यह दौरा ऐसे समय में हो रहा है जब इस तरह के कयास लगाए जा रहे हैं कि अमेरिका पर हुए आतंकी हमले में सऊदी अरब का भी हाथ हो सकता है. राष्ट्रपति ने कहा है कि इस समय इंटेलिजेंस के एक उच्चाधिकारी 9/11 से जुड़ी अब तक गोपनीय रखी गई फाइलों की समीक्षा कर रहे हैं और वे संभवतः उन्हें रिलीज करने की सलाह दे सकते हैं. 28 पेजों वाले इस दस्तावेज के बारे में अटकलें लग रही हैं कि सऊदी अरब किसी न किसी रूप में हमलों से जुड़ा हो सकता है. 11 सितंबर 2001 में हुए हमले में करीब 3000 लोग मारे गए थे जब आतंकी हमलावरों ने दो यात्री विमानों को ट्रेड सेंटर के दो बहुमंजिली इमारतों के साथ टकरा दिया था.

लेकिन सऊदी अरब अमेरिका के लिए सामरिक रूप से कितना महत्वपूर्ण रहा है इसका सबूत यह भी है कि अमेरिकी राष्ट्रपति का यह चौथा दौरा है जहां वे सबसे पहले किंग सलमान से मुलाकात करेंगे और उसके बाद खाड़ी सहयोग परिषद की बैठक में हिस्सा लेंगे. वहां बहस का मुख्य मुद्दा इलाके की स्थिरता और इस्लामिक स्टेट के खिलाफ संघर्ष है. खाड़ी सहयोग परिषद की बैठक में सऊदी अरब के अलावा कुवैत, संयुक्त अरब अमीरात, कतर, बहरीन और ओमान के नेता भी होंगे. इस शिखर सम्मेलन के बाद ओबामा इन नेताओं के साथ वैसी ही बैठक करेंगे जैसी उन्होंने पिछले साल कैंप डेविड में की थी. पिछले साल की बैठक का इरादा खाड़ी के नेताओं को आश्वस्त करना था जो ईरान के साथ सुरक्षा परिषद के स्थायी सदस्यों और जर्मनी के साथ हुए परमाणु समझौते से परेशान थे. इस बीच ईरान समझौता लागू हो गया लेकिन नई बैठक का मकसद आईएस और अल कायदा को परास्त करना और ईरान सहित क्षेत्रीय सुरक्षा के मुद्दे होंगे. आईएस के खिलाफ संघर्ष ब्रिटेन और जर्मनी के उनके दौरे में भी अहम भूमिका निभाएगा.

एमजे/आईबी (डीपीए, एपी)